विदेश

अब यहां से उठी पाकिस्‍तान को काली सूची में डाले जाने की मांग

ओटावा। अफगानिस्तान में कनाडा के राजदूत (Canadian Ambassador) रहे क्रिस अलेक्जेंडर ने कहा है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) में छद्म युद्ध लड़ने वाले पाकिस्तान पर कड़े प्रतिबंध लगाने चाहिए। उसे एफएटीएफ की काली सूची में भी डाला जाना चाहिए। उन्होंने अब कहा है कि पाकिस्तान पर कड़े प्रतिबंध लगाए जाएं। साथ ही उसको फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (FTF) द्वारा काली सूची (Black list) में डाला जाए।



इसके पूर्व भी अफगानिस्तान में शांति बहाली की बहुपक्षीय कोशिशों के बीच कनाडा के अफगानिस्तान में राजदूत रहे क्रिस अलेक्जेंडर ने कहा था कि पाक जब तक छद्म युद्ध नहीं बंद करता, तब तक यहां शांति स्थापित नहीं हो सकती है। पर्दे के पीछे से पाक खुफिया एजेंसी आइएसआइ तालिबान को ताकत दे रही है। कनाडा के राजनयिक ने टोलो न्यूज पर अपना साक्षात्कार देते हुए पाक की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा खोला था।

उल्‍लेखनीय है कि कुछ दिन पहले क्रिस ने पाकिस्तान (Pakistan) की काली करतूतों का पूरा चिट्ठा खोला था। अफगानिस्तान में तालिबान की हिंसा के पीछे पाक का ही हाथ बताया था। उनका कहना था कि पाकिस्तान ही अफगानिस्तान में छद्म युद्ध लड़ रहा है। उसके यहां ही हर योजना तैयार की जाती है। सभी आतंकवादियों को पाक की खुफिया एजेंसी आइएसआइ संचालित कर रही है। पिछले साल दिसंबर में कई वीडियो बाहर आई थीं, जिनमें तालिबान के सीनियर नेता पाकिस्तान में बैठकर अफगानिस्तान के संबंध में रणनीति बना रहे थे। इस बैठक में तालिबानी लड़ाके भी मौजूद थे।

क्रिस ने कहा था कि पाकिस्तान की सेना विशेषतौर पर उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ तालिबान को युद्ध के लिए हथियार और उपकरण उपलब्ध कराती है। एक तरह से पाकिस्तान की सहायता से ही तालिबान अफगान सरकार के खिलाफ भाड़े पर युद्ध कर रहा है, जब तक इस असलियत से पर्दा हटाकर पाकिस्तान के छद्म युद्ध को बंद नहीं कराया जाता, अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के प्रयास व्यर्थ साबित होंगे।

तालिबान पाकिस्तान (Taliban Pakistan) की सेना और ख्रुफिया एजेंसी की ही जुबान बोलता है। कनाडा के पूर्व राजनयिक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिलकर पाकिस्तान की अवैध करतूतों और आतंक के काले कारनामों को बंद करा देती है, तो हालात तेजी से बदल जाएंगे। उन्होंने अफगानिस्तान के खिलाफ पाक के गोपनीय एजेंडे की वजह भी बताई। उनका कहना है कि अफगानिस्तान ने 1947 में जब संयुक्त राष्ट्र (United Nation) में पाक की सदस्यता का विरोध किया था, तब से ही पाक यहां आतंक की फसल बोने का काम कर रहा है। इसी फसल में पैदा हुए आतंकियों को वह निरंतर अफगानिस्तान और कश्मीर दोनों के लिए इस्तेमाल कर रहा है।

 

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