विदेश

पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ हो रहा भेदभाव, आखिर क्या चाहते हैं कट्टरपंथी?

इस्‍लामाबाद (Islamabad) । पाकिस्तान (Pakistan) में अहमदिया मुसलमानों (Ahmadiyya Muslims) की आस्था पर एक बार फिर बड़ा प्रहार किया गया है. कराची (Karachi) में कट्टरपंथियों ने अहमदिया मुस्लिमों की मस्जिद (Mosque) पर चढ़कर मीनारें तोड़ दी. इस घटना का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें देखा जा सकता है कि पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ किस कदर खुलेआम भेदभाव किया जा रहा है.

पाकिस्तान के कराची में जिन हमलावरों ने पाकिस्तान के अल्पसंख्यक अहमदिया समुदाय की एक मस्जिद के गुंबदों और मीनारों को तोड़ दिया, उसका वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वीडियो में लोगों को सदर, कराची में एक अहमदी मस्जिद के ऊपर चढ़ते और हथौड़े से वार करते हुए देखा गया है. हैरत है कि उसे कई उसे रोकता भी नहीं है.


तीन महीने में पांचवां हमला
पाकिस्तान में पिछले तीन महीने में ये पांचवां हमला है. अहमदिया पूजा स्थलों पर हुए हमलों की कड़ी में ये एक ताजा हमला है. इससे पहले कराची में हजमशेद रोड पर अहमदी जमात खाता की मीनारों को ध्वस्त कर दिया गया था. वहीं पिछले साल दिसंबर में पुलिस ने पंजाब के गुजरांवाला में एक मस्जिद से मीनारें हटा दीं. बार बार की ऐसी घटना से पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमान खौफ मेें जीने को मजबूर हैं.

अहमदिया कौन हैं?
अहमदिया संप्रदाय का संबंध भारत के पंजाब में अमृतसर के पास कादियान से रहा है. मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में इसे आंदोलन के तहत स्थापना किया था. इस्लाम के कुछ पहलुओं के विरोध में उन्होंने प्रचार किया था. पाकिस्तान में अहमदियों की संख्या करीब चालीस लाख है. यह समुदाय भारत में भी मौजूद है. अनुमान है कि भारत में इनकी संख्या करीब 1 लाख है।

क्यों है निशाने पर?
कट्टरपंथी मुस्लिम मौलवी इस संप्रदाय का लंबे समय से विरोध कर रहे हैं. यह इस्लाम की कुछ मान्यताओं को नहीं मानता है. लिहाजा कट्टरपंथी अहमदिया मुस्लिम को विधर्मी मानते हैं. हालांकि अहमदिया अपने धर्म में पैगंबर को लेकर विवाद नहीं करते हैं. अहमदिया समुदाय पाकिस्तान में लगातार हमलों और उत्पीड़न का शिकार है.

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने पंजाब प्रांत के वज़ीराबाद जिले में एक अहमदिया पूजा स्थल की बदहाली की कड़ी निंदा की थी और देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऐसे स्थानों की सुरक्षा का आह्वान किया था.

गैरमुस्लिम घोषित किया गया
1974 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया था और उसके लिए संविधान में संशोधन भी किया था. इसके बाद इस समुदाय को सामान्य मस्जिदों में जाने से रोक दिया गया.

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के कार्यालय के एक दस्तावेज के अनुसार सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के 1984 के अध्यादेश ने पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) की धारा 298-बी और 298-सी में अहमदियों के लिए स्पष्ट भेदभावपूर्ण संदर्भ पेश किए हैं.

अहमदियों के खिलाफ सजा का नियम
अहमदियों की धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है. जिसका उल्लंघन करने पर जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान है. साल 2002 में मतदाताओं की एक पूरक सूची बनाई गई जिसमें अहमदिया को गैर-मुस्लिम के रूप में एक अलग कॉलम दिया गया. यहां तक ​​कि संविधान में संशोधनों के बाद भी अहमदिया पाकिस्तान में एकमात्र धार्मिक समूह हैं जो एक अलग चुनावी सूची में बने हुए हैं.

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