
उज्जैन। शहर पर बढ़ता शोर अब सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। विवाह-सीजन, धार्मिक शोभायात्राओं और जुलूसों में हाई-वाल्यूम डीजे के उपयोग ने कई इलाकों में ध्वनि प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक पहुँचा दिया है। शोर नियंत्रण के नियम साफ तौर पर कहते हैं कि रात 10 बजे के बाद किसी भी तरह का तेज़ संगीत नहीं बज सकता। सामान्य क्षेत्रों में आवाज 55 डेसिबल से ऊपर नहीं होनी चाहिए।
डीजे पर प्रतिबंध की जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट तस्वीर पेश करती है। शहर में अधिकांश इलाकों के रहवासी रात को ढंग से सो नहीं पा रहे हैं। इन इलाकों में देर रात 90 से 110 डेसिबल अधिक का शोर होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह स्थिति ‘स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारकÓ श्रेणी में आती है। शादी-ब्याह में लगे 12-14 स्पीकर्स और सबवूफर का संयोजन एक मिनी-स्टेडियम जैसे शोर पैदा कर रहा है। खासकर मोबाइल डीजे यूनिट ट्राले पर लगाए तीन से पांच हजार वाट के सिस्टम से सबसे ज्यादा शोर पैदा हो रहा है। इनकी क्षमता नियमों की सीमा से कई गुना अधिक है। जिले में छोटे-बड़े मिलाकर 500 से 700 डीजे हैं, जिन्हें संचालकों ने लोडिंग वाहनों पर बनवाए हैं। इनमें अत्याधिक तीव्र ध्वनि वाले बाक्स, लाइटिंग आदि लगाए गए हैं, जिनके सामने कमजोर हृदय वाले लोग खड़े नहीं हो पाते हैं। विवाह-बरात का दौर शुरू हुआ है तब से यह डीजे सारे नियमों का उल्लंघन कर बजाए जा रहे हैं। सबसे खराब स्थिति सड़क से गुजर रही बरातों और शोभायात्राओं के दौरान झेलना पड़ रहा है। मोडीफाइ कराए ट्रकों पर 20 फीट तक ऊंचे साउंड सिस्टम बांधकर अनियंत्रित आवाज में देर तक यह डीजे बजाया जा रहा है। उस समय उनकी आवाज से घर की दीवारें हिलने लगती हैं। बच्चों-बुजुर्गों की दिल की धड़कन बढ़ जाती है। कोई बीमार हो तो उसको कितनी तकलीफ होती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। एक साल पहले सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद कलेक्टर ने एक प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया था। इसके मुताबिक अत्यधिक शोर वाले डीजे पर प्रतिबंध था। वहीं रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक किसी भी ध्वनि विस्तारक यंत्र पर संगीत बजाए जाने को प्रतिबंधित किया था।
डीजे साउंड की तेज आवाज का यह होता है असर
सामान्य मानक के अनुसार 85 डेसिबल से ऊपर का शोर अगर लगातार एक घंटे तक सुना जाए तो सुनने की क्षमता को नुकसान पहुँचाने की शुरुआत हो सकती है। डीजे सिस्टम में शोर अक्सर 100 से 110 डेसिबल तक जाता है। इससे कान में घंटी बजने जैसी आवाज (टिन्निटस), सुनाई देने में कमी, चक्कर, सिरदर्द जैसी समस्याएं तुरंत महसूस हो सकती हैं। 110 डेसिबल से ऊपर का शोर सिर्फ 10-15 मिनट में स्थायी हानि की शुरुआत कर सकता है। इस शोर के कारण शरीर का स्ट्रेस हार्मोन (एड्रेनालिन) बढऩे लगता है। इससे दिल की धड़कन तेज होती है, ब्लड प्रेशर बढ़ता है, सांस फूलने जैसी स्थिति बनती है। लंबे समय तक अत्यधिक शोर में रहने से हार्ट अटैक का जोखिम भी बढ़ सकता है, खासकर उन लोगों में जिन्हें पहले से दिल या ब्लड प्रेशर की समस्या है।
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