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डॉलर का वर्चस्व मंजूर नहीं, युआन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने की कोशिश में जुटा चीन

बीजिंग (Beijing)। चीन (China) अब यह दो-टूक संकेत देने लगा है कि अंतरराष्ट्रीय कारोबार (international business) में अमेरिकी मुद्रा डॉलर (American currency dollar) का वर्चस्व उसे मंजूर नहीं है। वह अब खुलकर अपनी मुद्रा युआन (own currency yuan) को वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा (alternative international currency) के रूप में पेश करने की कोशिश में जुट गया है।

चीन अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। बल्कि अगर क्रय शक्ति समतुल्यता (परचेजिंग पॉवर पैरिटी) की कसौटी पर देखा जाए, तो वह अब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। अब वह 120 से ज्यादा देशों का सबसे बड़ा व्यापार सहभागी (ट्रेड पार्टनर) है।

चीनी अधिकारियों का दावा है कि यह आर्थिक हैसियत हासिल करने के बाद चीन की यह अपेक्षा वाजिब है कि उसकी मुद्रा अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अधिक बड़ी भूमिका प्राप्त करे। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक चीन अगर अपनी इस मंशा में कामयाब रहा, तो उससे कुल मिलाकर अमेरिका की आर्थिक शक्ति में बड़ी गिरावट आएगी।


विशेषज्ञों के मुताबिक, हाल के वर्षों में अमेरिका अपने भू-राजनीतिक मकसदों को हासिल करने के लिए डॉलर का हथियार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। इससे चीन का काम आसान हो गया है। जिन देशों पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं या जिन्हें उसने डॉलर में भुगतान के सिस्टम से बाहर किया है, वे पूरे उत्साह से युआन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने की चीन की कोशिश में सहायता कर रहे हैं। इसके अलावा संभावित अमेरिकी कार्रवाई से आशंकित देश भी अपने कारोबार को डॉलर से हटा रहे हैं।

बीते सात जून को अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में डॉलर के घटते प्रभाव पर विचार करने के लिए सुनवाई हुई। उसमें लगभग आधा दर्जन अर्थशास्त्रियों को बुलाया गया था। इन अर्थशास्त्रियों ने यह आम राय जताई कि अगर डॉलर का वर्चस्व घटा, तो दुनिया में अमेरिका की आर्थिक हैसियत गिरेगी, अमेरिका के अंदर महंगाई बढ़ेगी और अमेरिका का कर्ज संकट और गहरा जाएगा।

इस बीच, चीन युआन में अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए अपने वैकल्पिक सिस्टम को लॉन्च कर चुका है। डॉलर में भुगतान के अंतरराष्ट्रीय सिस्टम स्विफ्ट की तर्ज पर इसे बनाया गया है। इसका नाम क्रॉस बॉर्डर पेमेंट सिस्टम (सिप्स) रखा गया है। इसके अलावा चीनी कंपनियों के ऐप अली-पे और टेन्सेंट-पे का भी अब कई देशों में उपयोग किया जाने लगा है। अपनी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय रूप देने की कोशिश में ही चीन ने अब हांगकांग शेयर बाजार में युआन में ट्रेडिंग (कारोबार) की सुविधा दे दी है।
साल 2020 में डिजिटल करेंसी लॉन्च करने वाला चीन दुनिया में पहला देश बन गया था। चीन इस इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम को भी दुनिया के अन्य देशों में फैलाने की कोशिश में है। डिजिटल करेंसी के जरिए होने वाले भुगतान में डॉलर की जरूरत नहीं पड़ती है।

जानकारों के मुताबिक, युआन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने की चीन की कोशिश में एक बड़ा अवरोध चीन की पूंजी नियंत्रण की नीति है। चीन के अंदर विदेशी मुद्राओं की तुलना में युआन की कीमत विनिमय बाजार के उतार-चढ़ाव से तय नहीं होती है। बल्कि यह दर सरकार तय करती है। लेकिन इस कमी को दूर करने के लिए फिलहाल चीन हांगकांग का इस्तेमाल कर रहा है, जहां बाजार अर्थव्यवस्था है।

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