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जिस तहसीलदार पर एफआईआर की ईओडब्ल्यू ने उससे बयान तक नहीं लिये

  • May 03, 2025

    • कलेक्टर ने कराई जांच, भूमि नामांतरण के प्रकरण की जांच में ईओडब्ल्यू ने राजस्व अधिकारियों को सूचना भी नहीं दी

    जबलपुर। नामांतरण के एक प्रकरण में एफआईआर का सामना कर रहे तहसीलदार और पटवारी के मामले की परतें जैसे-जैसे खुल रही हैं,वैसे-वैसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। ईओडब्ल्यू जैसी जिम्मेदार एजेंसी ने जिस तहसीलदार व पटवारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया, उनके बयान तक दर्ज नहीं किए। ईओडब्ल्यू के जांच अधिकारियों ने मामले की जांच के बारे में जिला प्रशासन को सूचना तक नहीं दी,जबकि आमतौर पर जानकारी दी जाती है।

    क्या है शिकायत
    मामले में प्रेमनगर के रहने वाले भूपेन्द्र सिंह ग्रेवाल 8 जुलाई 2024 ईओडब्ल्यू में शिकायत की थी गोरखपुर तहसीलदार भरत सोनी एवं शिखा तिवारी ने गलत नामांतरण किया है। ईओडब्ल्यू ने लंबी जांच के बाद तहसीलदार,पटवारी एवं अन्य पर 24 अप्रैल को मामला दर्ज कर लिया। शिकायतकर्ता अधिवक्ता भूपेंद्र सिंह ग्रेवाल का आरोप है कि उनके दिवंगत पिता अमर सिंह की मृत्यु का फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर संपत्ति खसरा नं-87, रकबा 38 सौ वर्गफुट, ग्राम महेशपुर, तहसील गोरखपुर का नामांतरण एक अन्य व्यक्ति हरचंद सिंह के नाम कर दिया गया। राजस्व प्रकरण क्रमांक 265/3-6/ 2024-25 में तहसीलदार ने फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र और विरोधाभासी स्थल निरीक्षण के बावजूद खसरा नं-86/2 का नामांतरण हरचंद सिंह के पक्ष में पारित कर दिया। इसके बाद प्रशासनिक हलकों में हलचल बढ़ गयी और विरोध शुरु हो गया।


    खाते और खसरे का पेंच
    ये मामला खाता नंबर 17 एवं खसरा नंबर 86/2 से जुड़ा हुआ है। राजस्व रिकॉर्ड में किसान का खाता नंबर हमेशा एक सा रहता है, उसके साथ अटैच खसरे नंबर कई हो सकते हैं और उनकी संख्या में भी घट-बढ़ भी हो सकती है। इस मामले में भी खाता नंबर को खसरा नंबर समझ लिया गया। जांच में पाया गया कि खुद आवेदक ने भी अपने आवेदन में खाता नंबर को खसरा नंबर लिख दिया था। प्रशासनिक अमले का बड़ा तर्क ये है कि यदि तहसीलदार व अन्य ने गड़बड़ी की होती तो वे मृत्यु प्रमाण पत्र के फर्जी पाए जाने पर नामांतरण निरस्त करने की कार्रवाई नहीं करते।

    बार कोड में अभी भी दिख रहा मृत्यु प्रमाण पत्र
    मप्र राजस्व अधिकारी संघ की जिला इकाई ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि तहसीलदार श्री सोनी एवं पटवारी शिखा तिवारी पर एफआईआर इसलिए गलत है, क्योंकि ईओडब्ल्यू ने सारे तथ्यों को नजरअंदाज किया। संघ के अनुसार, जिस मृत्यु प्रमाण पत्र को फर्जी बताया जा रहा है, उसे जांच समिति ने भी स्कैन किया है, वो अभी भी शो हो रहा है। आशंका होने पर तहसीलदार ने स्व-संज्ञान लेते हुए सत्यापन कराया और ननि के प्रतिवेदन के बाद तत्काल नामांतरण रद्द कर दिया। संघ ने कहा कि वे अगले सात दिनों तक काली पट्टी बांधकर कार्य करते हुए विरोध दर्ज कराएंगे। संघ की जबलपुर इकाई के जिलाध्यक्ष शशांक दुबे एवं संयोजक रत्नेश ठवरे ने कहा कि जिस तरह से ईओडब्ल्यू ने इस प्रकरण की जांच की है, वो विधिसम्मत नहीं है। लिहजा इस प्रकरण पर पुनर्विचार करते हुए एफआईआर में संशोधन किया जाना चाहिए।

    एफआईआर से नाम हटाए जाएं
    इस मामले की जांच के बाद प्रमुख सचिव राजस्व को पत्र लिखा गया है। जिसमें जांच रिपोर्ट का हवाला देकर आग्रह किया गया है कि राजस्व अमले का दोष साबित नहीं होता है इसलिए एफआईआर से इनके नाम हटाए जाएं। ये मामला मानवीय त्रुटि से जुड़ा हुआ है।
    दीपक सक्सेना, कलेक्टर, जबलपुर

    न्याय मिलने तक जारी रहेगा संघर्ष
    जब तक न्याय नहीं मिलेगा तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा। अभी हम काली पट्टी बांधकर काम करेंगे। इसके बाद भी यदि एफआईआर से नाम नहीं हटाए गये तो हमारा विरोध और तीव्र होगा। इस तरह के प्रकरणों से राजस्व अमले का मनोबल टूटता है,जो अनुचित है।
    रत्नेश ठवरे, संयोजक, मप्र राजस्व संघ

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