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अंग्रेजों के वीरभूमि छोडऩे पर हमीरपुर में सेनानियों ने फहराया था तिंरगा

-अंग्रेजों के भागने के बाद पूरे गांव में जलाए गए थे दीपक

हमीरपुर जिले में क्रांतिकारियों का गढ़ माने जाने वाले गांव में अंग्रेजों के भागने के बाद एतिहासिक मंदिर के सामने तिरंगा फहराकर हजारों ग्रामीणों ने जश्न मनाया था। पूरे क्षेत्र में आजादी के जश्न में घर-घर दीये जलाए गए थे।

हमीरपुर जिले के मुस्करा थाना क्षेत्र के गहरौली गांव में बांके बिहारी जू मंदिर स्थित है। इसका इतिहास भी सैकड़ों साल पुराना है। मंदिर में पहले अवध बिहारी महंत होते थे जिनके चमत्कार को आज भी गांव के लोग याद करते है। मंदिर के पुजारी राजा भैया दीक्षित ने बताया कि जिले का यही एक मंदिर है जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अतीत को संजोए है।

मंदिर की देखरेख करने वाले विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि इस मंदिर को सरकारी स्तर पर संवारने के लिए कोई मदद नहीं मिली है लेकिन स्वयं के खर्च से मंदिर को नए आयाम दिए गए है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी एसके दुबे ने बताया कि इस मंदिर को पर्यटन के दायरे में लाने के लिए अभी कोई योजना नहीं है। प्रस्ताव आने पर सर्वे कराया जाएगा। बताया कि जिले में खंडेह और करियारी गांव के कुछ धरोहर व मंदिर पर्यटन के दायरे में लाए जा चुके हैं।

बांके बिहारी मंदिर में अंग्रेजों के भागने के बाद फहरा था तिरंगा
गांव के बुजुर्ग विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि अंग्रेजों के खिलाफ यहां गांव के एतिहासिक बांके बिहारी मंदिर के तहखाने में सेनानियों ने रणनीति बनाई थी। अंग्रेजों को भगाने के लिए बड़ा आन्दोलन चला था जिसके बाद अंग्रेज अफसर भागने को मजबूर हो गए थे। 96 वर्षीय चन्द्रशेखर शुक्ला व जयनारायण गुरुदेव ने बताया कि अंग्रेजों को भागने के बाद आजादी का जश्न मनाया गया था। तिरंगा फहराकर घर-घर दीये भी जलाए गए थे। आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर मंदिर को अब सजाया जा रहा है। गांव में आजादी की सालगिरह पर कार्यक्रम भी करने की तैयारी शुरू की गई है।

भारतीय शिल्प कला का अनूठा उदाहरण है बांके बिहारी मंदिर
धनीराम गुरुदेव ने अपने अनुज पं.उधवराज के पुत्र प्रागदत्त के जन्मोत्सव पर इस मंदिर का निर्माण 1872 में कराया था। चूना, मिट्टी और कंकरीले पत्थरों से निर्मित मंदिर में भारतीय शिल्प कला का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है। मंदिर की छत से सटे कंगूरे, प्रमुख द्वार से लेकर बांके बिहारी महाराज के विराजमान स्थल तक फूल पत्ती, तैल चित्र और सनातनी देवी देवताओं की प्रतिमायें अंकित हैं। गहरौली गांव के भगवान का श्रृंगार सोने और चांदी से निर्मित है। मंदिर का शिखर 50 मीटर ऊंचा है। इसे आसपास के पच्चीस गांवों में इसे देखा जा सकता है।

अंग्रेजी हुकूमत में मंदिर में शीर्ष नेताओं ने ली थी शरण
बांके बिहारी जू देव मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों ने इस मंदिर से ही अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोला था। मंदिर के तहखाने में बुन्देलखंड केसरी नाम का अखबार टाइप करके निकाला जाता था। क्रांतिकारी पंडित मन्नीलाल गुरुदेव के नेतृत्व में बैजनाथ पाण्डेय, नत्थू वर्मा, जगरूप सिंह इस अखबार को चोरी छिपे बांटते थे। ये अखबार भी अंग्रेजों के खिलाफ जनता को लामबंद करने के लिये प्रेरित करता था। क्रांतिकारी अंग्रेजों से बचने के लिये सुरंग के जरिये मंदिर में आते जाते थे।

मंदिर में कांग्रेस के पहले अधिवेशन में आये थे जवाहरलाल नेहरू
मंदिर के पुजारी राजा भैया दीक्षित ने बताया कि वर्ष 1937 में कांग्रेस का पहला अधिवेशन इसी मंदिर के परिसर में हुआ था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू औैर पूर्व मुख्यमंत्री स्व. नारायण दत्त तिवारी सहित तमाम नेता आये थे। इस अधिवेशन में इन्दिरा गांधी भी नेहरू के साथ आयीं थीं। उस समय उनकी उम्र सिर्फ दस साल की थी। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के 25वें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिये राष्ट्र की ओर से पार्टी के जिलास्तरीय अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू व इन्दिरा ने ताम्रपत्र दिया था।

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