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पाकिस्तान में कैश से लेकर पेट्रोल तक की किल्लत, लग सकता है लॉकडाउन

कराची। पाकिस्तान में महंगाई (inflation in pakistan) को लेकर पिछले दो साल से मचे हाहाकार को लेकर आखिरकार इमरान खान की सरकार (Imran Khan’s government) ही चली गई और एक बार फिर नई नवाज की सरकार ने वापसी कर ली, लेकिन हालात जस के तस हैं। नई सरकार के सामने भी चुनौतियां (Challenges) ऐसी हैं कि इन से निपटने के लिए कर्जा लेना ही एक मात्र उपाय बचा है।

बता दें कि पाकिस्तान में पेट्रोल और डीजल की किल्लत लगातार बढ़ रही है। इसके अलावा कीमतों में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। इस बीच पाकिस्तान सरकार संकट से बचने को कर्मचारियों के कार्य दिवस ही कम करने पर विचार कर रही है। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने गत दिवस एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी। तेल की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों और देश में बढ़ती खपत के बीच पाकिस्तान सरकार ने यह फैसला लिया है। तेल की बढ़ती खपत और तेल की ऊंची अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण बढ़ते आयात खर्च के बीच सरकार इस फैसले पर विचार कर रही है। सरकार इस तरीके को अपना कर ईंधन बचाने की कोशिश कर रही है।



पाकिस्तान की सरकार का अनुमान है कि इससे 2.7 अरब डॉलर तक की अनुमानित वार्षिक विदेशी मुद्रा की बचत हो सकती है। यह अनुमान तीन अलग-अलग परिदृश्यों पर आधारित हैं, जो स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान द्वारा कार्य दिवसों और ईंधन संरक्षण के बीच तालमेल बिठाकर देश की विदेशी मुद्रा को 1.5 अरब डॉलर से 2.7 अरब डॉलर तक बचाने के लिए तैयार किए गए हैं।

बताया जा रहा है कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने जो प्रस्ताव तैयार किए हैं, उनमें से एक यह है कि चार कार्य दिवस और तीन छुट्टियां रहें। इससे औसत पीओएल बचत 12.2 करोड़ प्रति माह होने का अनुमान है। यह एक वर्ष में 1.5 अरब डॉलर तक जा सकता है। उल्लेखनीय है कि 90 प्रतिशत तेल की खपत कार्य दिवसों पर और शेष 10 प्रतिशत एक महीने में छुट्टी पर होती है।

पाकिस्तानी बैंक ने जो दूसरा प्रस्ताव तैयार किया है, उसके तहत चार कार्य दिवस, दो छुट्टियां और एक दिन के लॉकडाउन (व्यावसायिक गतिविधियां दो दिनों तक बंद रहेंगी) की बात शामिल है। इससे लगभग 17.5 करोड़ डॉलर प्रति माह बचत होगी, जो प्रति वर्ष 2.1 अरब डॉलर तक हो सकता है। तीसरा विकल्प यह है कि चार कार्य दिवस, एक अवकाश और दो दिन का लॉकडाउन रहे। इससे 23 करोड़ डॉलर या लगभग 2.7 अरब डॉलर की बचत हो जाएगी, हालांकि इस फैसले को बहुत कठोर माना जा रहा है क्योंकि यह जनता के विश्वास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

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