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57 साल पुराने सरकारी बैंक को बेच रही है सरकार…जानिए क्यों? अब आगे क्या होगा

नई दिल्ली। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को एक बड़े फैसले में आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) के विनिवेश को हरी झंडी दे दी। अब बैंक का मैनेजमेंट कंट्रोल भी उसके हाथ में नहीं होगा। सरकार ने हालिया बजट में इस बात को सार्वजनिक कर दिया था। अब उसी बात को अमली-जामा पहनाया जा रहा है। यहां विनिवेश का मतलब बिकने या निजीकरण से लगा सकते हैं। सरकारी भाषा विनिवेश का सीधा अर्थ है कि कंपनी को निजी हाथों में दिया जाएगा। जिस कंपनी का कंट्रोल पहले सरकारी हाथ में था, अब वह प्राइवेट हाथों में होगा।

यहां IDBI Bank को सरकार इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि केंद्र सरकार और उसकी संस्था (वित्त मंत्रालय) एलआईसी की 94 परसेंट हिस्सेदारी थी। अभी तक एलआईसी ही IDBI Bank का प्रमोटर है जिसके पास मैनेजमेंट कंट्रोल है। एलआईसी की इस बैंक में हिस्सेदारी 49.21 परसेंट है। अब मैनेजमेंट कंट्रोल एलआईसी ले लिया जाएगा।

इस बैंक का इतिहास देखें तो यह 1960 में शुरू हुआ लेकिन तब इसका नाम डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन हुआ करता था। बाद में इसे IDBI Bank बैंक में तब्दील कर दिया गया। इसके लिए संसद की ओर से इजाजत दी गई। देश के जितने भी राष्ट्रीयकृत बैंक हैं, उनका सारा काम संसदीय कानूनों के जरिये नियंत्रित होता है। ये बैंक जैसे ही प्राइवेट होते हैं, संसद की बाध्यता खत्म हो जाती है।

DFI से आईडीबीआई बैंक
DFI हो या IDBI Bank, दोनों ने देश में आद्योगिक विकास में बड़ी भूमिका निभाई है क्योंकि इनके जरिये कंपनियों को वित्तीय मदद मिली। इससे उद्योगों का कारोबार बढ़ा, रोजगार बढ़े, बाजार में मांग बढ़ी और विकास की रफ्तार तेज हुई। अब वित्तीय मामलों की कैबिनेट कमेटी ने IDBI Bank की बिक्री की इजाजत दे ही है। इस कमेटी के अध्यक्ष भारत सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिनकी अगुवाई में यह फैसला लिया गया। अब IDBI Bank बैंक के शेयर बिकेंगे। रिजर्व बैंक के नियमों के तहत सरकार और एलआईसी तय करेंगे कि शेयर किसे बेचना है। सरकार ने आम बजट में ऐलान किया था कि भविष्य में सरकारी बैंक बिकेंगे और इससे सरकार 1.75 करोड़ रुपये जुटाएगी।

ऐसे बना आईडीबीआई बैंक
DFI से IDBI बैंक बनाने के लिए सरकार ने इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1964 पारित किया था। इसके अंतर्गत 1 जुलाई 1964 को डीएफआई आईडीबीआई बैंक में तब्दील हो गया। कंपनीज एक्ट, 1956 के तहत आईडीबीआई बैंक को सरकार ने पब्लिक फाइनेंस इंस्टीट्यूशन यानी कि सार्वजनिक वित्तीय संस्थान घोषित किया।

आईडीबीआई बैंक 2004 तक वित्तीय संस्थान के रूप में काम करता रहा। लेकिन 2004 में उसे पूरी तरह से बैंक के रूप में तब्दील कर दिया गया। देश में व्यावसायिक कार्यों में तेजी लाने के लिए आईडीबीआई को बैंक का दर्जा दिया गया। वित्तीय संस्थान से बैंक में बदले जाने के लिए इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक (ट्रांसफर ऑफ अंडरटेकिंग एंड रीपील) एक्ट, 2003 लाया गया और आईडीबीआई एक्ट, 1964 को हटा दिया गया।

एलआईसी की हिस्सेदारी
बाद में सरकारी इंश्योरेंस संस्था एलआईसी ने आईडीबीआई बैंक में 51 परसेंट की हिस्सेदारी खरीद ली। अब इसके विनिवेश का काम शुरू हो गया है। एलआईसी बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित कर बताया कि वह बैंक में अपनी हिस्सेदारी घटाएगा। इसके लिए कुछ विनिवेश किया जाएता और कुछ शेयर की बिक्री भी होगी। बिक्री के दाम देखकर मैनेजमेंट बोर्ड को ट्रांसफर करने का भी फैसला लिया जाएगा।

इसी आधार पर एलआईसी आईडीबीआई बैंक में अपना शेयर घटाएगा। माना जा रहा है कि जो कंपनी बैंक में शेयर खरीदेगी, वह अपना फंड लगाएगी। बैंक का बिजनेस बढ़ सके, इसके लिए नई टेक्नोलॉजी और अच्छे प्रबंधन का इंतजाम होगा। इसके बाद आईडीबीआई बैंक सरकार और एलआईसी के भरोसे न होकर प्राइवेट फंड से अपना विकास कर पाएगा।

रिजर्व बैंक का एक्शन
इस साल मार्च महीने में रिजर्व बैंक ने प्रोंप्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) से आईडीबीआई बैंक को बाहर निकाल दिया था और अपनी निगरानी में ले लिया था। पीसीए के तहत बैंक पर कुछ पाबंदियां भी लगाई गई थीं जिनमें विस्तार, निवेश और कर्ज देने में मनाही शामिल थी। रिजर्व बैंक ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि बैंक का एनपीए मार्च 2017 में 13 परसेंट से ज्यादा हो गया था। बैंक इतने बड़े लोन में फंस गया कि रिजर्व बैंक को उसे अपनी निगरानी में लेना पड़ा। बैंक का बोझ एक तरह से सरकार का बोझ था क्योंकि यह पूरी तरह से सरकारी कंपनी है।

बैंक एसोसिएशन की मांग
ऑल इंडिया बैंक इंप्लॉइज एसोसिएशन (AIBEA) का मानना है कि आईडीबीआई बैंक के साथ उसकी सबसे बड़ी परेशानी 36 हजार करोड़ रुपये का लोन है। मार्च 2021 तक एक साल में बैंक को 1900 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ जिसमें 1500 करोड़ रुपये तो एनपीए की भरपाई में ही चले गए। अब इस गलती को दुरुस्त करने के लिए बैंक को बेचा जा रहा है।

एसोसिएशन का कहना है कि बैंक की खामियों को छुपाने के लिए उसे बेचा जा रहा है और उसने मांग की है कि सरकार अपने इस फैसले को वापस ले। एसोसिएशन ने यह भी कहा है कि बैंक में जमा 2.3 लाख करोड़ रुपये लोगों के पैसे हैं जिसका इस्तेमाल लोगों और देश की भलाई के लिए होना चाहिए, न कि प्राइवेट कॉरपोरेट के लिए।

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