ब्‍लॉगर

लालच के पहाड़ से दबी कोरोना जांच

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

निजी अस्पतालों और पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं ने 1600 रुपये में कोविड-19 की जांच न करने की चेतावनी दी है और सरकार से इस दर में और इजाफा किए जाने की मांग की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वह कोविड-19 की जांच के लिए 1600 रुपये से अधिक न लें। निजी चिकित्सालय और प्रयोगशाला संचालक इससे पहले कोविड जांच कराने वालों से एकबार में 2500 रुपये लेते रहे हैं।

सवाल यह है कि जब एक हजार या उससे कम कीमत की आईआईटी दिल्ली द्वारा तैयार पीपीई किट उपलब्ध हैं और उन्हें तीन बार पहना जा सकता है तो इस तरह की मांग का औचित्य क्या है? मायलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस द्वारा बनाई गई रैपिड एंटीजन टेस्ट किट को मंजूरी मिल चुकी है। इस पहली भारतीय किट पैथोकैच कोविड-19 की भी कीमत 450 रुपये है। अगर कर्मचारियों के वेतन, बिजली खर्च, कार्यालय के अन्य खर्च को भी जोड़ा जाए तो प्रति व्यक्ति जांच खर्च 1200 रुपये से अधिक नहीं जाता। केंद्र और राज्य सरकारों को पैथालॉजी केंद्रों पर नियुक्त कर्मचारियों, उनको मिलने वाले वेतन आदि की जांच करानी चाहिए। उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि एक कर्मचारी से पैथालॉजी केंद्र कितना काम लेते हैं। उनके वेतन का खर्च एक ही मरीज पर डालना कितना उचित है। पैथालॉजी केंद्रों पर जितने मरीज आते हैं, उनकी जांच से जितनी राशि पैथालॉजी केंद्रों को मिलती है, क्या उसी अनुपात में अपने कर्मचारियों को वे वेतन भी देते हैं या नहीं? यदि नहीं तो उनपर श्रम विभाग द्वारा कार्रवाई क्यों नहीं की जाती। कोरोना काल में जहां भारत समेत दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था चरमराई है, वहीं पैथालॉजी केंद्रों की आमदनी में बेतहाशा वृद्धि हुई है।

पैथोलॉजी केंद्र कोरोना जांच के नाम पर प्रति मरीज दो बार में पांच से छह हजार रुपये तक मनमाने ढंग से वसूलते रहे हैं। जो जांच सरकारी चिकित्सालयों में कम पैसे में हो जाती है, उसी जांच के निजी पैथालॉजी केंद्र मरीजों और उनके तीमारदारों से कितना वसूलते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। दो अलग-अलग पैथालॉजी केंद्रों पर जांच कराने पर उसके नतीजे भी अलग-अलग निकलते हैं। सवाल यह है कि यह सब जानने-समझने के बाद भी पैथालॉजी केंद्र कोरोना संक्रमितों से मनमाना वसूली पर आमादा हैं और इस निमित्त सरकार पर दबाव बना रहे हैं, क्या सरकार को उन्हें मनमानी करते रहने देना चाहिए।

निजी अस्पताल और लैब संचालक कोरोना बीमारी को अपने लिए अवसर मान रहे हैं। उनके लिए जांच पैसा कमाने का जरिया भर है। ‘मरता है कोई तो मर जाए, हम तीर चलाना क्यों छोड़ें?’ अस्पतालों में प्रसव कराने गई महिला के बच्चे को बेचकर अपनी फीस वसूलने तक की घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बन चुकी है। संवेदनशीलता मर चुकी है। इसका प्रमाण यह है कि कुछेक अस्पतालों में मरीज की मौत के बाद उसका शव तक परिजनों को नहीं दिया गया। पुलिस को हस्तक्षेप कर लाश परिजनों को दिलवानी पड़ी। निजी चिकित्सालयों की इस नादिरशाही पर लगाम आखिर कौन लगाएगा? चिकित्सकों को धरती का दूसरा भगवान कहा जाता है लेकिन भगवान के लोभ प्रतिरूप देखना कौन पसंद करेगा?

पैथोलॉजी केंद्र संचालकों ने 1600 रुपये में जांच न करने की चेतावनी तब दी है, जब भारत में में कोरोना संक्रमितों की तादाद 47,54,357 हो गई है। पिछले 24 घंटे में कोराना संक्रमण के 94 हजार से अधिक नये मामले सामने आए हैं और 1114 लाेगों की मौत हुई है।

निजी चिकित्सालयों और पैथालॉजी केंद्रों के संचालकों की कोरोना जांच न करने की चेतावनी भरी चिट्ठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रास नहीं आई है। उन्होंने निर्देश दिया है कि निजी अस्पतालों द्वारा कोविड संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए निर्धारित पैकेज के अनुसार ही धनराशि ली जाए।

इसमें संदेह नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना से निपटने के लिए बेहद गंभीर है। देशभर में काेरोना वायरस की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़कर 1,711 हो जाना इसका प्रमाण है। इनमें 1,049 सरकारी और 662 निजी प्रयोगशालाएं हैं। आरटी पीसीआर आधारित परीक्षण प्रयोगशालाएं 870 हैं जिसमें 471 सरकारी और 399 निजी हैं जबकि ट्रूनेट आधारित परीक्षण प्रयोगशालाओं की संख्या 719 हैं जिसमें 544 सरकारी और 175 निजी हैं। सीबीएनएएटी आधारित परीक्षण प्रयोगशालाएं 122 हैं। इनमें 34 सरकारी और 88 निजी हैं। इन 1,711 प्रयोगशालाओं ने 12 सितंबर को 10,71,702 नमूनों की जांच की। इस तरह अब तक कुल 5,62,60,928 नमूनों की जांच की जा चुकी है। कोविड जांच की लागत को लेकर अलग-अलग राय जाहिर कर रहे हैं। किसी के अनुसार 1700 से 1800 रुपये की लागत आ रही है तो कहीं 2200 रुपये। निजी चिकित्सालय अगर कम लागत लगाकर मरीजों से ज्यादा राशि वसूल रहे हैं तो उन्हें कोरोना योद्धा कहलाने और इस नाम पर सम्मान पाने का क्या अधिकार है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जबतक दवाई नहीं, तबतक ढिलाई नहीं। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए यह तरीका शत-प्रतिशत सच है लेकिन निजी अस्पतालों पर, निजी पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए। कोरोना काल में हर आम और खास की आमदनी घटी है। बहुतेरों की नौकरियां चली गई हैं। अगर निजी चिकित्सालयों को कोरोना संक्रमितों के इलाज के नाम पर मरीजों से ज्यादा पैसे ही वसूलने हैं तो उनपर सरकार पाबंदी भी तो लगा सकती है। मेदांता जैसे प्रतिष्ठित अस्पताल में सांसद कौशल किशोर की उपेक्षा पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐतराज जाहिर किया था। यह सच है कि कोरोना का इलाज रामभरोसे ही हो रहा है। लोग बड़ी संख्या में स्वस्थ भी हो रहे हैं। यह उनकी जीवनी शक्ति और धैर्य का मामला है लेकिन कोरोना संक्रमितों की अर्थव्यवस्था कोरोना की जांच और इलाज के नाम पर ध्वस्त न हो, सरकार को इसपर विचार करना होगा।

दाल में नमक उतना ही अच्छा लगता है जितना की रुचिकर हो। संस्थाओं के लाभ पर भी यही सिद्धांत लागू होता है। निजी अस्पताल कोरोना संक्रमितों को एक ही बार में दुह लेना चाहते हैं, यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। डॉक्टरी पेशे की भावनाओं और सिद्धांतों के भी प्रतिकूल है। ऐसा ही चलता रहा तो गरीब और वंचित तबका इलाज ही नहीं करा पाएगा। एक परिवार के चार लोग भी बीमार हो गए तो उसकी जेब से 20-25 हजार केवल यह तय करने में खर्च हो जाएंगे कि कोरोना है या नहीं है, इलाज तो अलग बात है। अच्छा होता कि निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे धरती के भगवान खुद से पूछते कि वे जो कर रहे हैं, वह कितना जायज है?

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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