खरी-खरी

ममता देख ली… अब माया देख लो…सूती साड़ी… कच्चा मकान… और अंदर निकली इतनी बड़ी दुकान…

पश्चिम बंगाल की सीधी सादी दिखने वाली ममता का मंत्री आधा अरब रुपया नकद बटोरता है… अभिनेत्री से नैन-मटक्का रखता है… उसके घर को बैंक समझता है… पूरे प्रदेश में डाकेजनी करता है…यह तो वो है जो सामने दिखता है… अभी तो कई राज खुलेंगे… नोटों के और ढेर लगेंगे…जमीन-जायदाद, बेनामी संपत्ति के भंडार नजर आएंगे… यह सारा गौरख धंधा उस ममता की आंखों के सामने रचा जाता है, जो ईमान की दुहाई देती हैं और बगल में बदनामों को रखती हैं… इन्हीं पैसों से सत्ता हथियाई जाती है… वोटों की खेती उगाई जाती है…पश्चिम बंगाल की सरजमीं विदेशी दुश्मनों की घुसपैठ से बसाई जाती है… कहीं बांग्लादेशी तो कहीं पाकिस्तानी सीमाओं से देश में घुसते हैं… इसी राज्य की सरहद से पूरे देश में फैलकर आतंक बरपाते हैं और देश के अमन-चैन, सुख-शांति नोंच डालते हैं…उधर ममताजी राष्ट्रप्रेम की लौरी सुनाती हैं… वंदे मातरम् का नारा लगाती हैं और अपने मंत्रियों से भ्रष्टाचार करवाती हैं…जब एक मंत्री के पास कुबेर-सी दौलत पाई जाती है तो दूसरे मंत्रियों की कमाई आसानी से समझ में आती है… जब प्यादों की अमीरी इस कदर नजर आती है तो रानी की रौनक अपने आप समझ आ जाती है…ममताजी यदि विपक्षी दलों की नेता बनने का ख्वाब सजाती हैं…ताल ठोंककर पश्चिम बंगाल की सियासत पाती हैं… पूरे देश की मलिका बनने के ख्वाब सजाती हंै तो जाहिर है यह ख्वाब दौलत के पलंग पर सोने वाले हुक्मरानों की आंखों में ही आ पाते हैं… यह कलंक है इस देश का, जहां सत्ता दौलत से पाई जाती है… सरकारें बेची-खरीदी जाती हैं…जनता की मेहनत की कमाई सियासत के काम आती है…जुल्म और ज्यादती की यह दास्तां उस आजाद देश में लिखी जाती है, जहां देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेज भी ईमानदार थे… सीने पर गोली मारते थे…छाती पर चढक़र कर लादते थे… खुली लूटपाट कर संपत्ति अपने देश ले जाते थे… यहां तो नेता मारता नहीं, बल्कि तलता है…आजाद देश का नागरिक हर दिन मरता है… शिक्षा का पैसा गंवार मंत्री हड़प जाता है और अपनी नापाक अकल से बंगाल का पार्थ बन जाता है…ऐसे कई पार्थों को पालतीं ममता रजिया सुल्तान बन जाती हैं और देश में गुलामी की नई इबारत लिखी जाती है… उस आजाद देश में लोकतंत्र की कीमत कहां रह जाती है, जहां सियासतें खरीदी-बेची जाती हैं… वोट पैसों से खरीदे जाते हैं… विरोधी यदि जीत भी जाए तो पैसे हजारों में बांटने के बजाय एक को दिए जाते हैं…हम जहां हैं वहीं खड़े रह जाते हैं…आजादी के दिन जिन गांधी, आजाद, भगतसिंह और नेताजी पर माला चढ़ाते हैं वो भी देश की हालत देखकर आंसू बहाते हैं और यही चाहते हैं कि हम भी भगतसिंह बनकर बंदूक उठाएं और देशभर में फैले पार्थों को गोली से उड़ाएं…या गांधी बनकर सडक़ों पर उतर आएं और लाठियां खाकर लोकतंत्र को जगाएं…

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