वाशिंगटन। भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला (Group Captain Shubhanshu Shukla) ने इतिहास रच दिया है। शुभांशु इंटरेनशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station) पहुंचने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। शुभांशु और उनके तीन साथियों ने आज शाम अपने ड्रैगन अंतरिक्ष यान को सफलता पूर्वक तरीके से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से जोड़ा। इसके बाद पूरी टीम सफलतापूर्वक स्टेशन में दाखिल हुई। वहां पर पहले से मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों ने पूरी टीम का जोर-शोर के साथ स्वागत करते हुए एक-दूसरे को गले लगाया। आईएसएस पहुंचते ही शुभांशु शुक्ला ऐसा करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। उन्होंने देश को खास संदेश में कहा- आसान लगता है, लेकिन सिर थोड़ा भारी है लेकिन मेरे कंधे पर जो तिरंगा है, उससे गर्व महसूस हो रहा है।
नासा की तरफ से जारी किए गए वीडियो में सबसे पहले उनका अंतरिक्ष यान स्टेशन के साथ जुड़ते हुए देखा जा सकता है। इसके बाद शुभांशु शुक्ला समेत उनकी पूरी टीम मुस्कुराते हुए आगे बढ़ती है, स्टेशन में मौजूद सभी लोग उनका स्वागत करते हैं। इसके बाद वहां पर सभी लोग हंसते हुए और कुछ पीते हुए दिखाई देते हैं।
कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में अपने साथ गाजर का हलवा, मूंग दाल हलवा और आम का रस अपने साथ ले गए हैं। ग्रुप कैप्टन शुक्ला के साथ उनकी टीम में तीन और यात्री भी शामिल हैं, जिनमें पोलैंड के स्लावोज उज्नान्सकी, हंगरी के टिबोर कापू और अमेरिका के डॉ पैगी व्हिटसन हैं।
आपको बता दें शुभांशु शुक्ला का यह मिशन एक्सिओम-4 का हिस्सा है, जो ह्यूस्टन स्थित एक्सिओम स्पेस प्रोग्राम द्वारा आयोजित किया जा रहा है। शुक्ला और उनकी टीम अपने इस 14 दिन के मिशन में आईएसएस पर 60 प्रयोग करेंगे, जिनमें से 7 का प्रतिनिधित्व शुक्ला करेंगे।
यह मिशन नासा और इसरो के बीच एक प्रमुख सहयोग को भी दर्शाता है। इस मिशन के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस प्रतिबद्धता को भी पूरा किया गया, जिसमें इसरो से जुड़े व्यक्ति को अंतरिक्ष में भेजने पर सहमति बनी थी। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से दोनों एजेंसियां पांच साइंटिफिक और दो स्टेम फोकस्ड इन प्रयोग करेंगीं। यह प्रयोग दोनों एजेंसियों के बढ़ते वैज्ञानिक अनुसंधान पर दीर्घकालिक साझेदारी की दर्शाता है।
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के बारे में खास बातें..
इसरो के गगनयान प्रोजेक्ट का हिस्सा और भारतीय वायुसेना में ग्रुप कैप्टन 39 साल के शुभांशु शुक्ला लखनऊ के रहने वाले हैं। वह भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले भारतीय बन गए हैं।
भारतीय वायुसेना के काबिल पायलट शुक्ला को इसरो के गगनयान प्रोजेक्ट के लिए भी चुना गया है। अपनी इस अंतरिक्ष यात्रा के अनुभव को वह आने वाली गगन यान प्रोजेक्ट में इस्तेमाल करेंगे। इसके अलावा शुक्ला ने भारतीय वायुसेना के कई विमान Su-30 MKI, MiG-21, MiG-29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर और An-32 सहित कई तरह के विमानों पर 2,000 से ज़्यादा घंटे उड़ाने का अनुभव हासिल किया है। अपनी टीम में शक्स नाम से जाने जाने वाले वाले शुक्ला एक्सिओम मिशन को पायलट कर रहे हैं। डॉकिंग के दौरान यान की संचालन की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के हाथों में थी।
“तिरंगा मेरे साथ है, और आप सब भी”
शुभांशु शुक्ला जब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पहुंचे, तो उनका पहला भावनात्मक बयान हर भारतीय के दिल को छू गया। अपने पहले संदेश में शुभांशु ने कहा, “यहां खड़ा होना जितना आसान दिख रहा है, असल में उतना नहीं है। सिर थोड़ा भारी लग रहा है, लेकिन सब ठीक है। यह सिर्फ शुरुआत है, अगले 14 दिन हम विज्ञान के कई प्रयोग करेंगे। मैं तिरंगा लेकर आया हूं और आप सभी को अपने साथ लाया हूं।”
‘नमस्कार फ्रॉम स्पेस’
डॉकिंग से पहले अंतरिक्ष से भेजे एक भावुक संदेश में शुभांशु ने कहा, “स्पेस से सभी को नमस्कार। यह सिर्फ मेरी उपलब्धि नहीं है, बल्कि भारत के 140 करोड़ लोगों की सामूहिक सफलता है। अंतरिक्ष में तैरना एक अविश्वसनीय और विनम्र अनुभव है।”
“जैसे बच्चा चलना सीखता है…”
अपने पहले अंतरिक्ष अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “लगता है मैं यहां काफी सो रहा हूं! गुरुत्वाकर्षण रहित माहौल में खुद को संभालना सीख रहा हूं। लेकिन मज़ा बहुत आ रहा है। गलती करना यहां मजेदार है – और किसी और को करते देखना उससे भी ज़्यादा!”
14 दिन, 60 से अधिक प्रयोग
Axiom-4 मिशन के अंतर्गत शुक्ला और उनकी टीम – अमेरिका की पैगी विटसन, पोलैंड के सावोस उजनांस्की और हंगरी के तिबोर कपु – अगले 14 दिनों तक ISS पर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में 60 से अधिक प्रयोग करेंगे। इन प्रयोगों में कैंसर रिसर्च, DNA रिपेयर और उन्नत निर्माण तकनीकों से जुड़ी परियोजनाएं शामिल हैं।
भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण
यह ऐतिहासिक मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक नया मील का पत्थर है, जो राकेश शर्मा के 1984 के मिशन के बाद मानव अंतरिक्ष यात्रा में भारत की वापसी का प्रतीक है।
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