तेहरान। ईरान और इजरायल के बीच युद्ध (Iran and Israel war) के बीच भारत (India) की भी चिंताएं बढ़ने लगी हैं। अगर यह युद्ध लंबा खिंचा तो भारत में तेल और गैस की आपूर्ति (Supply of oil and gas.) बाधित हो सकती है। आशंकाएं इस बात की भी हैं कि हालत गंभीर होने पर ईरान स्ट्रेट ऑफ होरमुज को बंद कर सकता है। यह वो समुद्री रास्ता है, जिससे दुनिया भर में तेल और गैस सप्लाई होती है। इसके बंद होने का असर भारत में होने वाली 4सप्लाई पर भी पड़ेगा। इसको देखते हुए भारत ने वैकल्पिक रास्तों की तलाश शुरू कर दी है। भारत की नजर दक्षिण अफ्रीकी देशों और अन्य विकल्पों पर टिकी हुई है।
क्या है स्ट्रेट ऑफ होरमुज
स्ट्रेट ऑफ होरमुज एक समुद्री रास्ता है। यह फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है। फारस की खाड़ी से खुले समुद्र तक जाने का यह एकमात्र रास्ता है। स्ट्रेट ऑफ होरमुज फारस से हर दिन करीब 2 करोड़ बैरल कच्चा तेल गुजरता है। भारत सऊदी अरब, इराक, कुवैत जैसे देशों से तेल इसी रास्ते से खरीदता है। इस रास्ते पर ईरान का नियंत्रण है। ईरान और इजरायल के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से ही तेल मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी हालात पर नजर रखे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक यह देखा जा रहा है कि तेल सप्लाई बाधित होने और तेल के दाम बढ़ने की स्थिति में क्या रास्ते अपनाए जा सकते हैं। बता दें कि अगर ईरान ने स्ट्रेट ऑफ होरमुज को बंद किया तो भारत का करीब 40 फीसदी क्रूड ऑयल और 54 फीसदी तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की आपूर्ति पर असर होगा।
इमरजेंसी के लिए पूरी तैयारी
हालांकि भारतीय रिफायनरियों और गैस कंपनियों को उम्मीद है कि ईरान इस रास्ते को बंद नहीं करेगा। इसके बावजूद आपातकाल के लिए तैयारियों में कोई कमी नहीं जा रही है। इसकी दो बड़ी वजहें हैं, ऐसा करने पर ईरान और अन्य खाड़ी देशों में गैस और तेल सप्लाई बाधित होगी। इसके अलावा ईरान का यह कदम अमेरिका से सीधे टकराव को न्यौता दे सकता है। इन सबके बावजूद अगर यह रास्ता बंद हुआ तो मुश्किल बढ़ती तय है। ईटी के मुताबिक एक एग्जीक्यूटिव ने बताया कि अगर ईरान ने यह रास्ता बंद किया तो दुनिया भर के तेल और गैस भंडार में कमी आएगी। कोई मतलब नहीं है कि आपने कितनी तैयारी की है। दुनिया भर की सभी अर्थव्यवस्था इसकी चपेट में आएंगी। सप्लाई बाधित होगी तो तेल के दाम में भी इजाफा होना तय है। अगर भारत अतिरिक्त सप्लाई के लिए पश्चिम अफ्रीका का रुख करता है तो अन्य आयातक भी उसी तरफ जाएंगे।
भारत का क्या है हाल
भारत अपनी जरूरत का 90 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। इसमें सबसे ज्यादा हिस्सा खाड़ी देशों से आता है। भारत के कुल कच्चे तेल में से 35 फीसदी रूस से, 40 फीसदी से थोड़ा ज्यादा खाड़ी देशों से और बाकी अफ्रीका, अमेरिका व अन्य देशों से आता है। अफ्रीका से अप्रैल के 12 फीसदी के मुकाबले मई में 5 फीसदी तेल ही आयात हुआ है। इन सबके बावजूद भारतीय रिफाइनरियां फिलहाल ‘पैनिक बाइंग’ से बच रही हैं।
अगर भारत की बात करें तो तेल मंत्रालय के मुताबिक हमारे पास 74 दिनों की राष्ट्रीय खपत के बराबर कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का भंडारण क्षमता है। इसमें 9.5 दिनों की मांग को पूरा करने वाला रणनीतिक रिजर्व भी शामिल है। यह स्टोरेज रिफाइनरियों, पाइपलाइनों, प्रोडक्ट डिपो के साथ-साथ खाली टैंकों में है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इन सबके बावजूद अगर सप्लाई क्रंच हुआ तो मुश्किल खड़ी होने से कोई रोक नहीं पाएगा।
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