खरी-खरी

यह साजिश है या जीने की ख्वाहिश

अब तो जागो सोने वालों…

आजादी के बाद गुलामी की कशमकश… देश शिखर पर है और जिंदगियां पाताल में… क्यों कूदना पड़ा उन नौजवानों को गूंगे-बहरे और अंधे सांसदों के बीच… जिंदगी की कशमकश से जूझते वो नौजवान भी या तो खुदकुशी कर लेते या जिंदगी की जंग लड़ते… कोई बेरोजगार है तो कोई भ्रष्टाचार से पीडि़त… कोई भूख का सताया है तो कोई कारोबार के लिए जंग लड़ रहा है… अमीर और अमीर होता जा रहा है… गरीब कसमसा रहा है… नेता हरियाली दिखा रहे हैं… तरक्की की जीडीपी बता रहे हैं… विदेशों में महानता के गीत गाए जा रहे हैं और देश के नौजवान मौत को गले लगा रहे हैं… कितने बेबस फांसी चढ़ जाते हैं… कर्ज लेकर अपनी जान गंवाते हैं… तो कई भूखे मरते परिवार को देखकर हर दिन मरते नजर आते हैं… इन बेबस जिंदगियों पर न कोई निगाह डालता है न कोई उनकी आवाज सुनने की परवाह करता है… देश कृषि-कर्मण्य कहला रहा है और किसान कर्ज में जान गंवा रहा है… प्रधानमंत्री वोकल फॉर लोकल का नारा लगाते हैं, लेकिन अंबानी-अडानी लोकल का कारोबार निगलते जा रहे हैं… रिलायंस किराने की दुकान से लेकर सब्जी भी बेचने पर आमादा हो जाता है… छोटे दुकानदारों का सामान बड़े-बड़े मॉलों में बेचा जा रहा है… ऑनलाइन कारोबार देश में फैलता जा रहा है… युवा महादेव ऐप जैसे सट्टे की भेंट चढ़ता जा रहा है… तरक्की का यह सुनहरा सफर गरीबों की मौत का पन्ना बनता जा रहा है… सरकार रोजगार के नारे लगाती है… रोजगार तो दे नहीं पाती है, उलटा कारोबार मिटाती है… ऐसे में नौजवान या तो जान गंवाएं या जिंदगी की जंग में शामिल हो जाएं… कल भी यही हुआ… आजाद देश में गुलामी से बदतर जिंदगी जीते नौजवानों मेें भगतसिंह की प्रेरणा आई… वो आवाज गुंजाना चाहते थे… सरमायेदारों तक पहुंचाना चाहते थे… देश अपना था… लोग अपने थे… इसलिए धमाके के बजाय धुएं की जुगत भिड़ाई… अब हम यह उनकी साजिश समझें या जीने की ख्वाहिश…

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