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इजराइल-फिलिस्तीन टकरावः धर्म और मानवाधिकारों की भी है यह लड़ाई !

 

डॉ. प्रभात ओझा

इजराइल-फिलिस्तीन के बीच ताजा संघर्ष कब बड़े युद्ध में तब्दील हो जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता। पहले के अनुभव इसी तरह के रहे हैं। आज भी जिसे युद्ध के बजाय संघर्ष ही कहा जा रहा है है, कम खतरनाक नहीं है। फिलहाल फिलिस्तीनी संगठन हमास ने इजरायल के तेल अवीव, एश्केलोन और होलोन जैसे शहरों को भी निशाना बनाया है। इजराइल और फिलिस्तीन के बीच ये संघर्ष 7 मई को पूर्वी यरुशलम में शुरू हुआ था। बुधवार, 12 मई तक के संघर्ष में 38 लोग मारे जा चुके थे, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए। अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के दिन तो इन हमलों में एक भारतीय नर्स की भी मौत हो गई।

आखिर ये युद्ध क्यों शुरू हो रहा है, जिसमें कई पक्ष शामिल लगते हैं। कहा तो यहां तक गया कि तेल अवीव शहर पर एक साथ 100 से भी ज्यादा रॉकेट दागे गये, जिन्हें इजराइली एंटी राकेट प्रक्षेपास्त्रों ने हवा में ही नष्ट कर दिए। जो भी हो, संघर्ष के दौरान हथियार सिर्फ दुश्मनों को ही लक्ष्य नहीं करते। संयुक्त राष्ट्र संघ ने ताजा हालात पर चिंता जताते हुए इसे बड़े युद्ध में तब्दील होने की आशंका जतायी है। उधर, तुर्की के राष्ट्रपति रेचिप तैय्यप अर्दोआन की पहल पर सऊदी अरब, बहरीन और पाकिस्तान ने इजराइल की ओर से अल-अक़्सा मस्जिद के पास हिंसक कार्रवाई की निंदा की है। राष्ट्रपति रेचिप तैय्यप अर्दोआन ने तो फिलिस्तीनी संगठन हमास की राजनीतिक इकाई से बात कर तुर्की की ओर से हरसंभव मदद का भरोसा दिया। उन्होंने अल अक्सा मस्जिद पर हमले को आतंकी कार्रवाई की संज्ञा देते हुए मुस्लिम जगत के एकजुट होने की भी जरूरत बतायी।

अल अक्सा मस्जिद के बहाने मुस्लिम जगत की चिंता अपने समुदाय के लोगों की भी है। यह मस्जिद जिस शहर यरुशलम में है, ईसाई और यहूदी धर्मों के अनुयायियों के लिए भी खास है। मुस्लिम यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद तीसरी सबसे पवित्र जगह मानते हैं। कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद मक्का से यहीं आए थे। इसके पास जो ‘डॉम ऑफ रॉक’ है, वहीं से पैगंबर मोहम्मद जन्नत के लिए रवाना हुए।

दूसरी ओर  यरुशलम में ईसाइयों के लिए ‘द चर्च ऑफ द होली सेपल्कर’ बहुत मायने रखता है। दुनिया भर के ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह को यहीं  सूली पर चढ़ाया गया था। यहीं प्रभु यीशु के पुनर्जीवित हो उठने वाली जगह भी है। तीसरा मुख्य स्थान यरुशलम का वेस्टर्न वॉल है। यहूदी इसे अपने पवित्र मंदिर की बची हुई दीवार मानते हैं। यहीं ‘होली ऑफ होलीज’ को यहूदी  इब्राहिम की ओर से अपने बेटे इसाक की कुर्बानी की जगह बताते हैं। यहूदी तो यहीं से दुनिया के निर्माण की सच्चाई भी बताया करते हैं। अब तीन धर्मों की आस्था का यह शहर विवाद का केंद्र भी है। वर्ष 1967 के युद्ध में इजराइल ने पूर्वी यरुशलम पर भी कब्जा कर लिया। पूरे यरुशलम को ही वह अपनी राजधानी बताता है। फिलिस्तीनी भी इसे अपनी भावी राजधानी के रूप में देखते हैं।

यरुशलम का विवाद पुराना है। इजराइल का वर्तमान भू-भाग कभी तुर्की के अधीन था। तुर्की का वह साम्राज्य ओटोमान कहलाता है। जब 1914 में पहले विश्व युद्ध के दौरान तुर्की के मित्र राष्ट्रों के खिलाफ होने से तुर्की और ब्रिटेन के बीच युद्ध हुआ। ब्रिटेन ने युद्ध जीतकर ओटोमान साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया। तब एक राजनीतिक विचारधारा ‘जियोनिज्म’ ने अलग और स्वतंत्र यहूदी राज्य के लिए प्रेरित किया। इसके तहत दुनियाभर से यहूदी फिलिस्तीन आने लगे, जिससे यहां यहूदियों की भी जनसंख्या बढ़ने लगी। इसी दौरान 1917 में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को यहूदियों की मातृभूमि बनाने के लिए प्रतिबद्धता जतायी। जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ, 1945 में ब्रिटेन पहले जैसा शक्तिशाली नहीं रहा। यहूदियों के फिलिस्तीन आते रहने के बीच दूसरे देशों ने ब्रिटेन पर यहूदियों के पुनर्वास का दबाव बनाया। ब्रिटेन इस मामले से अलग हो गया। मामला 1945 में उसी साल बने संयुक्त राष्ट्र संघ में चला गया, जहां से दो साल बाद नवंबर 1947 में फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांटने का निर्णय हुआ। एक अरब राज्य और दूसरा हिस्सा इजराइल बना। यरुशलम स्वतंत्र रूप से अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रखने का फैसला हुआ।


अरब देशों ने यह कहते हुए संयुक्त राष्ट्र का फैसला मानने से इनकार कर दिया कि आबादी के हिसाब से उन्हें कम जमीन मिली। बंटवारे के पहले करीब 90 फीसदी जमीन पर अरब लोगों का ही कब्जा था। साल 1948 में इजराइल ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और फिर अमेरिका ने उसे एक देश के रूप में मान्यता दे दी। तब से अरब-इजराइल अथवा इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध का सिलसिला ही चल पड़ा।

फिलिस्तीन चाहता है कि इजराइल 1967 से पहले वाली अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर लौट जाय। स्वाभाविक है कि उसमें पूर्वी यरुशलम भी है। वह वेस्ट बैंक तथा गाजा पट्टी में स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र चाहता है। इसके विपरीत इजराइल यरुशलम से अपना दावा छोड़ने को कतई तैयार नहीं होता। वह यरुशलम को अपनी राजधानी से कम मानने की किसी भी स्थिति के लिए तैयार नहीं है। इजराइल और जॉर्डन के मध्य मौजूद वेस्ट बैंक को इजराइल ने 1967 से कब्जा कर रखा है। इसी तरह इजराइल और मिस्र के बीच गाजा पट्टी पर फिलहाल फिलिस्तीनी संगठन हमास का कब्जा है। इजराइल ने सितंबर 2005 में गाजा पट्‌टी से अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया था। एक और विवादित क्षेत्र पठारी इलाका गोलन पट्टी पर इजराइल का कब्जा है।

रोचक यह है कि विवाद के बीच इजराइल 1Israel-Palestine Confrontation: This fight for religion and human rights is also there!| इजराइल-फिलिस्तीन टकरावः धर्म और मानवाधिकारों की भी है यह लड़ाई !967 में यरुशलम पर कब्जे के बाद से ही वहां जन्म लेने वालों यहूदी लोगों को भी अपना नागरिक मानता है। इसके विपरीत इसी क्षेत्र में पैदा फिलिस्तीनी लोगों पर वह शर्तें लगाया करता है। ऐसी शर्तों में लंबी अवधि तक यरुशलम से बाहर रहने वाले फिलिस्तीनियों की नागरिकता छीनने तक का मामला है। निश्चित ही यह लड़ाई भू-भाग के साथ अपने धार्मिक स्थलों के अस्तित्व तक का है, जो मानवाधिकारों तक भी जाता है।

(लेखक ‘हिन्दुस्थान समाचार’ की पाक्षिक पत्रिका ‘यथावत’ के समन्वय संपादक हैं।)

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