ब्‍लॉगर

न्यायिक सेवा के गठन का वक्त

– लालजी जायसवाल

नीति आयोग ने सुझाव दिया था कि निचली अदालतों में न्यायाधीशों के चयन के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन किया जाए, जिससे जजों की कमी से जूझ रही न्यायपालिका में युवाओं को आकर्षित किया जा सके। कोरोना महामारी से प्रभावित न्यायिक प्रक्रिया को गति देने के लिए केन्द्र सरकार को देश में न्यायिक सेवा के स्वरूप को बदलने की तैयारी करनी चाहिए। जिससे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट और जिला स्तर पर ज्यादा से ज्यादा युवा न्यायाधीशों को मौका मिले।

अधीनस्थ न्यायपालिका में इस समय न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के 21,320 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से करीब 25 प्रतिशत पद रिक्त पड़े हैं। उच्च न्यायालयों में कुल 1,079 न्यायाधीश होने चाहिए। कानून मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, हाईकोर्ट में जजों के 414 पद खाली पड़े हैं, जो इस साल की अबतक की सर्वाधिक रिक्तियां हैं। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के अभाव में उतनी नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं, जितने न्यायाधीशों की जरूरत है। देश में लंबित अदालती मामलों में 80 फीसद से अधिक जिला और अधीनस्थ अदालतों में हैं। यानी प्रत्येक न्यायाधीश के पास औसतन 1,350 मामले लंबित हैं। कानून मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक जनसंख्या का अनुपात प्रति 10 लाख लोगों पर 19.49 न्यायाधीश हैं। वही अमेरिका में ये अनुपात 107 तो यूके में 51 तथा कनाडा में 75 और ऑस्ट्रेलिया में 42 हैं।

उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने अपनी 120 वीं रिपोर्ट में सिफारिश की है कि प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर न्यायाधीशों की संख्या 50 होनी चाहिए। इसके लिए स्वीकृत पदों की संख्या बढ़ाकर तीन गुना करनी होगी। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन से पहला लाभ तो यह है कि जजों की नियुक्ति में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के समान निष्पक्ष एजेंसी की भूमिका होगी। इससे न्यायिक सेवा में प्रतिभावान विधि स्नातक शामिल किए जा सकेंगे, जो सामान्यत: न्यायिक सेवा में भर्ती न होकर सरकारी और निजी क्षेत्र में अन्य ऐसे पदों की तलाश में रहते हैं, जहां उन्हें ज्यादा आर्थिक लाभ मिल सके।

गौरतलब है कि कई बार सरकार इस दिशा में कदम आगे बढ़ाने की कोशिश कर चुकी है। सरकार ने पिछले साल ही अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा कराने का प्रस्ताव रखा था लेकिन तब नौ हाईकोर्ट में इस प्रस्ताव का विरोध किया था जबकि आठ ने प्रस्तावित ढांचे में बदलाव की बात कही थी, सिर्फ दो हाईकोर्ट ने सरकार के इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। इसके पहले वर्ष 1961, 1963 और 1965 में मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन के पक्ष लिया गया था लेकिन ये प्रस्ताव कागजों से आगे नहीं बढ़ सका। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस तरह के परीक्षा कराने की सिफारिश की थी। सवाल उठता है कि आखिर जब सब चाहते हैं कि देशभर में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग बने और न्याय को गति मिले तथा युवा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में पहुंचें तो आखिर क्या वजह है कि लगातार 60 साल से ज्यादा समय से प्रस्ताव के बाद भी ऐसा आयोग नहीं बन पा रहा है?

इस सेवा के न लागू होने का एक कारण सीआरपीसी और सीपीसी के प्रावधानों को भी माना जा रहा है। कुछ विद्वानों का मानना है कि अखिल भारतीय न्यायिक नियुक्ति सेवा के लागू होने के बाद एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण होने लगेगा और भाषा की समस्या आएगी। कुछ राज्य सरकारें और हाईकोर्ट को लगता रहा है कि अखिल भारतीय न्यायिक नियुक्ति सेवा हो जाने के बाद जजों की नियुक्तियों में उनकी भूमिका सिमट जाएगी। यही वजह है कि अबतक अखिल भारतीय न्यायिक नियुक्ति सेवा का प्रस्ताव कागजों से आगे नहीं बढ़ पाया।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग लागू करने से उम्मीद की जा सकती है कि प्रतिभावान युवा कम उम्र में ही न्यायिक सेवा में आ जाएंगे। साथ ही देश के अलग-अलग राज्यों में न्यायिक सेवा में नियुक्ति और पदोन्नति में एकरूपता आ सकती है। न्यायिक सेवा आयोग बनने के बाद लगातार न्यायाधीशों की नियुक्ति में पक्षपात के जो आरोप लगते हैं वह भी समाप्त हो जाएंगे। नतीजतन, देश की जिला अदालतों में अभी जो स्थिति है, उसमें अखिल भारतीय न्यायिक सेवा निश्चित ही न्यायपालिका को अधिक जवाबदेह, दक्ष, पेशेवर एवं पारदर्शी बनाकर न्याय की गुणवत्ता और पहुंच में वृद्धि करेगी। नवनियुक्त जजों को स्थानीय भाषा सिखाकर अथवा निचली अदालतों के जजों का केवल राज्य के अंदर ही स्थानांतरण करने जैसे प्रावधानों से राज्यों की चिंताओं को दूर किया जा सकता है।

कानून मंत्रालय का भी मानना है कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के माध्यम से देश में सक्षम न्यायाधीशों का एक ‘पूल’ तैयार किया जा सकता है, जिनकी सेवाएं विभिन्न राज्यों में ली जा सकती हैं। ध्यातव्य है कि अगर केंद्रीय लोक सेवा आयोग से भर्ती कराई जाएगी तो विभिन्न केंद्रीय सेवाओं के समान वेतन, भत्ते और सेवाएं न्यायिक सेवा में भी उपलब्ध होंगे। इसलिए अनेक प्रतिभाशाली व्यक्ति न्यायिक सेवा में नियुक्ति पाने के लिए प्रतियोगिता में शामिल होंगे। न्यायिक सेवा बनने से न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में जो पक्षपात के आरोप आए दिन लगते हैं वे भी नहीं लगेंगे। यदि ऐसा हो जाता है तो न्यायिक सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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