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कैलाश पर्वत श्रृंखला अब भारत के कब्जे में

नई दिल्ली। पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर की गुरंग हिल, मगर हिल, मुखपरी और रेचिन-ला दर्रा जैसी आधा दर्जन रणनीतिक चोटियों पर भारत का कब्जा होने के बाद से चीनी सेना इसलिए बौखलाई हुई है, क्योंकि यह सभी पहाड़ियां कैलाश पर्वत श्रृंखला में आती हैं। यानी एक तरह से देखा जाए तो भारत ने 60-70 किलोमीटर तक का वह पूरा क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया है, जिसके दम पर चीन हर बार कैलाश मानसरोवर की यात्रा रोकने की धमकी देने के साथ ही आंखें दिखाता था। कैलाश पर्वत श्रृंखला की इन चोटियों को अपने कब्जे में लेते समय भारतीय सैनिकों ने ‘हर-हर महादेव’ के जयकारे भी लगाये। अब चीनी सेना किसी भी कीमत पर इन कैलाश रेंज की पहाड़ियों को हड़पना चाहती है, इसीलिए चीन ने भारत की फॉरवर्ड पोजिशन के फायरिंग रेंज में टैंक तक तैनात कर दिए हैं।  

चीन से 1962 के युद्ध से पहले तीर्थयात्री लद्दाख के डेमचोक से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए जाया करते थे। युद्ध के बाद चीन ने इस मार्ग पर अवैध रूप से कब्जा करके कैलाश मानसरोवर यात्रा के इस मार्ग को बंद कर दिया। दोनों देशों की सहमति से इसे 1981 में फिर खोल दिया गया। वैसे तो कैलाश मानसरोवर जाने के कई मार्ग हैं, जिनमें उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग, कालापानी, लिपुलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है लेकिन यह रास्ता बेहद लंबा है। इसके अलावा दूसरा रास्ता सिक्किम से होकर और तीसरा नेपाल के रास्ते से होकर कैलाश मानसरोवर जाता है। मानसरोवर यात्रा को लेकर आने वाली समस्याओं का समाधान करने के मकसद से भारत ने चौथा रास्ता तैयार किया, जिसका उद्घाटन इसी साल 8 मई को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने उत्तराखंड में कैलाश मानसरोवर मार्ग को 17,060 फीट की ऊंचाई पर लिपुलेख पास से जोड़ा है। धारचूला-लिपुलेख मार्ग पिथौरागढ़-तवाघाट-घाटीबगढ़ सड़क का विस्तार है। यह घाटीबगढ़ से निकलती है और कैलाश मानसरोवर के प्रवेश द्वार लिपुलेख पास पर समाप्त होती है। 80 किलोमीटर की इस सड़क में ऊंचाई 6000 फीट से बढ़कर 17,060 फीट हो जाती है। चीन सीमा के निकट शेष तीन किमी. की कटिंग का काम सुरक्षा की दृष्टि से अभी छोड़ दिया गया है। भारत ने इस लिंक मार्ग का निर्माण इसलिए कराया ताकि लिपुलेख तक सड़क बनने से कैलाश यात्रा सुगम हो और स्थानीय लोगों को भी सड़क सुविधा मिले। साथ ही सेना और अर्द्ध सैनिक बल की गाड़ियां चीन सीमा के करीब तक पहुंच सकें।
लद्दाख से होकर गुजरने वाले डेमचोक के रास्ते से कैलाश मानसरोवर यात्रा लगभग एक दशक पहले तक तो सकुशल निपटती रही है लेकिन चीन के साथ अनबन शुरू होने के बाद से हर साल कुछ न कुछ विवाद खड़ा होने लगा। भारतीय क्षेत्र चुशुल से डेमचोक की दूरी करीब 150 किमी. और डेमचोक से कैलाश मानसरोवर की दूरी करीब 350 किमी. है। कैलाश मानसरोवर तक की लगभग 450 किलोमीटर यात्रा के बीच 60-70 किमी. का इलाका पैंगोंग झील के दक्षिण से गुजरता हैं जहां गुरंग हिल, मगर हिल, मुखपरी और रेचिन-ला दर्रा जैसी कैलाश पर्वत श्रृंखलाएं फैली हुई हैं। सीमा पार पड़ने वाली इन्हीं कैलाश पर्वत श्रृंखलाओं से चीन कैलाश मानसरोवर यात्रियों को नहीं गुजरने देता था। भारत को कैलाश पर्वत श्रृंखलाओं के इस हिस्से को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने की कामयाबी 29/30 अगस्त की रात मिली।

चीन से 1962 के युद्ध से पहले यह पूरा इलाका भारत के ही अधिकार-क्षेत्र में था लेकिन युद्ध के दौरान रेचिन-ला और चुशुल की लड़ाई के बाद दोनों देश की सेनाएं इसके पीछे चली गई थीं और इस इलाके को पूरी तरह खाली कर दिया गया था। 1962 के बाद यह पहला मौका है जब भारत ने चीनियों को मात देकर पैंगोंग के दक्षिणी छोर की इन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया, जहां दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं। दरअसल, चीन ने ही 29/30 अगस्त की रात भारत के साथ नया मोर्चा पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर की थाकुंग चोटी पर घुसपैठ करने की कोशिश करके खोला। भारतीय सैनिकों ने चीनियों को खदेड़ने के बाद इस क्षेत्र की सभी महत्वपूर्ण चोटियों को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने का अभियान छेड़ दिया। इसी क्रम में 3 दिन के भीतर भारतीय सेना ने पैंगोंग-त्सो झील के दक्षिण में करीब 60-70 किलोमीटर तक का पूरा क्षेत्र अपने अधिकार में लेकर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को चौंका दिया है।

भारत के कब्जे में कैलाश पर्वत श्रृंखलाओं के आने के बाद से चीन पूरी तरह बौखलाया हुआ है और तनाव ज्यादा ही बढ़ा है। अब चीनी सेना किसी भी कीमत पर इन कैलाश रेंज की पहाड़ियों को हड़पना चाहती है, इसीलिए बड़ी तादाद में चीनी सैनिक भारत की फॉरवर्ड पोजिशन के चारों तरफ इकठ्ठा हो रहे हैं। इतना ही नहीं चीनी सैनिकों की मध्यकालीन हथियारों के साथ इकठ्ठा होने की तस्वीरें वायरल हुई हैं। चीनियों ने एक बार फिर धोखेबाजी करके भारत को एहसास करा दिया कि अब इन पहाड़ियों को खाली छोड़ना ठीक नहीं है। इसलिए दोनों पक्षों की सेनाओं ने एक-दूसरे की फायरिंग रेंज में टैंक, आर्टिलरी गन, रॉकेट लॉन्चर और सर्विलांस ड्रोन के अलावा हजारों सैनिकों की तैनाती कर दी है। भारतीय सेना ने रेचिन-ला दर्रे के करीब अपनी पूरी एक टैंक ब्रिगेड तैनात कर दी है। साथ ही इंफेंट्री सैनिक रॉकेट लॉन्चर और एटीजीएम यानि एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों से तैनात हैं ताकि अगर चीनी सेना आगे बढ़ने की कोशिश करती है तो उसे पीछे खदेड़ दिया जाए। (हि.स.)

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