खरी-खरी

कलदार की जुगाड़ की… अठन्नी ही खोटी निकल गई

चले थे सरमायदार बनने, सर ही मुंडाकर चले आए… जिस नीतीश ने बीड़ा उठाया, उसने ही बेड़ा गर्क कराया…बदनसीब विपक्ष के नसीब ने फिर धोखा खाया… कलदार की जोड़-तोड़ में लगे थे…चवन्नी ही बिखर गई…होना ही यह था…एकजुट हो जाते तो भी सर फुड़वाकर आते…चंद महीनों में ही नीतीश ने भांप लिया कि वो मेंढकों को इकट्ठा करने जा रहे हैं…एक को लाएंगे दूसरा फुदक जाएगा… लाने वाला थक जाएगा, लेकिन मेंढकों को इकट्ठा नहीं कर पाएगा… इस फटेहाली से दिमाग गुजर ही रहा था कि पता चला कुनबा जोडऩे जा रहे हैं और उनके अपने घर में सेंध लगा रहे हैं…तेजस्वी अपना तेज दिखा रहे हैं और लालू सत्ता का चारा बटोरने की जुगत भिड़ा रहे हैं… लिहाजा देश बटोरने की कोशिशें छोडक़र नीतीश घर बचाने के लिए दौड़ पड़े और जिस भाजपा को बलि चढ़ाने निकले थे उसी के चरणों में खुद को समर्पित कर सत्ता बचाने की जुगाड़ में लग गए… भाजपा भी वैसे तो पहले ही नीतीश से धोखा खा चुकी थी, लेकिन इस बार मतलब दूसरा था… भाजपा की बिहार की सत्ता में कोई दिलचस्पी नहीं थी…वो तो लालू-तेजस्वी के तेज को मिटाना चाहती थी और महागठबंधन की जुगाड़ में नींद खराब करने वाले विपक्ष की नींद उड़ाना चाहती थी…विपक्ष को इससे बड़ा तमाचा और क्या पड़ता कि जो शख्स जोडऩे की जुगत में भिड़ा था, वो तोडऩे और तमाचा जडऩे के लिए खड़ा हो जाए और विपक्ष की एकजुटता की औकात पूरे देश को दिखाए…हालांकि भले ही यह भाजपा की जीत और नीतीश का दांव हो, लेकिन हकीकत में यह लोकतंत्र और बिहार की हार है…जिस राज्य की जनता ने नीतीश को तीसरे नंबर के बहुमत पर बिठाकर अपनी ताकत दिखाई… सत्ता तो छोड़ विपक्ष के काबिल भी नहीं पाया…वो एक बार नहीं तीन-तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर जनता को नीचा दिखाता है…कभी लालू तो कभी भाजपा की गोद में जाकर बैठ जाता है…कभी प्रधानमंत्री तो कभी मुख्यमंत्री पद के सपने सजाता है…कभी विपक्ष तो कभी सत्तापक्ष का हो जाता है…जो शख्स पानी पी-पीकर भाजपा और मोदी को कोसता रहा, वो सत्ता के लिए उन्हीं की शरण में जाता है और अपनी भड़ास निकालने, दुश्मन को सबक सिखाने के लिए भाजपा उस दोगले को गले लगा लेती है, जिसे कभी जनता ने ठुकराया…कभी विपक्ष ने भगाया तो कभी भाजपा ने मिटाया…जोड़तोड़ की यह राजनीति देश के लोगों के दिलों को तोड़ रही है…भाजपा अभी जिस समर्थन के पहाड़ पर खड़ी है, वहां से उसे रास्ते के ऐसे कंकड़-पत्थर को उठाने की जरूरत ही नहीं… मोदीजी और भाजपा दोनों की जीत तय है, केवल आंकड़े बढ़ाने की जिद में कांटों को समेटना और जनता की चुभन बढ़ाना अपनी ही आस्था पर संशय पैदा करने जैसा होगा…

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