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जानियें: मां दूर्गा के छठे स्‍वरूप माता कात्‍यायिनी की धार्मिक क‍था

आज पावन नवरात्रि का छठा दिन देवी दुर्गा के कात्यायिनी स्वरुप को समर्पित है। देवी कात्यायिनी के बारे में अनेक कथाएं शाश्त्रों में वर्णित हैं इन कथाओं में से एक कथा द्वापर युग की भी है। द्वापर युग में मथुरा में कंस नामक अत्यंत क्रूर शासक का राज था भविष्यवाणी के अनुसार उसका वध उसकी बहन के पुत्र के हाथों होना था। इसी वजह से उसने अपनी बहन देवकी और अपने बहनोई वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया था और एक एक कर उसके बच्चों का वध कर रहा था। भगवान विष्णु ने कंस का विनाश करने के लिए देवकी के गर्भ से जन्म लिया और बड़े ही नाटकीय ढंग से उनके पिता वासुदेव ने उन्हें वृन्दावन के अपने मित्र नन्द जी के घर पहुंचा दिया।

कृष्ण की छवि इतनी मनोहारी थी की जो भी उन्हें देखता वो मुग्ध हो जाता। वृन्दावन की सारी गोपियाँ उन्हें अपने पति के रूप में पाना चाहती थी परन्तु कृष्ण तो राधा के थे। तब सभी गोपियों ने श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कालिन्दी-यमुना के तट पर देवी कात्यायिनी की आराधना की थी। देवी कात्यायिनी की उत्पत्ति से जुडी सबसे प्रचलित कथा यह है की बहुत समय पहले एक बड़े ही प्रसिद्द महर्षि थे उनका नाम महर्षि कत था। उनके पुत्र महर्षि कात्य भी उन्ही के समान यशश्वी हुए महर्षि कात्य के गोत्र में ही महर्षि कात्यायन हुए।

महर्षि कात्यायन ने देवी पराम्बा की घोर तपस्या की उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें दर्शन दिए और मंवान्क्षित वर मांगने को कहा। ये सुनते ही महर्षि भावविभोर हो उठे और देवी को अपने घर पुत्री के रूप में जन्म लेने की विनती की। उनकी इस विनती को देवी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। धरती पर उस समय एक बड़ा ही निर्दयी राक्षस महिषासुर ने आतंक मचा रखा था मनुष्य ही नहीं देवता भी उससे बड़े ही परेशान थे। जब उसके पाप का घड़ा भर गया तब तीनों त्रिदेवों ने अपने अपने तेज के अंश से देवी कात्यायिनी का निर्माण किया।

कुछ दिनों बाद ही महर्षि कात्यायन के घर देवी ने एक बड़ी ही सुन्दर कन्या के रूप में जन्म लिया। उस बालिका के मुख मंडल पर फैले तेज को देख कर ही महर्षि कात्यायन को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी उनकी मांगी मुराद के फलस्वरूप देवी ने उनके घर अवतार लिया है। कहा जाता है की देवी कात्यायिनी की आराधना सर्वप्रथम महर्षि कात्यायन ने ही की थी। साथ ही उनके घर जन्म लेने के कारण ही अपने पिता के नाम पर देवी को कात्यायिनी के नाम से जाना गया। देवी कात्यायिनी की पूजा के लिए उपयुक्त मन्त्र निम्नलिखित है।

ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि!
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।

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