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लेबनानः अमोनिया विस्फोट से आशंकित दुनिया

– प्रभुनाथ शुक्ल

लेबनान की राजधानी बेरुत में पिछले दिनों हुए अमोनियम नाइट्रेट विस्फोट से पूरी दुनिया भौंचक और आशंकित है। विस्फोट की असली वजह का अभीतक पता नहीं चल सका है। विस्फोट में पांच हजार से अधिक लोग घायल हुए और अनगिनत लापता हैं। तीन लाख से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं। आधा बेरुत और उसका बंदरगाह तबाह हो चुका है। विस्फोट इतना बड़ा था कि इसकी धमक 150 से 250 किमी दूर साइप्रस तक महसूस की गई। फिर इंसानी शवों की क्या दशा हुई होगी कल्पना से बाहर है। लेबनान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी हो रहे हैं। माना यह भी जा रहा है कि इजरायल इस घटना को अंजाम दे सकता है। लेकिन उसने इस तरह के हमलों से इनकार किया है। लेबनान का आतंकी संगठन हिज्जाब इजरायल पर सख्त हो गया है। विस्फोट के बाद दुनिया के देश अमोनियम नाइट्रेट और उसके भंडारण को लेकर चिंतित हैं।

आधा बेरुत शहर मलबे में तब्दील हो गया है। जहाँ कल गगनचुंबी इमारतें थीं और पार्क थे। हंसते-खेलते बच्चे थे। खुशहाल जीवन और उसकी उम्मीदें थीं, वह सब तबाह हो चुका है। रिहायशी आलीशान इमारतें जमींदोज हो गई हैं। वहाँ अब न कोई इंसानी शोरशराबा है न मासूम बच्चों की किलकारियां और न सुनहले सपने। गवर्नर जब उस इलाके का दौरा कर रहे थे तो मीडिया के लोगों का जवाब देते हुए वह रो पड़े। सोचिए यह कितनी पीड़ादायी है। वहाँ की सरकार ने हादसे को देखते हुए इमरजेंसी लगाने का भी फैसला किया। तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा भी की गई। अहम सवाल है कि इस तरह की जानलेवा सामग्री क्यों रिहायशी इलाके में रखी गई थी। इंसानी आबादी से दूर इसे क्यों नहीं रखा गया। यह किसकी साजिश से हुआ। अगर यह इंसानी बस्ती से दूर रखा जाता तो इतनी बड़ी मानव त्रासदी नहीं देखने को मिलती।

सरकारी अनुमति के बगैर घनी आबादी में गोदाम नहीं बनाया जा सकता है। अगर बनाया गया तो क्यों? वह भी जहाँ लेबनान का बंदरगाह है। विस्फोट की वजह से पूरा बंदरगाह ध्वस्त हो गया। किस स्तर पर लापरवाही हुई और उसकी वजह बेगुनाह लोगों की जान चली गई। पूरा शहर मलबे में बदल गया और इंसानी लाशें बिछ गईं। हम सच से मुंह नहीं छिपा सकते हैं। यह तो एक साजिश है जिसकी पूरी जिम्मेदारी सरकारों और संवैधानिक पद पर बैठे लोगों की भी है। इस तरह की मौतें सिर्फ लेबनान नहीं दुनिया भर में होती हैं। भारत में भी इस तरह के अनगिनत उदाहरण हैं। अहमदाबाद में अस्थाई कोविड अस्पताल में आग लगने से दर्जन भर लोग मारे गए। केरल में हुए विमान हादसे में पायलट समेत 18 लोगों की मौत हुई। भोपाल गैस त्रासदी किसी से छुपी नहीं है। अभी हाल में एक कम्पनी में गैस रिसाव से कई लोगों की जान गई थीं। यह हादसे मानव जनित हैं जिसके पीछे कारण सिर्फ लापरवाही है।

अमोनियम नाइट्रेट औद्योगिक केमिकल है। लेबनान की सुरक्षा एजेंसी ने इसे सात साल पूर्व एक जहाज से बरामद किया था। एक वेयरहाउस में इसे रखा गया था। इसका उपयोग धमाकों और विस्फोट के लिए भी किया जाता है। यह एक गंधहीन रसायन होता है। आग लगने के बाद इसमें धमाका हो सकता है। खनन, निर्माण और खेती में इसका उपयोग उर्वरक के रूप में होता है। हालांकि यह विस्फोटक पदार्थ नहीं माना जाता है, विध्वंसक कार्यों में इसका उपयोग खूब होता है। आतंकवादी भी इसका प्रयोग करते हैं। यह ज़हरीली गैस भी उत्सर्जित करता है। इसे जहाँ रखा जाता है उसके लिए कठोर नियम और वैज्ञानिक सतर्कता बरती जाती है। लेकिन उसपर कोई गौर नहीं किया जाता है। इसकी सुरक्षा और निगरानी की सख्त ज़रूरत होती है। इस घटना ने दुनिया की आँखें खोल दी हैं।

कोरोना संक्रमण का वजह से पूरी दुनिया का अर्थव्यवस्था चौपट हो चली है। लेबनान भी इससे अछूता नहीं है। विस्फोटक की वजह से उसका खद्यान्न गोदाम नष्ट हो गयै है। वहां खाने का भी संकट पैदा हो सकता है। बंदरगाह के करीब भारी संख्या में मालवाहक कंटेनर मलबे में तब्दील हो चुके हैं। जिसकी वजह से खाने-पीने की आयातित वस्तुओं के रखने की समस्या पैदा हो सकती हैं। इस समस्या को लेकर लेबनान सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं। राष्ट्रपति ने इसे आपातकाल की संज्ञा दी है। आर्थिक नुकासान को देखते हुए 66 मिलियन डॉलर का आपात फंड जारी करने का फैसला लिया है। लेबनान गृहयुद्ध से गुजरा है जिसकी वजह से उसकी अर्थव्यवस्था पहले से संकट में है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प घटना के पीछे साजिश से भी इनकार नहीं करते हैं। लेबनान ने दुनिया भर से मदद की गुहार लगायी है। दुनिया के कई देश लेबनान की मदद को आगे आए हैं। लेकिन इस हादसे को गम्भीरता से लेना होगा क्योंकि यह मानवता के खिलाफ है। लेबनान में हुए विस्फोट से मानव जीवन और उसकी अहमियत मूल्यहीन को चली है। अगर यह आतंकी साजिश है तो बेहद घृणित अपराध है। लेबनान जैसे हादसे हमें बेहद डराते हैं। विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम और इंसान का अहम, प्रकृति की तरफ से दिए गए जीवन उपहार को स्वयं खत्म करने पर तुला है। इस तरह के हादसे को देख और सुनकर इंसानियत और मानवता सहम और सकुच जाती है। जीवन का मूल्य नहीं आंका जा सकता है। इसका कोई बाजार भाव भी नहीं है। जीवन किसी का व्यक्तिगत नहीं बल्कि वह सार्वभौमिक और सार्वजनिक होता है।

जीवन देश, राष्ट्र और समाज में समायोजित होता है। समाज निर्माण में हम किसी के योगदान को किनारे नहीं रख सकते हैं। अगर हम ऐसा करते हैं तो उस प्रकृति का अपमान है। इंसान ही नहीं पशु-पक्षियों के सहयोग को भी नहीं भुला सकते। इसलिए ‘अहिंसा को परम धर्म’ बताया गया है और श्रीराम ने राम सेतु निर्माण के दौरान उस छोटी-सी गिलहरी का भी आभार जताया था। अगर इस तरह की साजिश रची गई तो दुनिया के कई मुल्क मलबे का ढेर बन जाएंगे। इस घटना का तथ्य सामने आना ही चाहिए। यह विस्फोट मानवीय खामियों का परिणाम है या फिर आतंकी साजिश, इसका खुलासा होना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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