नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) को लेकर केंद्र सरकार को कई निर्देश दिए हैं। अदालत ने मंगलवार को सीबीआई को ज्यादा अधिकार दिए जाने की बात कही। कोर्ट ने कहा कि एक कानून लाया जाना चाहिए, जिसके तहत एजेंसी को बड़े अधिकार क्षेत्र और ज्यादा ताकतों के साथ वैधानिक दर्जा मिले, ताकि चुनाव आयोग (EC) और कैग (CAG) की तरह सीबीआई भी अधिक स्वतंत्र हो सके।
मंगलवार को उच्च न्ययायालय (high Court) ने ‘पिंजरे में बंद तोते’ सीबीआई को रिहा करने के निर्देश दिए हैं। सीबीआई की तरफ से याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि एजेंसी लोगों की कमी जैसे बंधनों के साथ काम कर रही है। इस याचिका पर विचार के दौरान जस्टिस एन किरुबाकरण और जस्टिस बी। पुगलेंधी की डिवीजन बेंच ने कहा, ‘जब कोई संवेदनशील, जघन्य अपराध घटता है और स्थानीय पुलिस की तरफ से ठीक से जांच नहीं होती, तो सीबीआई जांच के लिए हमेशा शोर उठता है… यह लोगों का भरोसा है।’
न्यायाधीशों ने सीबीआई के लिए अलग से बजट आवंटित करने की सिफारिश की है। साथ ही एजेंसी के निदेशक को सरकार में सचिव के बराबर पद देने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि सीबीआई प्रमुख को संबंधित मंत्री या प्रधानमंत्री (Prime minister) को ही रिपोर्ट करना चाहिए। हाईकोर्ट (High Court) की बेंच ने सीबीआई निदेशक को 6 हफ्तों के भीतर एक विस्तृत प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने कहा कि इस प्रस्ताव के मिलने के बाद केंद्र को तीन महीनों के भीतर उचित आदेश जारी करने चाहिए। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में कोल ब्लॉक आवंटन मामले की जांच के दौरान सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था।
जजों ने देखा कि एजेंसी फंडिंग और सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में सुविधाओं जैसे कई बंधनों में काम कर रही है। उन्होंने पाया कि फॉरेंसिक एक्सपर्ट से जानकारी मिलने में देरी होना भी एक कारण है, जिसके चलते सीबीआई केस जल्दी खत्म नहीं कर पाती। उन्होंने कहा कि लैब में अमेरिका की एफबीआई और ब्रिटेन के स्कॉटलैंड यार्ड की तरह सुविधाएं होनी चाहिए।
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