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Maghi Amavasya 2022: कब है मौनी अमावस्या? जानें तिथि, मुहूर्त एवं व्रत कथा

नई दिल्ली. मौनी अमावस्या(Mauni Amavasya) इस बार 1 फरवरी 2022 दिन मंगलवार को है. माघ के महीने में पड़ने के वजह से इसे माघी अमावस्या (Maghi Amavasya) भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा से पापों से मुक्ति मिलती है और ग्रह दोष दूर हो जाते हैं. ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों (holy rivers) में स्नान करने के साथ ही इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा (mythology) का भी आवश्यक रूप से श्रवण करना चाहिए, तभी व्रत का पूर्ण फल मिलता है. आइये बताते हैं मौनी अमावस्या से जुड़ी ये व्रत कथा…

मौनी अमावस्या 2022 तिथि एवं मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का प्रारंभ 31 जनवरी दिन सोमवार को देर रात 02 बजकर 18 मिनट पर हो रहा है, जो अगले दिन 01 फरवरी दिन मंगलवार को दिन में 11 बजकर 15 मिनट तक है. स्नान आदि कार्यक्रम सूर्योदय के समय से होता है, इसलिए मौनी अमावस्या 01 फरवरी को है. इस दिन ही नदियों में स्नान होगा.


मौनी अमावस्या व्रत कथा (Mauni Amavasya 2022 Katha)
काफी समय पहले की बात है. कांचीपुरी नाम के एक नगर में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था. उसके 7 बेटे और एक बेटी थी. उसकी बेटी का नाम गुणवती और पत्नी का नाम धनवती था. उसने अपने सभी बेटों का विवाह कर दिया. उसके बाद बड़े बेटे को बेटी के लिए सुयोग्य वर देखने के लिए नगर से बाहर भेजा. उसने बेटी की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई. उसने कहा कि कन्या का विवाह होते ही वह विधवा हो जाएगी. यह बात सुनकर देवस्वामी दुखी हो गया. तब ज्योतिषी ने उसे एक उपाय बताया. कहा कि सिंहलद्वीप में सोमा नाम की एक धोबिन है. वह घर आकर पूजा करे तो कुंडली का ये दोष दूर हो जाएगा. यह सुनकर देवस्वामी ने बेटी के साथ सबसे छोटे बेटे को सिंहलद्वीप भेज दिया. दोनों समुद्र के किनारे पहुंचकर उसे पार करने का उपाय खोजने लगे. जब कोई उपाय नहीं मिला तो वे भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे.

उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था. गिद्ध के बच्चों ने देखा कि दिनभर इन दोनों को भूखे-प्यासे देखा तो वे भी दुखी होने लगे. जब गिद्ध के बच्चों को उनकी मां ने खाना दिया, तो बच्चों ने खाना नहीं खाया और उन भाई बहन के बारे में बताने लगे. उनकी बातें सुनकर गिद्धों की मां को दया आ गई. उसने पेड़ के नीचे बैठे भाई बहन को भोजन दिया और कहा कि वह उनकी समस्या का समाधान कर देगी. यह सुनकर दोनों ने भोजन ग्रहण किया.

अगले दिन सुबह गिद्धों की मां ने दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया. वे उसे लेकर घर आए. सोमा ने पूजा की. फिर गुणवती का विवाह हुआ, लेकिन विवाह होते ही उसके पति का निधन हो गया. तब सोमा ने अपने पुण्य गुणवती को दान किए, जिसके बाद उसका पति फिर जीवित हो गया. इसके बाद सोमा सिंहलद्वीप आ गई, लेकिन उसके पुण्यों के कमी से उसके बेटे, पति और दामाद का निधन हो गया. इस पर सोमा ने नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की आराधना की. पूजा के दौरान उसने पीपल की 108 बार प्रदक्षिणा की. इस पूजा से उसे महापुण्य प्राप्त हुआ और उसके प्रभाव से उसके बेटे, पति और दामाद जीवित हो गए. उसका घर धन-धान्य से भर गया. मान्यता है कि तभी से मौनी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष तथा भगवान विष्णु जी की पूजा की जाने लगी

(नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. हम इनकी पुष्टि नहीं करते है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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