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पिता पुत्र के आपसी सामंजस्य का उत्सव है मकर संक्रान्ति : डॉ मृत्युञ्जय

निंबाहेड़ा (Nimbahera) । मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के पावन दिन से लंबे दिन और रातें छोटी होने लगती हैं। सर्दियों के मौसम (winter season) में रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं, जिसकी शुरुआत 25 दिसंबर से होती है, लेकिन मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से ये क्रम बदल जाता है।

श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने हिस को बताया कि प्रत्यक्ष भी देखा जाता है कि मकर संक्रांति से ठंड कम होने की शुरुआत हो जाती है। यह सूर्य की उपासना से जुड़ा पर्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।



ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को राजा और शनि को सेवक की संज्ञा दी गई है । भगवान सूर्य के तीन संतान है यमराज, शनिदेव और अश्वनी कुमार। हालांकि इन सभी का जन्म युगल अथवा जुड़वां रूप में हुआ है । यम के साथ यमुना नदी, शनि के साथ ताप्ती नदी का जन्म हुआ है । सूर्य की संतान शनि हैं जो कालपुरुष के दुःख हैं, जो साढ़ेसाती, ढैया आदि के द्वारा अपना प्रभाव दिखाते हैं । सूर्य पिता है जो राजा है, संपूर्ण जगत की आत्मा है । पिता के ठीक विपरीत शनि का स्वभाव है ।

डॉ तिवारी बताते है कि यदि सूर्य आत्मा है तो शनि दुःख है। सूर्य राजा है तो शनि नौकर है, सूर्य पूर्व दिशा तो शनि पश्चिम दिशा का द्योतक है। सूर्य गोरा है तो शनि काला है । पर आखिरकार करें क्या हैं तो दोनों बाप बेटे, और इसी कारण से सूर्य जब अपने पुत्र के घर में अथवा मकर राशि में (भारत देश की राशि भी मकर है) आता है तब यह दुनिया के लिए एक उत्सव बन जाता है । एक ऐसा उत्सव ऐसा उल्लास जिसको पूरे देश और दुनिया में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । पिता पुत्र का यह मिलन कितना खुशियां देने वाला होता है, पिता गुड़ है तो पुत्र तिल, इसीलिए तो इसदिन गुडतिल्ली खाने के साथ दान भी करते हैं ।

सूर्य अर्थात पिता ऊनी वस्त्र है अथवा ऊनी वस्त्र पर इसका अधिकार है तो शनि काला है। दोनों को मिलाकर काला कम्बल दान किया जाता है । ठंड से गर्मी की शुरुआत का पर्व, अंधेरे धुंध कोहरे से प्रकाश का पर्व, अज्ञानता से ज्ञान की ओर मुड़ने का पर्व ही तो है यह मकर संक्रान्ति। इस वर्ष मकर संक्रांति इसलिए विशेष हो जाएगी, क्योंकि रविवार और मकर संक्रांति दोनों ही सूर्य को समर्पित हैं। पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य अस्त होता है और ऐसे शुभ संयोग में मकर संक्रांति पर सूर्य को अर्घ्य, दान और पूजा अन्य दिनों में किए गए दान से अधिक पुण्य देने वाला होता है। पंद्रह जनवरी को अपने पिता और पुत्र के रिश्तों में सामंजस बिठाकर अवश्य मनाएं मकर संक्रान्ति ।

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