भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

टी-4 तकनीक के सहारे होगा मलेरिया उन्मूलन

  • प्रदेशभर में लागू किया जा सकता है मंडला का मॉडल

भोपाल। मध्य प्रदेश का आदिवासी बहुल जिला मंडला देश में मलेरिया उन्मूलन के लिए मॉडल बन सकता है। यह वह जिला है जहां कभी मलेरिया से पीडि़त मरीजों से अस्पतालों के बेड भरे रहते थे। अब यहां मलेरिया के केस 91 प्रतिशत कम हो गए हैं। 2017 में यहां 548 केस मिले थे जबकि बीते साल महज 46 मामले ही सामने आए। जबलपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ रिसर्च इन ट्राइबल हेल्थ (एनआइआरटीएच) की टीम ने टी-4 तकनीक का इस्तेमाल करके यहां मलेरिया को अंतिम पायदान पर पहुंचा दिया है। एनआइआरटीएच, मध्य प्रदेश शासन और फाउंडेशन आफ डिसीज एलिमिनेटेड एंड कंट्रोल आफ इंडिया (एफडीईसी-इंडिया) के बीच पब्लिक प्राइवेट पाटर्नरशिप ने यह संभव कर दिखाया है। दरअसल, विश्व के साथ भारत में मलेरिया से पीडि़त और मरने वालों की संख्या लगातार सामने आने के बाद इसे नियंत्रित करने के लिए पहली बार 2015 में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर विचार हुआ। तब एनआइआरटीएच, मध्य प्रदेश शासन और एफडीईसी-इंडिया ने इस प्रोजेक्ट पर 2017 में काम शुरू किया। इसमें मंडला जिले के 1233 गांवों को शामिल करके टी-4 तकनीक अपनाई।

कारगर तकनीक
देश में मंडला जैसी भौगोलिक स्थिति जहां भी हो, वहां मंडला माडल का उपयोग मलेरिया उन्मूलन के लिए किया जा सकता है। इस पर चर्चा चल रही है। यह प्रोजेक्ट 2022 में पूरा हो जाएगा। उसके बाद संभवत: शिवपुरी में मंडला माडल को अपनाया जाएगा लेकिन स्थान का चयन करने के लिए मध्य प्रदेश शासन से चर्चा होगी। विज्ञानी तथ्यों के आधार पर मलेरिया उन्मूलन डिमांस्ट्रेशन प्रोग्राम हमें नई आशा जगा रहा है। अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में इस मॉडल के रिसर्च पेपर, डाटा प्रकाशित किए जा रहे हैं। भविष्य में इस मंडला माडल को देश में मलेरिया उन्मूलन के लिए उपयोग किया जा
सकता है।

यह है टी-4 तकनीक
मंडला में जिस टी-4 तकनीक से मलेरिया पर नियंत्रण किया गया है, वह है ट्रेस, टेस्ट, ट्रीट, ट्रेस। ट्रेस यानी क्षेत्र का सर्वे करके बुखार आने वाले संदिग्ध मलेरिया पीडि़त की पहचान की गई। टेस्ट यानी सर्वे में संदिग्ध मलेरिया पीडि़तों का रक्त परीक्षण किया गया। ट्रीट यानी रक्त परीक्षण में मलेरिया फेल्सिफेरम या वायवेक्स पाजिटिव आने पर उनका उपचार किया गया। ट्रेस यानी जिन क्षेत्रों में मलेरिया के मरीज मिले, उनका उपचार होने के बाद फिर उस क्षेत्र का सर्वे किया गया। सर्वे में यह देखा गया कि जिनको मलेरिया हुआ था वह स्वस्थ हैं कि नहीं, कहीं कोई नया केस तो नहीं है, यदि है तो क्षेत्र के 50 मीटर के दायरे में फिर सर्वे किया जाता है। यह तब तक किया जाता है जब तक कि वहां सारे केस खत्म नहीं हो जाते।

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