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राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी के मायने

– दीपक कुमार त्यागी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़ा दांव चलते हुए झारखंड के राज्यपाल पद के दायित्व का लंबे समय तक सफलतापूर्वक निर्वहन करने वाली द्रौपदी मुर्मू को एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करवाकर विपक्षी दलों में जबरदस्त राजनीतिक भूचाल लाने कार्य किया है। ऐसा कर जहां देश को पहली बार आदिवासी समुदाय से राष्ट्रपति देने की तैयारी की गयी है, वहीं देश के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में निवास करने वाले आदिवासी समुदाय व अनुसूचित जनजाति को साधते हुए, देश की महिला मतदाताओं को भी महिला सशक्तिकरण का संदेश देकर भाजपा के पक्ष में करने का प्रयास किया गया है। यह भी तय है कि भविष्य में द्रौपदी मुर्मू प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा दिये गये ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे का देश में धरातल पर सबसे अहम व महत्वपूर्ण प्रतीक बनेंगी।

चुनाव आयोग ने देश के राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना जारी किए जाने के साथ ही नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 29 जून है, देश के नए राष्ट्रपति को चुनने के लिए मतदान 18 जुलाई को होना है और मतों की गिनती 21 जुलाई को होनी है।

जब से एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का अपना उम्मीदवार घोषित किया है, वे अचानक देश-दुनिया में फिर से चर्चाओं में आ गयी हैं,। आज लोग उनके निजी जीवन व राजनीतिक सफर के बारे में जानना चाहते हैं। द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के अन्तर्गत रायरंगपुर के बैदापोसी गांव के एक गरीब आदिवासी परिवार हुआ था। द्रौपदी मुर्मू के पिता का नाम विरंची नारायण टुडू और माता का नाम किनगो टुडू है। वह अनुसूचित जनजाति समुदाय से आती हैं, उनका परिवार ओडिशा के एक आदिवासी जातीय समूह संथाल से ताल्लुक रखता है। बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले से ताल्लुक रखने वालीं मुर्मू ने गरीबी और अन्य समस्याओं से जूझते हुए वर्ष 1979 में आरबी वूमेंस कॉलेज, भुवनेश्वर से बी.ए. किया।

हालांकि उनका व्यक्तिगत जीवन बेहद कष्टकारी व त्रासदियों से भरा रहा है। उन्होंने अपने पति और दोनों बेटों को असमय खो दिया, अब उनकी सिर्फ एक बेटी इतिश्री है जिसकी शादी गणेश हेम्ब्रम से हो चुकी है। वैसे उनके पति स्वर्गीय श्यामचरण मुर्मू धालभूम स्थित यूको बैंक के प्रबंधक रह चुके हैं। लेकिन द्रौपदी मुर्मू के जीवन की सबसे बड़ी अहम बात यह है कि उन्होंने जीवन पथ की दुश्वारियों से कभी हार नहीं मानी। विपरीत परिस्थितियों से लड़कर हमेशा बुलंद हौसलों के साथ जीवन पथ पर चलती रहीं। आज उनकी मेहनत व हिम्मत का सकारात्मक परिणाम सम्पूर्ण विश्व देख रहा है।

द्रौपदी मुर्मू ने राजनीति में आने से पहले वर्ष 1979 से 1983 तक ओडिशा सरकार में सिंचाई व बिजली विभाग की जूनियर असिस्टेंट के रूप में कार्य किया। उन्होंने वर्ष 1994 से 1997 तक श्री अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में एक मानद सहायक शिक्षक के रूप में कार्य किया। द्रौपदी मुर्मू के राजनीतिक सफर की बात करें तो वह वर्ष 1996-1998 में रायरंगपुर नोटिफाईड एरिया काउंसिल से पार्षद बनकर काउंसिल की उपाध्यक्ष चुनी गयी थी। उन्होंने ओडिशा में दो बार भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा गठबंधन वाली नवीन पटनायक सरकार में 6 मार्च, 2000 से 6 अगस्त, 2002 तक वाणिज्य और परिवहन के स्वतंत्र प्रभार मंत्री के रूप में और 6 अगस्त, 2002 से 16 मई , 2004 तक मत्स्य पालन व पशु संसाधन विकास राज्यमंत्री के रूप में दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन किया।

संगठनात्मक स्तर की बात करें तो द्रौपदी मुर्मू को पार्टी ने जब भी कोई छोटी या बड़ी जिम्मेदारी दी उन्होंने उसका पूरी ईमानदारी व मेहनत से निर्वहन किया। वह भाजपा में जिला स्तर से लेकर के पार्टी के एसटी मोर्चा में प्रदेश स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की पदाधिकारी रहीं। उनको वर्ष 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। द्रौपदी मुर्मू ने 18 मई 2015 से 12 जुलाई 2021 तक झारखण्ड के नौवें एवं प्रथम महिला राज्यपाल के रूप में कार्य किया।

द्रौपदी मुर्मू के नाम राजनीति से जुड़ी विभिन्न राजनीतिक उपलब्धियां दर्ज हो गयी है, अब राष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी के साथ नया इतिहास रचने की राह पर हैं। आज द्रौपदी मुर्मू देश की ऐसी शख्सियत बन गयी हैं जिन्होंने पार्षद से लेकर के देश के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने का सफर सफलतापूर्वक तय कर लिया है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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