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MP: उज्जैन में मस्जिद तोड़ने के मामले में मुस्लिम पक्ष को झटका, SC ने खारिज की याचिका

November 08, 2025

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मुस्लिम पक्ष (Muslim side) को झटका देते हुए उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसने उज्जैन स्थित तकिया मस्जिद (Takiya Mosque Ujjain) के विध्वंस को बरकरार रखने का फैसला सुनाया था। यह याचिका इस मस्जिद में नमाज अदा करने वाले 13 स्थानीय नागरिकों ने दायर की थी, और इसके जरिए उन्होंने आरोप लगाया गया था कि मध्य प्रदेश सरकार ने महाकाल मंदिर के पार्किंग क्षेत्र को बढ़ाने के लिए उनकी 200 साल पुरानी मस्जिद को तोड़ दिया है। इस याचिका के जरिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत की मांग करते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे लगाने की अपील की थी, ताकि उस जगह पर कोई निर्माण कार्य ना हो सके। साथ ही इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग भी की थी।


बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस मामले में शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि विध्वंस और अधिग्रहण कानून के अनुसार किया गया था और इसके लिए मुआवजा भी दिया गया था। अदालत ने कहा कि ‘वैधानिक योजना के अंतर्गत यह जरूरी है कि प्रभावितों को मुआवजा दिया जाए।’

अदालत ने इस बात का उल्लेख भी किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पहले उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका वापस ले ली गई थी। न्यायालय ने कहा, ‘आपने उसी… मांग को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी, जिसे वापस लेते हुए खारिज कर दिया गया था।’

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद ने सुप्रीम कोर्ट में उनका पक्ष रखा और उच्च न्यायालय के तर्क को कानून की दृष्टि से गलत बताया। उन्होंने कहा ‘जिस तरह से यह किया गया है। इस पर विचार करने की जरूरत है। विवादित आदेश को पारित करते हुए यह तर्क दिया गया है कि याचिकाकर्ता अपने घर में या कहीं और भी नमाज अदा कर सकते हैं। यह तर्क दिया गया है।’

हालांकि सर्वोच्च अदालत ने कहा, ‘उच्च न्यायालय ने बहुत अच्छा तर्क दिया है कि याचिका खारिज कर दी गई और वापस ले ली गई, और मुआवजा दिया गया।’ इसके बाद जब शमशाद ने कहा कि, ‘मुआवजा अनधिकृत व्यक्तियों को दिया गया था।’ तो अदालत ने याद दिलाया, ‘इसके लिए आपके पास कानून के अंतर्गत उपाय मौजूद हैं।’

आगे अपनी बात को मजबूती से रखते हुए शमशाद ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर मामला है। क्योंकि आपको किसी अन्य धार्मिक स्थल के लिए पार्किंग की जरूरत है और आप हमारी मस्जिद को गिरा देते हैं और कहते हैं कि आपके पास इसका अधिकार नहीं है?’ हालांकि, इसके बाद भी पीठ ने उनकी अपील खारिज कर दी।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, मस्जिद को 1985 में वक्फ के रूप में अधिसूचित किया गया था और इस साल जनवरी में ‘अवैध घोषित किए जाने और मनमाने तरीके से ध्वस्तीकरण’ से पहले 200 सालों तक इसका जीवित मस्जिद के रूप में इस्तेमाल होता रहा। उन्होंने कहा कि इस तरह यह विध्वंस पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम 1995 (अब एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995) और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में निष्पक्ष मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 का उल्लंघन था।

याचिका में यह भी दावा किया गया था कि ध्वस्तीकरण से पहले सरकार की ओर से की गई भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में अनियमितता है। याचिकाकर्ताओं ने आगे आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने राज्य सरकार ने अधिग्रहण की झूठी कहानी गढ़ने के लिए क्षेत्र में अवैध कब्जाधारियों और अतिक्रमणकारियों को मुआवजा दे दिया। याचिकाकर्ताओं ने मस्जिद को दोबारा बनवाने के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का रुख किया था। हालांकि, पहले सिंगल बेंच और फिर डबल बेंच ने याचिका खारिज कर दी थी। जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।

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