ब्‍लॉगर

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और जनसंचार शिक्षा

– डॉ. संजय द्विवेदी

जनसंचार हमारे समाज की एक ऐसी आवश्यकता है, जिस पर इसका विकास, प्रगति और गतिशीलता सर्वाधिक निर्भर करती है। एक विषय के तौर पर यह भले ही नया प्रतीत होता हो, लेकिन समाज के एक अभिन्न अंग के रूप में यह शताब्दियों से हमारे साथ विद्यमान रहा है और एक समाज के तौर पर हमें हमेशा मजबूती, गति व दिशा देता रहा है। फर्क यही आया है कि पहले जनसंचार एक नैसर्गिक प्रतिभा होता था, अब एक कौशल बन गया है, जिसे प्रशिक्षण से विकसित किया जा सकता है।

पारिभाषिक रूप से जनसंचार वह प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत सूचनाओं को पाठ्य, श्रव्य या दृश्य रूप में बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचाया जाता है। आमतौर पर इस कार्य के लिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं, टेलीविजन, रेडियो, सोशल नेटवर्किंग, न्यूज पोर्टल आदि विभिन्न माध्यमों का प्रयोग किया जाता है। पत्रकारिता, विज्ञापन, इवेंट मैनेजमेंट और जनसंपर्क, जनसंचार के कुछ लोकप्रिय स्वरूप हैं।


अगर हम इतिहास की बात करें तो जनसंचार का सबसे प्राचीन उदाहरण तो हमारे धर्मग्रंथों में देवर्षि नारद द्वारा सूचनाओं के सम्प्रेषण और महाभारत में संजय द्वारा धृतराष्ट्र के लिए युद्ध के सीधे प्रसारण में ही देखने को मिल जाता है। यद्यपि आधुनिक युग के हिसाब से जनसंचार का विधिवत आगमन 15वीं सदी के अंत में माना जा सकता है, जब गुंटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया और शब्दों के लिखित रूप को जन-जन तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसके करीब एक शताब्दी बाद, वर्ष 1604 में जर्मनी में पहले मुद्रित समाचार पत्र ‘रिलेशन एलर फर्नेममेन एंड गेडेनक्वुर्डिगेन हिस्टोरियन’ से इसे एक संस्थागत स्वरूप मिला। इसके बाद वर्ष 1895 में मार्कोनी ने रेडियो की खोज कर शब्दों का श्रव्य रूप लोगों तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया और वर्ष 1925 में जॉन लोगी बेयर्ड ने दुनिया को टेलीविजन के रूप में ऐसी सौगात दी, जिसने शब्दों और ध्वनियों के साथ-साथ दृश्यों को भी हम तक पहुंचाया।

संचार की दुनिया में सबसे बड़ी क्रांति का सूत्रपात 1990 में ‘वर्ल्ड वाइड वेब’ यानी इंटरनेट की खोज से हुआ। यह एक ऐसी सुविधा थी, जिसने एक साधारण व्यक्ति को भी संचारक बनने का अवसर उपलब्ध कराया। बीते 23 सालों में इसमें बहुत बदलाव आए हैं और संचार पहले की तुलना में काफी सुगम, सुलभ, सस्ता और द्रुतगति वाला हो गया है। आज लाखों लोग, बहुत कम बजट में और बहुत कम वक्त में अपनी बात दुनिया के करोड़ों लोगों तक पहुंचाने में सक्षम हैं। अनुमान है कि ऐसे लोगों की संख्या चार खरब से भी ज्यादा है, जो इंटरनेट या WWW तक पहुंच रखते हैं।

जनसंचार के इसी फैलते क्षेत्र और व्यापक प्रभाव ने इसे एक अकादमिक अध्ययन का विषय बनाया है और आज यह व्यावसायिक शिक्षा के अंतर्गत पढ़े जाने वाले सर्वाधिक पसंदीदा विषयों में से एक है। आज दुनिया के लगभग सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में जनसंचार अथवा मास कम्युनिकेशन को स्नातक, स्नातकोत्तर उपाधि पाठ्यक्रम या स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाता है और इनसे हर साल हजारों की संख्या में पत्रकार, जनसंपर्क एवं विज्ञापन विशेषज्ञ तथा संचारक प्रशिक्षित होते हैं और विभिन्न संस्थानों से जुड़कर अपनी कैरियर यात्रा आरंभ करते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में इक्विटी (भागीदारी), अफोर्डेबिलिटी (किफायत), क्वालिटी (गुणवत्ता), एक्सेस (सब तक पहुंच) और अकाउंटेबिलिटी (जवाबदेही) सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने वर्ष 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की थी। शिक्षा को सुलभ, सरल और अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से इसमें कई नए प्रावधान सम्मिलित किये गये हैं। हालांकि इसमें स्पष्ट रूप से मीडिया व जनसंचार जैसे विषयों का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन, सच तो यह है कि ऐसे बहुत सारे विषय हैं, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मीडिया या कम्युनिकेशन पर निर्भर हैं।

जनसंचार में प्रौद्योगिकी के प्रवेश ने इसके प्रभाव क्षेत्र को बहुत व्यापक और विस्तृत कर दिया है। लेकिन, जिस तरह से बीते दो दशकों में मीडिया के क्षेत्र में प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या में जो कल्पनातीत वृद्धि हुई है, उसे देखते हुए यह बहुत आवश्यक हो गया है कि इसमें भी जवाबदेही और गुणवत्ता सुनिश्चित करने पर विचार किया जाए। मीडिया और जनसंचार लगभग 100 सालों से एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। इन सालों में समाज के स्वरूप, स्वभाव, अपेक्षाओं और आवश्यकताओं में बहुत बदलाव आया है। इस बदलती हुई दुनिया के अनुरूप पत्रकारिता के प्रशिक्षण में भी बदलाव आवश्यक है।

21वीं सदी में जिस मीडिया उदय हुआ है, वह प्रिंट, टीवी या रेडियो तक सीमित नहीं है। इंटरनेट की पहुंच और प्रभाव ने मीडिया को बहुत सारी नई चीजें दी हैं, जिनमें समृद्धि और सफलता के लिए बहुत सारी नई संभावनाएं उत्पन्न हुई हैं। ऑनलाइन एजुकेशन, गेमिंग, एनिमेशन, ओटीटी, मल्टीमीडिया, ब्लॉकचेन, मेटावर्स जैसे ऐसे अनेक विकल्प हैं, जिनमें प्रशिक्षित पेशेवरों की बहुत जरूरत है।

ये वे क्षेत्र हैं, जिनके विशाल बाजार और भविष्य की संभावनाओं के आकलन अचंभित करते हैं। उदाहरण के लिए वीडियो गेमिंग को ही लें। पिछले साल इसका मार्केट साइज करीब 220.79 बिलियन डॉलर था। यह 12.9% की सालाना दर से बढ़ रहा है और वर्ष 2030 तक इसके 583.69 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसी प्रकार, एनिमेशन इंडस्ट्री है। पिछले साल 391.19 बिलियन डॉलर का एनिमेशन मार्केट 2030 तक बढ़कर 587.1 बिलियन डॉलर हो जायेगा। ओटीटी वीडियो भी ऐसा ही तेजी से बढ़ता हुआ मार्केट है, जिसके यूजर्स की संख्या 2027 तक बढ़कर 4216.3 मिलियन हो जाएगी। इसका इस साल का अनुमानित रेवेन्यू 315.50 बिलियन डॉलर आंका गया है, जो 2027 तक बढ़कर 467.30 बिलियन डॉलर हो जाएगा। जाहिर है कि जब बाजार इतना बड़ा है, तो इसे संभालने के लिए इतनी ही बड़ी संख्या में कुशल व प्रशिक्षित प्रतिभाओं की आवश्यकता भी पड़ेगी। इस जरूरत को पूरा करने में मीडिया और जनसंचार प्रशिक्षण संस्थान काफी सशक्त योगदान दे सकते हैं।

भारतीय जन संचार संस्थान ने इस आवश्यकता को अनुभव करते हुए काफी पहले से ही काम आरंभ कर दिया था। वर्ष 2022 में ‘डिजिटल मीडिया’ नामक एक नए पाठ्यक्रम का आरंभ, हमारे द्वारा इस दिशा में उठाए गए कदमों में से एक है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कौशल विकास और आत्मनिर्भर बनने पर काफी जोर दिया गया है। जनसंचार की शिक्षा में भी हमें इसी का ध्यान रखते हुए अपेक्षित बदलाव लाने होंगे, तभी हम परिवर्तन के साथ सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होंगे।

(लेखक, भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के महानिदेशक हैं।)

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