ब्‍लॉगर

नेपालः ड्रैगन के क्रूर पंजों में फंसता देश

– योगेश कुमार गोयल

एक ओर जहां चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण एलएसी पर अप्रैल माह से काफी तनावपूर्ण हालात हैं, वहीं चीन की गोद में खेल रहा नेपाल भी चीन की इन्हीं नीतियों का शिकार हो रहा है। हाल ही में इसका खुलासा होने के बाद कि चीनी सैनिकों ने नेपाल के हुम्ला जिले में सीमा स्तंभ से दो किलोमीटर अंदर तक कब्जा कर लिया है, चीन में हंगामा मचा है और काठमांडू स्थित चीनी दूतावास के बाहर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए हैं।

दरअसल ड्रैगन नेपाल के इस इलाके में अब तक नौ भवनों का निर्माण कर चुका है। यही नहीं, उसके सैनिकों ने यहां नेपाली नागरिकों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी है। जैसी ड्रैगन की फितरत रही है कि वह किसी भी देश की जमीन कब्जाने के बाद दादागीरी दिखाते हुए उसे अपना भूभाग बताता है, ऐसा ही दावा उसने नेपाली जमीन कब्जाने के बाद किया है। नेपाली अधिकारियों का कहना है कि चीन ने नेपाली भूमि में अतिक्रमण करते हुए इमारतें बनाई हैं लेकिन ड्रैगन का दावा है कि उसने जहां इमारतें बनाई है, वह उसका अपना भूभाग है। नेपाली अधिकारी जब चीनी सैनिकों से बात करने उस जगह पहुंचे तो उन्होंने इस बारे में बात करने से ही इनकार कर दिया।

गौरतलब है कि नेपाल के सीमावर्ती करनाली प्रांत के दूरस्थ हुमला जिले में दो वर्ष पूर्व तक चीन सीमा पर केवल तीन ही भवन थे लेकिन चीनी सेना पीएलए अब यहां नौ वाणिज्यिक भवन बना चुकी है। नेपाली जनता के प्रबल रोष का सबसे बड़ा कारण यही है कि एक तरफ नेपाल से नजदीकियां बढ़ाने की आड़ में चीन नेपाल में अपना आधार मजबूत कर वहां की जमीन हथियाने के मंसूबे पूरे करने के प्रयासों में जी-जान से जुटा है, वहीं उनके प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सबकुछ जानते-समझते हुए भी चुप्पी साधे हैं। उनके मौन समर्थन का नतीजा है कि नेपाल ड्रैगन के क्रूर पंजों में फंसता जा रहा है और नेपाल को चीन से उसकी दोस्ती बहुत महंगी साबित हो रही है।

चीन बेकाबू होकर नेपाली जमीनें हथिया रहा है। तिब्बत में सड़क निर्माण के नाम पर भी नेपाली भूमि का अतिक्रमण कर रहा है। माना जा रहा है कि ड्रैगन नेपाल के कई अन्य हिस्सों में जमीन कब्जाने के बाद धीरे-धीरे नेपाल में आगे बढ़ रहा है। मानवाधिकार आयोग के मुताबिक दारचुला के जिउजिउ गांव पर भी चीन ने कब्जा कर रखा है। कई मकान, जो कभी नेपाल का हिस्सा हुआ करते थे, वे अब चीन में मिला दिए गए हैं। हालांकि नेपाली जनता विरोध-प्रदर्शन कर रही है क्योंकि उसका मानना है कि चीन अपनी इन्हीं विस्तारवादी नीतियों के चलते एक दिन तिब्बत की तरह नेपाल को भी हड़प लेगा।

ओली सरकार नेपाली गांवों पर चीन के अवैध कब्जों के बावजूद खामोश है क्योंकि वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। वैसे ओली और उनकी पार्टी उसी चीनी सत्ता पर काबिज शी जिनपिंग की पार्टी की विचारधारा की समर्थक है। इसी कारण ओली ने चीन से प्रेम की पींगें बढ़ाते हुए भारत से दूरियां बढ़ानी शुरू की थी। भारत के इसी विरोध के चलते ओली ने नेपाल के हिन्दू राष्ट्र का दर्जा भी खत्म किया था।

इसी साल जून में विपक्षी नेपाली कांग्रेस के सांसदों ने आरोप लगाया था कि चीन ने देश के दोलखा, हुमला, सिंधुपालचौक, संखुवासभा, गोरखा और रसुवा जिलों में 64 हेक्टेयर भूमि का अतिक्रमण किया है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया था कि नेपाल और चीन के बीच 1414.88 किलोमीटर की सीमा पर करीब 98 पिलर गायब हैं और कईयों को नेपाल के अंदर खिसका दिया गया है। नेपाली कांग्रेस द्वारा नेपाली संसद के निचले सदन में रेजॉल्यूशन पेश करते हुए ओली सरकार से चीन की छीनी हुई जमीन वापस लेने को कहा गया था।

विपक्ष के तीखे तेवरों के बावजूद ओली सरकार खामोशी का लबादा ओढ़े रही है। ओली सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रही है। नेपाली जमीनों पर चीनी कब्जों के बावजूद अगर नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप ग्यवली कहते रहे हैं कि नेपाल का सीमा विवाद चीन के साथ नहीं बल्कि भारत के साथ है, समझा जा सकता है कि नेपाल में निर्णय लेने की क्षमता पर किस कदर चीनी दबाव हावी है। देश की बदतर आर्थिक स्थिति और भ्रष्टाचार के अलावा एनसीपी के भीतर मचे घमासान के बीच ओली सरकार के समक्ष चीन को नाराज करने का विकल्प नहीं है। यही कारण है कि ओली चीन के इशारों पर कठपुतली की भांति नाच रहे हैं।

दो नेपाली एजेंसियों द्वारा नेपाली जमीन हड़पने की खबरों के अलावा हाल में नेपाल के कृषि मंत्रालय के सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ है कि ड्रैगन सात सीमावर्ती जिलों में फैले कई स्थानों पर नेपाल की जमीनों पर कब्जा कर चुका है। सर्वे डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है और ज्यादा से ज्यादा जमीन का अतिक्रमण कर रहा है। रिपोर्ट में 33 हेक्टेयर दायरे में फैले उन 10 इलाकों का भी जिक्र है, जहां चीन ने बागडारे खोला, करनाली, सिनजेन, भुरजुक, जंबुआ खोला इत्यादि नदियों का रूख मोड़कर नेपाली जमीनें कब्जाई है। इन चार नेपाली जिलों में अधिकांश क्षेत्र नदियों के जलग्रहण क्षेत्र हैं, जिनमें हुमला, कर्णली, संजेन, लेमडे, भृजुग, खारेन, सिंधुपालचौक, भोटेकोसी, जाम्बु नदीय कामाखोला, अरूण नदी प्रमुख हैं। नेपाल के सर्वे और मैपिंग विभाग का कहना है कि चीन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सीमा को नेपाल के दोलखा में 1500 मीटर अंदर धकेल दिया गया है। विभाग के मुताबिक चीन ने गोरखा और दारचुला जिलों में नेपाली गांवों पर कब्जा कर लिया है।

अपने ही मंत्रालयों और सरकारी विभागों की ऐसी रिपोर्टें सामने आने के बाद भी अगर प्रधानमंत्री ओली चीन की गोद में खेल रहे हैं तो हैरानी होती है। वे भारत से दुश्मनी बढ़ाने पर उतारू हैं तो यह तय है कि चीन से उनकी यह दोस्ती उनके देश को अंततः बहुत महंगी पड़ने वाली है। लाप्चा-लिमी क्षेत्र में चीन रणनीतिक रूप से पिछले कई वर्षों से सड़कें बनाने में जुटा है। जब उसने करीब दस वर्ष पूर्व इस सीमावर्ती इलाके में एक वाणिज्यिक भवन तैयार किया था, तब नेपाल सरकार ने आपत्ति जताई थी लेकिन चीन द्वारा उस भवन को पशु चिकित्सा केन्द्र का भवन बताते हुए दलील दी गई थी कि यह सीमा के दोनों तरफ के लोगों के माल ढुलाई करने वाले पशुओं की उचित देखभाल के लिए लाभदायक साबित होगा। कटु सत्य यही है कि चीन बरसों से धीरे-धीरे नेपाली जमीन पर कब्जा करने के लिए प्रयासरत है और नेपाल ने वर्ष 2005 से ही उसके साथ सीमा वार्ता को आगे बढ़ाने से परहेज किया है। दरअसल वहां की पूर्ववर्ती सरकारें भी नेपाली जमीन वापस लेने के लिए चीन को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी।

नेपाली नागरिक मानने लगे हैं कि चीन भारत के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नेपाल को मोहरा बना रहा है और नेपाली जमीनें कब्जाकर भारत तक अपनी पहुंच आसान करना चाहता है। ड्रैगन के इशारों पर ओली के नाचने का सबसे बड़ा कारण यही है कि वे नेपाल में अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए ड्रैगन का सहारा ले रहे हैं। भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख को लेकर सीमा विवाद चल रहा है और पिछले दिनों लिपुलेख के पास ट्राई-जंक्शन क्षेत्र में चीन द्वारा अपनी मिलिट्री साइट का निर्माण शुरू करने की तस्वीरें भी सामने आई थी। नेपाली नागरिक अब ओली सरकार से मांग करने लगे हैं कि वह ड्रैगन को नेपाली भूमि से बाहर करें लेकिन यह चीन को अगर नेपाल में उसके मंसूबों को पूरा करने के लिए किसी का समर्थन मिल रहा है तो वह नेपाली पीएम ओली ही हैं।

दरअसल, वे चीनी सत्ता के सहारे ही नेपाली सत्ता में टिके हुए हैं। पिछले कुछ महीनों में चीन-नेपाल के बीच घनिष्ठ हुए संबंधों के बीच अब नेपाल में चीन द्वारा जमीनें हड़पने के मामलों को लेकर जिस तरह घमासान मचा है, ऐसे में आने वाले समय में दोनों देशों के संबंधों पर पूरी दुनिया की नजरें केन्द्रित रहेंगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Share:

Next Post

कुशीनगर एयरपोर्ट पर 08 अक्टूबर को लैंड करेगी श्रीलंकन बोइंग-737

Mon Sep 28 , 2020
कुशीनगर । उत्तरप्रदेश के कुशीनगर में नवसृजित इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आठ अक्टूबर को श्रीलंका की फ्लाइट लैंड करेगी। प्रथम उद्घाटन उड़ान बोइंग 737 से 180 बौद्ध तीर्थयात्रियों का प्रतिनिधिमंडल आएगा। इसी के साथ व्यावसायिक उड़ान के लिए यह एयरपोर्ट देश दुनिया के मानचित्र पर आ जायेगा। भारत सरकार श्रीलंका-भारत बौद्ध सम्बन्धों व पर्यटन को बढ़ावा […]