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कश्मीर में जम्हूरियत की नई भोर

– श्याम सुंदर भाटिया

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लाखों गैर कश्मीरियों को अमृत महोत्सव का अनमोल तोहफा दिया है। अनुच्छेद 370 और 35ए की विदाई के बाद लोकतांत्रिक तौर पर बड़ा क्रांतिकारी बदलाव होने जा रहा है। केंद्र शासित इस सूबे में परिसीमन के बाद गैर कश्मीरियों को वोटिंग का हक मिलने जा रहा है। नए वोटर्स लिस्टेड होने के बाद घाटी में तकरीबन 25 लाख मतदाताओं का इजाफा हो जाएगा। मौजूदा वोटर्स में करीब एक तिहाई मतदाता और बढ़ जाएंगे। वोटर्स का यह आंकड़ा करीब एक करोड़ या इससे से अधिक हो जाएगा। नए चुनाव के बाद केंद्र शासित सूबे की सियासी तस्वीर बिल्कुल जुदा होने का अनुमान है, लेकिन गैर कश्मीरियों को वोटिंग देने का अधिकार इस सूबे के सियासतदानों को एकदम हजम नहीं हो रहा है। प्रमुख दलों के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है।

लद्दाख पहली बार नहीं होगा कश्मीर इलेक्शन का हिस्सा
आर्टिकल 370 की समाप्ति के बाद लद्दाख अब इस केंद्र शासित प्रदेश में होने वाले चुनाव का हिस्सा नहीं होगा, क्योंकि केंद्र सरकार ने 05 अगस्त, 2019 को जेएंडके के राज्य की हैसियत खत्म करके जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों का दर्जा दे दिया था। कश्मीर में रह रहे गैर कश्मीरियों में स्टूडेंट्स, प्रवासी मजदूर आदि को अब वोटिंग का अधिकार मिल जाएगा। साथ ही सुरक्षा बलों के अफसर और जवान भी इस परिधि में शामिल हैं। बाहरी कश्मीरियों को निवास पत्र दिखाने की भी दरकार नहीं है। यदि कोई किरायेदार भी है तो वह भी अपने मताधिकार का उपयोग कर सकता है। पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों को मतदान की विशेष पॉवर पहले से ही मिली है। 15 सितंबर को समग्र मतदाता सूचियों का मसौदे का प्रकाशन होगा। 15 से 25 सितंबर तक आपत्तियां और दावे दर्ज किए जाएंगे। दस नवंबर तक दावों और आपत्तियों का निराकरण किया जाएगा। 25 नवंबर, 202 2 को नई मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन हो जाएगा। करीब चार बरस के बाद मतदाता सूचियों में विशेष संशोधन करने की मंजूरी चुनाव आयोग की तरफ से दी गई है। यह बड़ा ऐलान मुख्य चुनाव अधिकारी हृदेश कुमार सिंह ने प्रेसवार्ता में किया।

रोहिंग्या मुस्लिम नहीं, किराएदार होंगे वोटर्स सूची में शामिल
अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद बहुतेरे बाशिंदे मतदाता के रूप में सूचीबद्ध नहीं थे, लेकिन वे अब मतदान करने के पात्र हैं। आधार संख्या को वोटर्स लिस्ट्स के आंकड़ों से जोड़ने के लिए संशोधित पंजीकरण प्रपत्रों में प्रावधान किया गया है। निर्वाचन आयोग नए मतदाता पहचान पत्र जारी करेगा, जिसमें नई सुरक्षा विशेषताएं होंगी। कश्मीरी पंडित प्रवासी अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। नए मतदाताओं के पंजीकरण के लिए विशेष शिविर आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें उन सभी को मतदाता पहचान पत्र दिए जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में शरण लेने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाएगा। मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार ने बताया, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई जम्मू कश्मीर में कितने समय से रह रहा है। गैर स्थानीय जम्मू कश्मीर में रह रहा है या नहीं, इस पर अंतिम फैसला ईआरओ करेगा। यहां किराए पर रहने वाले भी मतदान कर सकते हैं। इसके अलावा सामान्य रूप से रह रहे लोग भी जन अधिनियम के प्रतिनिधित्व के प्रावधानों के अनुसार मतदाता के रूप में सूचीबद्ध होने के अवसर का फायदा उठा सकते हैं।

जमीन खिसकती देखकर विपक्षी दलों के लीडर्स तिलमिलाए
बाहरी कश्मीरी वोटरों के जुड़ने के प्रस्ताव से विपक्ष दलों ने तल्ख कमेंट्स किए हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा, इसका मतलब कि बीजेपी यहां के चुनाव परिणामों को प्रभावित करना चाह रही है। वह चाहती है, यहां के पुराने बाशिंदे कमजोर पड़ जाएं। पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि क्या बीजेपी अब इतना असुरक्षित महसूस कर रही है कि उसे वोटों के लिए बाहर से आयात करना पड़ रहा है। परिसीमन के बाद सात सीटों में इजाफा हुआ है। 83 सीटों से बढ़कर 90 हो गई हैं। इनमें जम्मू की 6, जबकि कश्मीर की एक सीट शुमार है। कुल 90 सीटों की बात करें तो इसमें कश्मीर की 47, जबकि जम्मू की 43 सीटें हैं। इनमें से दो सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए रिजर्व रखी गई हैं। पहली बार एसटी कोटे के लिए 9 सीटों को रिजर्व रखा गया है। इसके साथ ही पीओके से विस्थापित शरणार्थियों लिए भी रिजर्वेशन का प्रस्ताव है।

370 की विदाई से बदली-बदली तस्वीर
जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी। इस राज्य का अपना झंडा भी था। जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं माना जाता था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पहले जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते थे। रक्षा, विदेश, संचार छोड़कर अन्य मामलों में जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति अनिवार्य थी। विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता था। अब कार्यकाल पांच वर्षों का होगा। हालांकि, अभी वहां विधानसभा नहीं है।

जम्मू-कश्मीर में हिंदू-सिख अल्पसंख्यकों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था। अब अल्पसंख्यकों को आरक्षण का लाभ मिल पा रहा है। वहीं, अनुच्छेद-35A के जरिए जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते थे। जैसे- इस प्रावधान के अनुसार, 14 मई, 1954 या इससे पहले 10 सालों से राज्य में रहने वालों और वहां संपत्ति हासिल करने वालों को ही जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक बताया गया था। इन निवासियों को विशेष अधिकार प्राप्त होते थे। स्थायी निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के अधिकार मिले हुए थे। बाहरी/ अन्य लोगों को यहां जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, संस्थानों में दाखिला लेने का अधिकार नहीं था। अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर लेती थी, तो उसके अपनी पैतृक संपत्ति पर से अधिकार छिन जाते थे, लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं था।

अब देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर राज्य में जमीन खरीद सकता है। वे वहां सरकारी नौकरी भी कर सकते हैं। देश के किसी भी राज्य के विद्यार्थी वहां उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में महिला और पुरुषों के बीच अधिकारों को लेकर भेदभाव खत्म हो गया है। इतना ही नहीं, अब देश का कोई भी व्यक्ति कश्मीर में जाकर बस सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और रिसर्च स्कॉलर हैं।)

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