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नीतीश और चिराग, दोनों का भविष्य भाजपा के हाथ

– अरविंद कुमार शर्मा

बिहार चुनाव के कई मायने हैं, कई और निकाले जाएंगे। जीत के साथ दुनिया और हारनेवाले की लाख खामियां। जीत होती भी है खूबियों के कारण और भारतीय जनता पार्टी ने इसे एकबार फिर बिहार में दिखा दिया है। ये केंद्र और कई राज्यों में स्तारूढ़ और निर्विवाद रूप से मजबूत संगठन वाली पार्टी का एक और आक्रामक चुनाव अभियान रहा। इसे फिर से औपचारिक दोहराव ही कहा जायेगा कि इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सबसे ऊपर है।

इन तमाम पूर्व ज्ञात तथ्यों के साथ बिहार चुनाव ने एक खास बिंदु सामने रखा है। यह बिंदु है राज्य में अबतक बड़े भाई की भूमिका अदा करने वाले जदयू और निहायत ही छोटे सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी का भविष्य। दोनों के नेता क्रमशः नीतीश कुमार और चिराग पासवान हैं। ये दोनों भविष्य में क्या करेंगे, बहुत कुछ भारतीय जनता पार्टी के रुख पर निर्भर करेगा। फिलहाल, चिराग के मामले में भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव ने कह दिया है कि उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा नहीं है। इस तरह विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के हनुमान बने चिराग की भाजपा के साथ फिलहाल डोर कट ही गई है। फिर भी इसके अंतिम दृश्य होने का दावा नहीं किया जा सकता।

पिता रामविलास पासवान की गंभीर बीमारी के बीच बिहार में अपना राजनीतिक कद बनाने के प्रयास में चिराग पासवान को क्या मिला, यह बड़ा सवाल है। उनका मात्र एक विधायक चुना जा सका है। नीतीश कुमार को उन्होंने चोट जरूर पहुंचाई है, पर उन्हें मुख्यमंत्री बनने से रोकने का ख्वाब तो दूर ही दिख रहा है। प्रधानमंत्री ने भाजपा मुख्यालय से उद्घोष कर दिया है कि पार्टी के सभी कार्यकर्ता बिहार में नीतीश जी के नेतृत्व में ‘संकल्प सिद्धि’ करेंगे। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते नरेंद्र मोदी के इस बयान के साथ ही यह ऊहापोह खत्म हो गया कि बड़ी पार्टी बन जाने के बाद राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री होना चाहिए। परिणाम आने के बाद कई घंटे सार्वजनिक तौर पर सामने आने से बचने वाले नीतीश कुमार ने 12 नवंबर को पार्टी दफ्तर पहुचकर विधायकों से मुलाकात की।

फिर नीतीश को सीएम बनने से रोकने में असफल चिराग अब क्या करेंगे? पिता रामविलास पासवान नहीं रहे। उनके निधन के बाद चिराग ही पार्टी के सर्वेसर्वा हैं। वह लोकसभा के सदस्य हैं। चिराग ने चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया देने में देर नहीं की। एक ट्वीट में उन्होंने कहा, इतने मुश्किल वक्त में भी मेरा हौसला नहीं टूटा। बिहार पर नाज़ करने के लिए अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लेने का समय आया तो मैं घबराया नहीं। यहां कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें 15 साल सत्ता में रहने के बाद भी तीन साथियों का सहारा लेना पड़ता है। आप सभी के आशीर्वाद से बिहार जीतेगा और नया युवा बिहार बनेगा।

नया युवा विहार कैसे बनेगा, इसपर चिराग का अपना रोडमैप क्या है, इसपर अभी चर्चा का सवाल ही नहीं है। अभी तो बीजेपी के प्रभाव के बावजूद जदयू के नीतीश ही बिहार को आगे बढ़ाएंगे। रही बात चिराग की, तो उन्हें भी दृश्य से बाहर नहीं मान लेना चाहिए। दलित और अति पिछड़ों के मतों पर पासवान परिवार का असर कायम है। इसका आकलन हो ही रहा है कि चिराग के कारण कहां कितने हजार मतों से नीतीश के उम्मीदवार हार गए।

भाजपा ने यह भूलने की गलती कभी नहीं की है कि पासवान कमजोर रहे हैं। अलग बात है कि पिता के बाद पुत्र पासवान को कब कैसे जोड़ा जाएगा, यह अभी विचार का विषय नहीं है। यदि सरकार बनाने में चिराग का तनिक भी योगदान होता तो भाजपा नीतीश को राजी कर सकती थी। परन्तु साढ़े तीन साल बाद भी चिराग महत्वहीन रहेंगे, ऐसा नहीं होगा। बहुत कुछ राज्य में उनकी निरंतर सक्रियता पर भी निर्भर करेगा। अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिलने के कारण यह थोड़ा कठिन काम होगा, पर चिराग का अपना व्यक्तित्व इस ओर कोशिश करने लायक जरूर दिखता है।

सरकार में शामिल भाजपा मुख्यमंत्री के दल से बड़ा संगठन है। सरकार में संख्याबल के हिसाब से उसकी अधिक भागीदारी हो सकती है। ऐसे में सधे और सुलझे मुख्यमंत्री पहले के मुकाबले कितना सहज रहेंगे, यह भी देखना होगा। सबसे बड़ी बात यह कि इसबार अपना अंतिम चुनाव घोषित करने वाले नीतीश कुमार राज्य में एक लचर प्रदर्शन के साथ रिटायर नहीं होना चाहेंगे। इन तमाम प्रश्नों पर समय के साथ जवाब मिलेंगे। अभी तो नीतीश कुमार और चिराग पासवान, दोनों ही भाजपा के अनुकूल ही रहेंगे। एक सरकार में भागीदार हैं, दूसरे बाहर। राजनीति समय के हिसाब से परिवर्तन कराती ही रहती है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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