ब्‍लॉगर

ऑक्सीजन पर राजनीति नहीं, परस्पर सहयोग जरूरी

सियाराम पांडेय ‘शांत’
इस विषम कोरोनाकाल में प्राणवायु के संकट पर भी राजनीति तेज हो गई है। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल बिज ने आरोप लगाया था कि दिल्ली ने उसका ऑक्सीजन से भरा टैंकर लूट लिया है। इसके बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों को भी आरोपों के कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र से दिल्ली के लिए आवंटित ऑक्सीजन की आपूर्ति में हरियाणा और उत्तर प्रदेश अवरोध पैदा कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की किल्लत को दूर करने के लिए उनकी सरकार उड़ीसा से ऑक्सीजन मंगा रही है। जाहिर है कि इस तरह की बातें कहकर वह देश में यह संदेश देना चाहती है कि केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों से ऑक्सीजन के मामले में उसे सहयोग नहीं मिल पा रहा है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की मानें तो केंद्र द्वारा आवंटित कोटे के तहत हरियाणा रोज दिल्ली एनसीआर को 140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दे रहा है। जबकि हरियाणा में महज 270 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन रोज हो पा रहा है। यही नहीं, वह रोज 20 मीट्रिक टन ऑक्सीजन पंजाब को भी दे रहे हैं। यदि ऐसा है तो आरोप लगाने से पहले केजरीवाल सरकार के मंत्रियों को सौ बार सोचना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने मौजूदा हालात को राष्ट्रीय आपातकाल करार दिया और हजारों टन ऑक्सीजन के उत्पादन तथा रोगियों के लिए इसकी नि:शुल्क आपूर्ति जैसे आधार पर तमिलनाडु के तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट कॉपर इकाई को खोलने के वेदांता समूह के आग्रह पर सुनवाई को सहमत हो गया है। पीठ ने कहा है कि हम यह सब समझते हैं। हम सुनिश्चित करेंगे कि संयंत्र सभी पर्यावरण नियमों का पालन करे और इसकी ऑक्सीजन उत्पादन इकाई को काम करने की अनुमति दी जाएगी। हम ऑक्सीजन संयंत्र के मुद्दे पर हैं।

सॉलिसिटर जनरल तुषार के तर्कों में दम है कि हमें पर्यावरण रक्षा और जीवन रक्षा चुनने के मुद्दे पर अवश्य ही जीवन रक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने, उसके वितरण की गति तेज करने और स्वास्थ्य सुविधाओं तक उसकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए तेज गति से काम करने की आवश्यकता पर बल दिया है। समीक्षा बैठक में अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि 20 राज्यों की ओर से रोज 6785 मीट्रिक टन तरल चिकित्सीय ऑक्सीजन की मांग है जबकि मांग के मुकाबले 21 अप्रैल से उन्हें 6822 मीट्रिक टन प्रतिदिन आवंटित की जा रही है। बैठक के दौरान बताया गया कि पिछले कुछ दिनों में तरल चिकित्सीय ऑक्सीजन की उपलब्धता 3300 मीट्रिक टन प्रतिदिन बढ़ी है। इसमें निजी और सरकारी इस्पात संयंत्रों, उद्योगों, ऑक्सीजन उत्पादकर्ताओं का योगदान शामिल है। गैर-आवश्यक उद्योगों की ऑक्सीजन आपूर्ति पर रोक लगाकर भी ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाई गई है। अगर वाकई ऐसा है तो ऑक्सीजन को लेकर देश के अस्पतालों में हाय-तौबा के हालात क्यों हैं, विचार तो इस बात पर भी किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने ऑक्सीजन की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ राज्यों को कठोर कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए हैं। गृह मंत्रालय ने भी ऑक्सीजन मामले में कमान संभाल ली है। गृह मंत्रालय ने निर्देश दिया है कि राज्यों के बीच चिकित्सकीय ऑक्सीजन की आवाजाही पर कोई पाबंदी नहीं लगायी जानी चाहिए। राज्य परिवहन निगमों को ऑक्सीजन परिवहन में शामिल वाहनों की मुक्त अंतर्राज्यीय आवाजाही की इजाजत का आदेश दें। ऑक्सीजन उत्पादकों पर कोई पाबंदी नहीं है, आपूर्तिकर्ता जिस राज्य में स्थित हैं सिर्फ वहीं के अस्पतालों को जीवन रक्षक गैस की आपूर्ति करेंगे।
अलीगढ़ और इटावा जिले के अस्पतालों में नौ लोगों की ऑक्सीजन से मौत का मामला प्रकाश में आया है। इससे पहले महाराष्ट्र के नासिक में 24 लोगों की मौत हो गई थी। प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि कसी भी व्यक्ति की ऑक्सीजन के अभाव में जान नहीं जानी चाहिए लेकिन इसके लिए जरूरी है कि ऑक्सीजन की जमाखोरी और कालाबाजारी न हो। ऑक्सीजन की कमी न हो, इसके लिए वातावरण को परिशुद्ध रखने पर भी ध्यान देना होगा। वैकल्पिक उपायों से ही बात नहीं बनेगी। कोई प्रतिकूल टिप्पणी करे, इससे अच्छा है कि अव्यवस्था के सभी छिद्रों की तलाश कर उन्हें बंद किया जाए। राजनीतिक दल इस आपदा काल में अनावश्यक टांग खिंचाई से बचते हुए लोगों को अपना शत-प्रतिशत सहयोग दें, यही मौजूदा समय की मांग भी है।
(लेखक हिन्दु्स्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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