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    इंदौर में ही पटवारी की घेराबंदी, दिल्ली तक पहुंचा मामला

  • October 30, 2024

    • प्रदेश कांग्रेस की नई प्रबंधकारिणी की घोषणा के बाद

    इंदौर, विशेष संवाददाता। प्रदेश कांग्रेस की नई प्रबंधकारिणी के गठन के बाद प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की उनके ही गृहनगर इंदौर में तगड़ी घेराबंदी हो गई है। नाराज नेताओं ने दिल्ली तक दस्तक दे दी है और पटवारी से खफा कुछ बड़े नेता उनकी खुलकर मदद कर रहे हैं। पटवारी पर आरोप है कि इंदौर से जिन नेताओं को उन्होंने पदाधिकारी बनाया है उनकी कोई मैदानी पकड़ नहीं है। कमलनाथ समर्थक केके यादव, गजेंद्र वर्मा और चंदू अग्रवाल के नाम भी नाथ खेमे की ओर से आगे बढ़ाए गए थे और इनमें से यादव को उपाध्यक्ष या महामंत्री बनवाने में कमलनाथ की गहरी रुचि थी। इसके बावजूद उन्हें मौका नहीं दिया गया।

    इन लोगों ने अब कमलनाथ से मिलकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी बात रखने का फैसला किया है। अग्रवाल का तो कहना है कि जब राऊ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की टेबल पर बैठने वाले नहीं मिलते हैं, तब प्रदेश अध्यक्ष को हमारी याद आती है और जब पदाधिकारी बनाने का मौका आता है तो वह हमें भूल जाते हैं। अग्रवाल कांग्रेस के उन नेताओं में हैं, जो 1972 से लेकर आज तक के हर चुनाव में मैदान में सक्रिय रहते हैं। इंदौर के अल्पसंख्यक नेता भी पटवारी से बहुत नाराज हैं। इनमें से एक अफसर पटेल ने तो खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार भी कर दिया है। पटेल पटवारी के गृह विधानसभा क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं और हर विधानसभा चुनाव में खुलकर मदद भी करते हैं। इसी तरह पटवारी के खासमखास शेख अलीम के साथ ही सोहराब पटेल और अनवर दस्तक जैसे अल्पसंख्यक नेता भी दबे स्वरों में अपना आक्रोश प्रकट कर रहे हैं।


    सज्जन वर्मा समर्थक सबसे ज्यादा खफा
    पटवारी के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा के समर्थक हैं। इन लोगों का कहना है कि जब पटवारी संकट में थे, तब वर्मा ने उनकी खुलकर मदद की और आज भी कर रहे हैं। इसी के चलते उन्हें कमलनाथ की नाराजगी का शिकार भी होना पड़ा। इसके बावजूद नई टीम बनाते समय पटवारी ने वर्मा द्वारा अनुशंसित नाम को तवज्जो नहीं दी। कई बार इंदौर नगर निगम के पार्षद रहे वर्मा के भतीजे अभय वर्मा को छोड़ दें तो उनके साथी मनोहर धवन, राजेश चौकसे, गिरधर नागर और लीलाधर करोसिया जैसे नेताओं को भी कोई पद नहीं मिला। यह सब ऐसे नेता हैं, जो मैदान की राजनीति से कोई वास्ता नहीं रखते और कागजों पर गुणा-भाग जमाने में माहिर हैं। इनमें से कुछ को पदाधिकारी बनाने का आग्रह तो स्वयं वर्मा ने पटवारी से किया था। यह नेता वर्मा के सामने भी अपने नाराजगी का इजहार कर चुके हैं। इनका मानना है कि वर्मा को लेकर पटवारी दिखावे की राजनीति कर रहे हैं। पर्दे के पीछे हुए उन्हें निपटाने में लगे हैं। वर्मा समर्थकों का यह भी मानना है कि दिग्विजयसिंह के हस्तक्षेप के कारण ही वर्मा समर्थकों की जानबूझकर उपेक्षा की गई है।

    अनदेखी की शिकायत इनकी भी
    इसी तरह अनुसूचित जाति, खासकर वाल्मीकि समाज से जुड़े कांग्रेस के नेताओं ने भी नई कार्यकारिणी में अपने समाज की उपेक्षा का मुद्दा केंद्रीय नेतृत्व के सामने रखने का निर्णय लिया है। इनका कहना है कि वाल्मीकि समाज खुलकर कांग्रेस की मदद करता है, लेकिन पदाधिकारियों की नियुक्ति में इस समाज से जुड़े नेताओं को भी अनदेखा किया
    गया है।

    पटवारी दु:ुखी हैं अपने ही नेताओं से
    पटवारी के दु:ख का कारण यह है कि उनकी पार्टी के ही वरिष्ठ नेता पदों के लिए तो दबाव डालते हंै, लेकिन संघर्ष की स्थिति में उनके कोई समर्थक मैदान में नजर नहीं आते हैं। चुनाव के वक्त तो यह लोग मोल-भाव करने लग जाते हैं।

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