ब्‍लॉगर

राजस्थान में कांग्रेसी दंगल

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट के दंगल का अभी अंत हो गया लगता है। सचिन को उप-मुख्यमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। अब भी सचिन यदि कांग्रेस में बने रहते हैं और विधायक भी बने रहते हैं तो यह उनके जीते-जी मरने-जैसा है। अब वे यदि कांग्रेस छोड़ेंगे तो करेंगे क्या? यदि वे कांग्रेस के बाहर रहकर गहलोत-सरकार को गिराने की कोशिश करेंगे तो उन्हें राजस्थान की भाजपा की शरण में जाना होगा।

भाजपा की केंद्र सरकार अपनी पूरी ताकत लगाकर सचिन की मदद करे तो गहलोत-सरकार गिर भी सकती है। भाजपा ने जैसे मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को साथ लेकर कांग्रेस सरकार गिरा दी, वैसा ही वह राजस्थान में भी कर सकती है। लेकिन यदि राजस्थान में ऐसा होता है तो सचिन पायलट और भाजपा को काफी बदनामी भुगतनी पड़ेगी। भाजपा के कुछ नेताओं ने सचिन को अपनी पार्टी में आ जाने का न्यौता दे दिया है तो कुछ कह रहे हैं कि विधानसभा में शक्ति-परीक्षण होना चाहिए। इस प्रकरण से यह भी पता चल रहा है कि भारतीय राजनीति में अब विचारधारा और सिद्धांत के दिन लद गए हैं। जो कांग्रेसी और भाजपाई नेता एक-दूसरे की निंदा करने में अपना गला बिठा लेते हैं, वे कुर्सी के खातिर एक-दूसरे के गले लगने के लिए तत्काल तैयार हो जाते हैं।

इसमें शक नहीं कि सचिन पायलट को राजस्थान में कांग्रेस की जीत का बड़ा श्रेय है लेकिन इस श्रेय के पीछे तत्कालीन भाजपा सरकार की अलोकप्रियता भी थी। सचिन को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया, इसका जवाब तो कांग्रेस-अध्यक्ष ही दे सकते हैं लेकिन सचिन ने यदि उप-मुख्यमंत्री बनना स्वीकार किया तो उन्हें धैर्य रखना चाहिए था। आज नहीं तो कल उन्हें मुख्यमंत्री तो बनना ही था। लेकिन अब वे क्या करेंगे? यदि गहलोत-सरकार उन्होंने गिरा भी दी तो क्या भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बना देगी? जहां तक कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का सवाल है, उसकी अक्षमता का जीवंत प्रमाण तो सिंधिया और पायलट हैं। गहलोत-सरकार, जो काफी अच्छा काम कर रही है, वह यदि अपनी अवधि पूरी कर लेगी तो भी यह तो स्पष्ट हो गया है कि केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस का नेतृत्व काफी कमजोर हो गया है।

(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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