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रामप्रसाद बिस्मिल की क्रान्तिकारी माता मूलमती

– प्रतिभा कुशवाहा

प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को कौन नहीं जानता। पर क्या हम यह जानते हैं कि उन्हें क्रांतिकारी ‘बिस्मिल’ बनाने का श्रेय किसे जाता है ? वास्तव में उनकी मां मूलमती को। मूलमती खुद ऐसे विचारों वाली महिला थीं जो न केवल क्रांतिकारी थे, बल्कि उन्होंने बेखौफ स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई। उनके क्रांतिकारी और स्वतंत्र विचारों का प्रभाव बालक बिस्मिल पर भी पड़ा। यह बात स्वयं बिस्मिल ने जेल में लिखी गई अपनी आत्मकथा में बताई। उन्होंने अपनी मां की तुलना इटली के महान क्रांतिकारी मैजिनी की मां से की थी। अपने संघर्ष के दिनों में जब भी रामप्रसाद निराश हुए, तो उबरने की ताकत उन्हें अपनी मां मूलमती के देशप्रेम के विचारों से मिली।

रामप्रसाद बिस्मिल ने भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकउल्ला खान, राजगुरु के साथ मिलकर 1928 में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की स्थापना की थी। 1918 में मैनपुरी षडयंत्र केस और 1925 में काकोरी रेल डकैती केस में शामिल होने के कारण बिस्मिल को गोरखपुर जेल में रखा गया था और वहीं उन्हें फांसी की सजा दी गई। 1927 में फांसी की सजा से एक दिन पहले मूलमती अपने बेटे बिस्मिल की पसंद का खाना बनाकर उनसे मिलने जेल गईं। तब मां को देखकर बिस्मिल रोने लगे। यह देखकर मूलमती ने बेटे से कहा- तुम्हारे जैसे बेटे को पाकर कोई भी गर्व महसूस करेगा। तो फांसी के फंदे से डरना नहीं चाहिए। इसके उत्तर में रामप्रसाद ने कहा कि मैं फांसी ने नहीं डर रहा हूं। मुझे इस बात का दुख है कि आज के बाद मैं कभी अपनी मां से नहीं मिल सकूंगा। उस दिन रामप्रसाद की आत्मकथा की पांडुलिपि मूलमती छुपाकर जेल से बाहर निकाल लाई। बाद में हम सब बिस्मिल को इसी के माध्यम से अधिक जान सके।

मूलमती का विवाह बाल्यावस्था में मुरलीधर से हो गया था। उनमें पढ़ने-लिखने की काफी लगन थी, उनकी पढ़ाई ठीक से नहीं हो सकी थी। पर पढ़ने में रुचि के चलते उन्होंने घर पर ही पढ़ना-लिखना सीख लिया था। मूलमती चूंकि प्रगतिशील सोच की महिला थीं, वे अपने आसपास की घटनाओं से ताल्लुक रखती थी, इसलिए पढ़ने-लिखने के महत्व को जानती-समझती थीं। उन्होंने अपनी पांच पुत्रियों की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था पुत्रों के समान ही की। मूलमती नारीवादी आंदोलन से दो-चार नहीं हुई थीं, पर अपने जीवन में अनजाने ही सही, नारीवादी नियमों को लागू कर देती थीं।

ऐसी साहसी मूलमती ने ही बिस्मिल को उनके बनाए रास्ते पर चलने के लिए न केवल प्रेरित किया, बल्कि उनकी निरंतर आर्थिक सहायता भी करती रहती थीं। जब बिस्मिल ने अपने जीवन का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम बना लिया, तो उनकी मां ने उनका खुलकर साथ दिया। इसके लिए उन्हें हमेशा पति और दूसरे रिश्तेदारों से तमाम बातें सुननी पड़ी थी। रामप्रसाद को उनकी पहली रिवाॅल्वर खरीदने के पैसे उनकी मां मूलमती ने ही इस शर्त पर दिये थे कि वे इसका दुरुपयोग नहीं करेंगे। राम प्रसाद के क्रांतिकारी संगठन और क्रांतिकारी पुस्तकों को छपवाने के लिए धन भी उनकी मां ने उपलब्ध करवाया था।

रामप्रसाद बिस्मिल के बलिदान के बाद भी मूलमती अपने देशप्रेम से विमुख नहीं हुईं। अंग्रेजों के विरुद्ध हुई एक सभा में मूलमती ने अपने दूसरे पुत्र को भी मातृभूमि के लिए बलिदान करने की बात कही, जो उस समय केवल दस वर्ष का था। वास्तव में हमारे देश में ऐसी साहसी और बलिदानी माएं नहीं होती, तो देश की आजादी कुछ और देर से मिलती। आज देश ऐसी महिलाओं का ऋणी है।

(लेखिका हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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