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UP के इस गांव में नहीं होता रावण दहन…ग्रामीण करते हैं पूजा!

ग्रेटर नोएडा (Greater Noida)। विजयादशमी पर्व पर देशभर में रावण दहन (Ravana Dahan) किया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां पर दशहरे के दिन सन्नाटा पसरा रहता है। यहां गांव में दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन नहीं होता है। पूरे गांव के लोग रावण की विशाल प्रतिमा (giant statue) की सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। विजयादशमी के दिन रावण की प्रतिमा का श्रृंगार कर पूजा करने की परम्परा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। वहीं, ग्रेटर नोएडा के एक गांव में दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता है. न ही यहां पर रावण दहन किया जाता है. रावण की जन्‍म स्‍थली को लेकर जाना-जाने वाला यह गांव ग्रेटर नोएडा के सेक्‍टर एक के पास स्थित है. यहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है. इसी तरह मप्र के मंदसौर में भी रावण की पूजा की जाती है.

जानकारी के अनुसार ग्रेटर नोएडा से करीबन 15 किमी दूर बसा बिसरख गांव है. जिसे रावण के गांव के रूप में जाना जाता है. बिसरख गांव में भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर भी है. जहां पर रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि के तपस्या के प्रभाव से भगवान शिव एक शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे. वहीं रावण के पिता मुनि विश्रवा की तपोभूमि और जन्मभूमि भी यह गांव है. रावण और उसके सभी भाइयों का जन्म भी बिसरख गांव में ही हुआ था. इसी के चलते ग्रामीण दशहरे के अवसर पर न तो रामलीला का आयोजन करते हैं न ही रावण का पुतला दहन करते हैं.



लोगों की आकस्मिक मृत्यु के कारण बंद हुई रामलीला
बिसरख में स्थित भगवान भोलेनाथ के प्राचीन मंदिर के पुजारी प्रिंस मिश्रा बताते हैं कि रावण की जन्मस्थली होने के कारण यहां के निवासी न तो रामलीला का आयोजन करते हैं न ही यहां पर रावण, कुंभकरण या मेघनाथ का पुतला दहन होता है. कुछ सालों पहले गांव के निवासियों द्वारा गांव में रामलीला का मंचन किया गया था जिसके बाद गांव के कई लोगों की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद दोबारा फिर कभी यहां पर रामलीला का मंचन नहीं हुआ न ही पुतला दहन किया गया.

इस गांव में हुआ था रावण का जन्म
वहीं बिसरख गांव के पड़ोस में स्थित पतवारी गांव के निवासी कृष्ण यादव बताते हैं कि यहां पर भगवान भोलेनाथ का बहुत प्राचीन मंदिर है. जिसमें रावण के पिता मुनि विश्रवा और रावण दोनों पूजा करते थे. रावण यहां पैदा हुआ था. इसलिए यहां के लोग रावण को अपने बेटे की तरह मानते हैं और दशहरे के अवसर पर ना तो कोई मेला लगता है ना ही रामलीला का मंचन यहां पर किया जाता है. बिसरख गांव के निवासी अनिल सिंह कहते हैं कि यह प्रथा आदिकाल से चली आ रही थी. रावण उनके गांव का ही था सभी उसे अपना पूर्वज मानते हैं और यहां पर ना तो रामलीला होती है ना ही रावण का पुतला दहन किया जाता है.

रावण के प्रति ग्रामीणों में अटूट श्रद्धा
मंदिर के पुजारी प्रिंस मिश्रा बताते हैं कि रावण की जन्म स्थली होने की वजह से यहां के ग्रामीणों में रावण के प्रति अटूट श्रद्धा हैं. ऐसा नहीं है कि वह भगवान श्री राम को नहीं मानते हैं लेकिन भगवान श्री राम की पूजा करने के साथ-साथ वह रावण की भी पूजा अर्चना करते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि रावण महा ज्ञानी और भगवान शिव का परम भक्त था, इसी कारण जहां दशहरे के दिन पूरे देश में रावण का पुतला दहन किया जाता है. वहीं बिसरख गांव के निवासी इस दिन शोक मनाते हैं.

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