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पीपुल्स वैक्सीन अलायंस की रिपोर्ट से खुलासा, 75 हजार रुपये प्रति सेकेंड कमा रही हैं कोविड वैक्सीन कंपनियां

नई दिल्ली। अमीर देशों को कोविड वैक्सीन(Covid Vaccine) बेचकर सिर्फ तीन कंपनियां सात अरब रुपये रोजाना कमा रही(Three companies earning seven billion rupees a day) हैं. लेकिन दो कंपनियां हैं जिन्होंने बिना मुनाफा कमाए वैक्सीन बेची(sold the vaccine without making a profit) हैं. कोविड वैक्सीन बनाने वालीं तीन कंपनियां फाइजर(Pfizer), बायोनटेक (Biontech) और मॉडर्ना (Moderna ) हर सेकेंड 1,000 अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 75 हजार रुपये कमा ( earning 75 thousand rupees every second) रही हैं. पीपुल्स वैक्सीन अलायंस People’s Vaccine Alliance (PVA) के विश्लेषण में यह बात सामने आयी है। पीवीए(PVA) के मुताबिक यह विश्लेषण कंपनियों द्वारा जारी आय रिपोर्ट पर आधारित है.

रिपोर्ट के मुताबिक अमीर देशों को कोविड वैक्सीन बेचकर इन तीन कंपनियों को रोजाना 9.35 करोड़ डॉलर (लगभग सात अरब रुपये) की कमाई हो रही है. जब अमीर देशों को वैक्सीन बेचकर कंपनियां अरबों कमा रही हैं, तब गरीब देशों के सिर्फ दो प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीन की पूरी खुराक मिली है.



विश्लेषण कहता है कि कंपनियों को अरबों डॉलर की सरकारी फंडिंग मिली(Companies got billions of dollars of government funding) है, इसके बावजूद उन्होंने दवा बनाने की तकनीक और अन्य जानकारियां गरीब देशों की कंपनियों से साझा करने से इनकार कर दिया. पीवीए ने कहा, “ऐसा करके लाखों जानें बचाई जा सकती थीं.” वैसे अन्य दो वैक्सीन उत्पादकों एस्ट्राजेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन (AstraZeneca and Johnson & Johnson) का रवैया इन तीन कंपनियों से भिन्न रहा है. एस्ट्राजेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन ने अपनी वैक्सीन को बिना लाभ के बेचा है. हालांकि ऐसी खबरें हैं कि ये कंपनियां भी अब बिना लाभ वैक्सीन बेचने की नीति को छोड़ने के बारे में सोच रही हैं.

भारत और दक्षिण अफ्रीका के नेतृत्व में सौ से ज्यादा विकासशील और गरीब देशों ने मांग उठाई थी कि कोविड वैक्सीन(covid vaccine) को पेटेंट नियमों से मुक्त किया जाए ताकि सभी देश अपने हिसाब से वैक्सीन का उत्पादन कर सकें. इस मांग का सबसे ज्यादा विरोध जर्मनी और युनाइटेड किंग्डम ने किया. पीपल्स वैक्सीन अलायंस बहुत लंबे समय से यह मांग करता आया है कि वैक्सीन पेटेंट मुक्त होनी चाहिए.

इस अलायंस में ऑक्सफैम, यूएनएड्स और अफ्रीकन अलायंस समेत करीब 80 सदस्य हैं. अब भी खतरा बना हुआ है ‘अवर वर्ल्ड इन डाटा’ नामक संस्था के मुताबिक दक्षिण अमेरिका में सिर्फ 55 प्रतिशत लोग कोविड वैक्सीन की पूरी खुराक ले चुके हैं. उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ओशेनिया में भी आधे से ज्यादा लोगों को पूरी खुराक लग चुकी है. एशिया में अभी 45 प्रतिशत लोग ही कोविड वैक्सीन की पूरी खुराक ले पाए हैं जबकि अफ्रीका में यह आंकड़ा महज 6 प्रतिशत है. जानें, कितनी कठिन है भारत में टीकाकरण की राह विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस वक्त दुनिया में जितने कोरोना मरीज हैं उनमें से 99.5 प्रतिशत डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित हैं. डबल्यूएचओ(WHO) ने कहा कि कोरोना वायरस (Corona virus)के इस वेरिएंट ने बाकी सारे वेरिएंट पीछे छोड़ दिए हैं. दक्षिण अमेरिका ही ऐसा क्षेत्र है जहां गामा, लैम्डा और मू वेरिएंट के ज्यादा मामले मौजूद हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने यह आशंका भी जताई है कि यूरोप और मध्य एशिया में अगले साल फरवरी तक पांच लाख लोगों की मौत हो सकती है. डबल्यूएचओ के यूरोपीय निदेशक ने कहा है कि यूरोप और मध्य एशिया एक बार फिर कोविड-19 का केंद्र बन गए हैं और 1 फरवरी तक लाखों और लोग मर सकते हैं. क्षेत्रीय निदेशक डॉ. हांस क्लूगे ने हाल ही में कहा कि अक्टूबर में इस क्षेत्र में आ रहे कोरोना वायरस के मामलों में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसकी मुख्य वजह टीकाकरण की धीमी रफ्तार और रोकथाम के उपायों की कमी बताई गई है. क्लूगे ने कहा कि इस कारण बीते चार हफ्ते में यूरोप और मध्य एशिया दुनियाभर में 59 प्रतिशत कोविड मामलों और 48 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार रहा.

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