खरी-खरी

चुनौतियों के पर्वत पर कैलाश की संजीवनी

दूसरी बार प्रदेश के नगरीय निकायों और आवास मंत्रालय के मुखिया बने जन-जन के नेता कैलाश विजयवर्गीय को जन-जन से जुड़ा विभाग मिला है… पार्षद, महापौर से लेकर मंत्री बने कैलाशजी में लोगों की मुश्किलों का एहसास भी है तो काम लेने की तकनीक भी है… अनुभवों का सैलाब है तो सोच का समंदर भी है… जो जिंदगीभर सीखा है…समेटा है…समझा है उस सोच के समंदर को… उस कल्पना के सागर को अब राह दिखाने का मौका तो है, लेकिन जितनी लोगों की उम्मीद है, उतनी चुनौतियां भी हैं… खजाना खाली पड़ा है… करों का बोझ पहले से जनता के माथे चढ़ा है… काम हो नहीं हो रहे हैं… जो हो रहे हैं उसके पैसे मिल नहीं रहे हैं… ठेकेदार आत्महत्या कर रहे हैं… काम करने वाले निठल्ले हो चुके हैं… फैसले लेने वाले सोच में सिकुड़ रहे हैं…लोग परिवर्तन चाहते हैं… अब कुछ नया मांगते हैं…जमीन पर फैलते शहरों को ऊंचाइयां मिलना चाहिए… इस प्रदेश में भी ऊंची इमारतों की कतार दिखना चाहिए… लोग सर झुकाकर नहीं उठाकर चलना चाहिए… अब तक जिम्मेदारों की संकुचित विचारधाराओं ने शहरों का सत्यानाश कर दिया… बुलंदगियों से परहेज किया और शहरों को जमीनों पर फैलने दिया… जहां वर्टिकल डेवलपमेंट होना चाहिए, वहां होरिजेंटल विकास कर शहर की दूरियां बढ़ा दीं… अब हम ट्रैफिक से जूझ रहे हैं…सिमटी सडक़ों पर सिसक रहे हैं… भीख के टुकड़ों की तरह एक-डेढ़ एफएआर, यानी जितनी जमीन उतना निर्माण जैसे तुगलकी फरमानों के चलते घरों की कीमतें आसमान पर हैं… दफ्तर, ऑफिस, दुकानों के लिए जगह नहीं है… पार्किंग छोड़ें या निर्माण का खर्च जोड़ें जैसी तुक-तान से गुजरते शहर में आधे निर्माण अवैध हो चुके हैं… जिसमें बिल्डर से ज्यादा सरकार का दोष है… जब भरपेट खाने को नहीं मिलेगा तो हर कोई चोरी करने लगेगा… शहरों को ऊंचाइयां चाहिए…निर्माण की आजादी चाहिए… पार्किंग की जगह चाहिए… केवल कहने से कोई प्रदेश अमेरिका नहीं बन जाता, अमेरिका जैसी सोच भी होना चाहिए… अब यह अपेक्षाएं इसीलिए साकार होती नजर आ रही हैं कि निकायों के मुखिया में विकास की सोच ही नहीं विजन भी है… वो डबल इंजन की सरकार का अर्थ जानते हैं… यदि छोटा सक्षम नहीं है तो बड़ा साथ देता है… शहरों के पास पैसा नहीं है तो केंद्र हाथ देता है… पैसा कैसे लाना है…किस योजना का लाभ उठाना है… इस प्रदेश को अब विजयवर्गीय के कद का भी लाभ मिलेगा…केंद्र सरकार से उनके संबंधों और राष्ट्रीय महासचिव रहते हुए बने संपर्कों से यह प्रदेश बुलंदगियों की ऊंचाइयों को छुएगा…जनता पर करों का बोझ नहीं बढ़ेगा, फिर भी विकास और विश्वास दोनों नजर आएगा…वर्षों पहले आईटी मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने वाले विजयवर्गीय ने टीसीएस और इन्फोसिस को ऐसी राह दिखाई कि शहर में कई आईटी कंपनियों ने राह बनाई…युवाओं को रोजगार मिला और शहर को ऊंचाइयां… अब निकाय और निर्माण राह तक रहे हैं…खेल के मैदान और खिलाड़ी भी उम्मीदें लेकर खड़े हैं…सांस्कृतिक शहर अपने लिए धरोहर मांगता है…यातायात से जूझता शहर पुलों की कतार मांगता है…अतिक्रमण हटना चाहिए, लेकिन कारोबार भी नहीं उजडऩा चाहिए… सडक़ें मुक्त होना चाहिए तो हॉकर्स झोन भी बनना चाहिए…शहर तो शहर जैसा लगना चाहिए… चुनौतियों का तो पर्वत है, पर कैलाश संजीवनी लाएंगे… मूर्छा कैसी भी हो हनुमानभक्त मिटाने आएंगे…

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