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एक और महामारी का संकेत: इस दवा की मांग में भारी बढ़ोतरी, तेजी से बढ़ रहे हैं मरीज

नई दिल्‍ली। देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला है। वायरस ने लोगों को शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से प्रभावित किया है। दूसरी लहर में संक्रमण के कारण फेफड़ों और हृदय संबंधी रोगों में बढ़ोतरी के साथ कई लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर देखा जा रहा है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में मौत के काफी ज्यादा मामले देखे गए। अपने आसपास लोगों को मरते देख और चारो तरफ फैली नकारात्मकता का असर स्पष्टतौर पर लोगों में तनाव, अवसाद और चिड़चिड़ेपन के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे समय में लोगों को अपने शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

इससे संबंधित हालिया रिपोर्ट्स में चौंकाने वाले आंकड़े भी सामने आए हैं। आंकड़ों के मुताबिक दूसरी लहर में एंटी-डिप्रेशन की दवाइयों के सेवन में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी देखी गई है। इससे स्पष्ट होता है कि अवसाद और तनाव से ग्रसित लोगों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। आइए इस बारे में स्वास्थ्य विशेषज्ञों से विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।

एंटी-डिप्रेशन दवाओं का बिक्री और मांग बढ़ी
एंटी-डिप्रेशन दवाइयों की बढ़ी मांग को लेकर सामने आए डेटा से पता चलता है कि अप्रैल 2019 में एंटीडिप्रेसेंट की बिक्री लगभग 189.3 करोड़ रुपए की थी, जोकि जुलाई 2020 में बढ़कर 196.9 करोड़ रुपए से अधिक हो गई है। अक्टूबर 2020 में यह आंकड़ा 210.7 करोड़ रुपए का था जोकि अप्रैल 2021 में 217.9 करोड़ रुपए के रिकॉर्ड के साथ शीर्ष पर पहुंच गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह के डेटा से स्पष्ट होता है कि लोगों को मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं पहले से भी थीं लेकिन कोरोना काल, विशेषकर दूसरी लहर में इसके मामले तेजी से बढ़े हैं।


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सर गंगाराम अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री एंड बिहेवियरल साइंस के उपाध्यक्ष डॉ राजीव मेहता ने बताया कि देश में एंटीड्रिप्रेसेंट्स दवाओं जिन्हें न्यूरो-कॉग्नेटिव इंहेंसर के रूप में भी जाना जाता है, इनकी बिक्री और खपत में 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। कोरोना के पहले जब जीवन सामान्य था तब मस्तिष्क के रसायन जीवन की परिस्थितियों को आसानी से नियंत्रित करने में सक्षम थे। हालांकि वर्तमान स्थिति के कारण इन रसायनों में असंतुलन बढ़ गया है, जिसके चलते लोगों को तरह-तरह की मानसिक समस्याएं हो रही हैं। न्यूरो-कॉग्नेटिव इंहेंसर की मांग में इसी वजह से बढ़ोतरी देखी जा रही है।

एंटीड्रिप्रेसेंट्स दवाओं का सेवन
एंटीड्रिप्रेसेंट्स दवाओं के सेवन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों और इसके उपयोग के बारे में जानने कि लिए हमने मनोरोग विशेषज्ञ डॉ सत्यकांत त्रिवेदी से बात की। डॉ सत्यकांत बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में फैली नकारात्मकता के कारण लोगों में अवसाद और तनाव के मामले देखने को मिल रहे हैं। मुख्यरूप में सेरोटोनिन न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुन के कारण इस तरह की समस्याएं होती हैं। इन समस्याओं के उपचार में SSRI (सलेक्टिव सेरोटोनिन रीअपटेक इनहिबिटर) समूह की दवाइयां सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती हैं। कोरोना ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को इस कदर प्रभावित किया है कि आने वाले एक-दो साल तक इन दवाइयों की मांग ऐसे ही बढ़े रहने की संभावना है। इसे पोस्ट कोरोना मानसिक स्वास्थ्य महामारी के रूप में देखा जा सकता है।

यह सावधानियां बेहद जरूरी
डॉ सत्यकांत बताते हैं कि यदि आपको तनाव या अवसाद महसूस हो रहा है तो भी एंटीड्रिप्रेसेंट्स दवाओं का खुद से सेवन शुरू न करें। इन दवाइयों का स्वयं से सेवन करने और छोड़ देने, दोनों के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। नींद के लिए खुद से कोई भी दवा न लें, असंतुलित डोज के कारण इनकी लत लगने का खतरा रहता है। चूंकि यह दवाएं मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं, इसलिए चिकित्सक के परामर्श के आधार पर ही इनका सेवन करना चाहिए। ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि तनाव-अवसाद के शिकार सभी लोगों को इन दवाओं की जरूरत नहीं होती है। 

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