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सिलक्यारा: बिहार के 5 मजदूरों की घर वापसी, बोले- ऐसा लगा जिंदगी छोड़ रही साथ, लेकिन फिर…

नई दिल्‍ली (New Dehli)। उत्तराखंड (Uttarakhand)के सिलक्यारा सुरंग से बाहर (Outside)निकाले गए बिहार के पांचों श्रमिक (workers)शुक्रवार की सुबह विमान (plane)से पटना लाये गये। यहां एयरपोर्ट पर इन श्रमिकों और उनके परिजनों से मिलकर श्रम संसाधन मंत्री सुरेन्द्र राम ने कुशलक्षेम जाना तथा स्वागत किया। श्रम मंत्री ने कहा कि सभी मजदूरों को विभाग के द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ दिया जाएगा। सभी स्तर पर सहायता प्रदान की जायेगी।


सुरंग से निकले राज्य के पांच श्रमिकों में भोजपुर के सबाह अहमद, सारण के सोनू कुमार साह, रोहतास के सुशील कुमार, बांका के वीरेंद्र किस्कू और मुजफ्फरपुर के दीपक कुमार शामिल हैं। ऋषिकेश में मौजूद इनके परिजन भी इनके साथ आये। श्रम प्रवर्तन पदाधिकारियों की देखरेख में इन सभी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाया गया।

पिछले कई दिनों से श्रमिक उत्तराखंड के सिलक्यारा सुरंग में फंसे हुए थे, जिनको बुधवार को बाहर निकाला गया था। सभी श्रमिक स्वस्थ थे। फिर भी इन पांचों का उत्तराखंड में ही प्रारंभिक उपचार किया गया। इसके बाद मजदूरों को बिहार लाया गया। एयरपोर्ट पर इनका कुशलक्षेम जानने को श्रम संसाधन विभाग के प्रधान सचिव डॉ. बी. राजेन्दर, विशेष सचिव आलोक कुमार आदि उपस्थित रहे

राज्य सरकार अपने खर्च पर श्रमिकों को ले आई
इन मजदूरों को बिहार सरकार अपने खर्चे से लाई। इन्हें लाने के लिए श्रम संसाधन विभाग ने अधिकारियों को दिल्ली भेजा था। सुबह साढ़े सात बजे से एयरपोर्ट पर मजदूरों को देखने के लिए उनके परिजन एवं अन्य लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। एयरपोर्ट के बाहर उन्हें गांव तक पहुंचाने के लिए पांच गाड़ियां खड़ीं थी। हर मजदूर के साथ एक श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी थे।

श्रमिकों ने सुनाई आपबीती
भोजपुर जिले के सहार थाना क्षेत्र के पीयुर गांव निवासी मोहम्मद सबाह अहमद ने बताया कि केंद्रीय मंत्री बीके सिंह और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पष्कर सिंह धामी लगातार हमारे संपर्क में थे। हमलोग जिस कंपनी में काम करते थे उसने भी काफी मदद की। हम लोगों को मालूम था कि आज नहीं तो कल बाहर निकलेंगे। खाने-पीने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि सरकार की ओर से पाइप के जरिए काफी सामग्री भेजी जा रही थी। बाहर में क्या गतिविधियां चल रही हैं उसकी जानकारी कुछ मित्र फोन से भी लेते थे।

ऐसा लगा जिंदगी हाथ से निकल गई
रोहतास जिले के तिलौथू थाना क्षेत्र के चंदनपुरा गांव निवासी सुनील कुमार ने बताया कि शुरू के 18 घंटे एकदम डरावने थे। ऐसा लगा कि जिंदगी हाथ से निकल गई। सोच रहा था यदि नहीं बच पाया तो मेरे परिवार का क्या होगा, लेकिन सुरंग में फंसे अन्य साथियों ने हौसला बढ़ाया। राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ओर से टनल में संदेश भेजे जा रहा था। कहा जाता कि आपलोग घबराइए नहीं, बाहर निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं।

शुरू के दो दिन डरावने थे
सारण जिले के खजुहान गांव के सोनु साह ने बताया कि शुरुआत के दो दिनों तक काफी दिक्कत हुई, लेकिन बाद के दिनों में आक्सीजन, पानी और खाने की सामग्री समय पर मिलने लगी। अंतिम दिनों में परिवार के लोगों से भी बातचीत होती थी। हमलोगों तक खाना पहुंचाने के लिए चार इंच का पाइप लगाया गया था। खाने-पीने की सामग्री इतनी भेजी जाती थी कि किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होती थी।

बांका के तेतरिया गांव निवासी वीरेंद्र किशु का कहना है सुरंग में मैंने भगवान की प्रार्थना शुरू कर दी। उत्तरकाशी बाबा भोलेनाथ की है, इसीलिए मैंने अपना जीवन उन्हें ही समर्पित कर दिया। जो मित्र मजदूर थे वे आपस में एक-दूसरे का साहस बढ़ा रहे थे। अंतिम दिन जब हमलोगों को ऐसा लगा कि अब कुछ देर में बाहर निकल जाएंगे तो भगवान का शुक्रिया किया और आज अपनों के बीच आ ही गया।

मजदूरों ने बताया कि शुरुआत के 18-24 घंटे काफी डरावने थे। एक-एक पल अनहोनी की आशंका के बीच गुजरा। बाहर के लोगों से जब उनका संपर्क हुआ और बातचीत होने लगी तक मजदूरों के हौसले बढ़ने लगे। खाना-पानी और आश्वासन के साथ हौसलों के बल पर उन्होंने 17 दिन टनल में गुजरा। इस दौरान मजदूरों ने काफी सुझबूझ से काम लिया। टनल के ही एक हिस्से का इस्तेमाल उन्होंने शौच के लिए किया। पहाड़ से टपकने वाले पानी से खुद को फ्रेश रखा। सबसे ज्यादा मुश्किल सोने की थी, किसी तरह उन्होंने जमीन पर अपनी नींद पूरी की।

भाई को लेने पहुंचीं दो सगी बहनें
भोजपुर जिले के पीयुर गांव निवासी मोहम्मद सबाह अहमद को लेने शुक्रवार की सुबह उनकी दो सगी बहनें नाजिदा और नाजिया पहुंची थी। जैसे ही वह एयरपोर्ट टर्मिनल भवन से बाहर आए दोनों बहनें गले से लिपटकर रोने लगीं। नाजिदा ने बताया कि डेढ़ माह पहले भाई काम करने के लिए उत्तराखंड गया था। जैसे ही सूचना मिली कि भाई मजदूरों के साथ टनल में फंस गया है वे लोग परेशान हो गए। दो दिन बाद मोबाइल से बातचीत हुई तो दिल को संतोष मिला। ऐसा लग रहा था कि भाई बच पाएगा या नहीं। अल्लाह से रोज दुआ करती थी कि भाई सुरक्षित घर लौट आए।

केंद्र और उत्तराखंड सरकार ने दिखाई तत्परता
मुजफ्फरपुर के गुंजासमत टोला के रहनेवाले दीपक कुमार ने कहा कि चौबीस घंटे तक लगा कि अब बचना मुश्किल है, लेकिन केंद्र और उत्तराखंड सरकार ने तत्परता दिखाई और टनल में खाने-पीने के वस्तुओं की व्यवस्था कर दी गई। दो दिन बाद तो हमलोग अपने परिवार वालों से बातचीत करने लगे थे। मैं तो परिवार वालों को सांत्वना दे रहा था कि परेशान नहीं हों। दीपक ने बताया कि नींद आने पर टनल की जमीन पर ही सो जाया करते थे।

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