विदेश

अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी से चीन-पाक को महसूस होने लगा खतरा

इस्लामाबाद। पाकिस्तान(Pakistan) में यह आशंका गहरा रही है कि अगर अमेरिका (America) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) से अपनी फौज पूरी तरह हटा ली, तो उसका असर चीन(China) की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव Belt and Road Initiative(BRI) परियोजना पर पड़ेगा। अंदेशा यह है कि इससे (Afghanistan) से लगी पाकिस्तान की सीमा(Pakistan Border) पर अस्थिरता पैदा होगी, जिससे बीआरआई के लिए खतरा बढ़ जाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (US President Joe Biden) की घोषणा के मुताबिक अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी शुरू हो चुकी है। अगले 11 सितंबर तक सभी अमेरिकी सैनिक वहां से वापस चले जाएंगे।

मुश्किल से बची चीनी राजदूत की जान
पाकिस्तान के विश्लेषकों का आकलन यह है कि सेना वापसी से पहले ही अफगानिस्तान और उससे लगे पाकिस्तान के इलाकों में अस्थिरता बढ़ गई है। नए हालात का फायदा उठाते हुए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने सीमा पार से हमले बढ़ा दिए हैं। पिछले महीने टीटीपी के एक हमले में पाकिस्तान स्थित चीन के राजदूत नांग रोंग की जान मुश्किल से बची।


पिछले सप्ताह नौ सुरक्षाकर्मियों की हत्‍या
बीते हफ्ते पाकिस्तान-अफगानिस्तान सरहद पर टीटीपी के हमलों में नौ सुरक्षाकर्मी मारे गए। सैनिक विश्लेषक फखर काकाखेल ने कहा कि आने वाले दिनों में पाकिस्तानी सीमा के करीब टीटीपी अपने लिए अधिक सुरक्षित स्थल हासिल कर लेगा।’ बताया जाता है कि तालिबान के लड़ाके अफगानिस्तान-पाकिस्तान के सीमाई इलाकों को पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल करते हैं। पैदा हो रहे हालात के कारण ही बीते 30 अप्रैल को अमेरिका और रूस के साथ मिल कर पाकिस्तान ने अफगान सरकार और तालिबान से अपील से की कि वे अफगानिस्तान की जमीन से सीमा पार हो रहे हमलों को रोकें।

सीपीईसी परियोजना क्षेत्रों में भी हमले
अमेरिकी विदेश मंत्रालय का भी ये आकलन है कि अफगानिस्तान में पैदा हुई अनिश्चितता से टीटीपी को पाकिस्तान में हमले करने का मौका मिला है। उसने जिन ठिकानों को निशाना बनाया है, उनमें बीआरआई के तहत बनी रही चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) से जुड़ी परियोजनाएं भी शामिल हैं।
वॉरसा स्थित वॉर स्टडीज एकेडमी में अफगानिस्तान के विशेषज्ञ प्रजेमिस्लाव लेसिंस्की ने का कहना है कि अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद टीटीपी उन ठिकानों पर आसानी से हमले कर सकेगा, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए अहम हैं। इनमें सीपीईसी भी शामिल है। उन्होंने कहा- ‘चीनी निवेश के कुछ स्थल टीटीपी की गतिविधियों वाले क्षेत्र में हैं, जो आसानी से निशाना बन जाएंगे।’

टीटीपी के चीन विरोधी स्वर तेज
अमेरिकी थिंक टैंक विल्सन सेंटर में एशिया प्रोग्राम के निदेशक माइकल कुगेलमैन के मुताबिक सीपीईसी परंपरागत रूप से टीटीपी का निशाना नहीं रहा है। लेकिन हाल में टीटीपी के प्रचार में चीन विरोधी स्वर तेज हो गए हैं। इसकी वजह चीन में उइघुर मुसलमानों का कथित दमन है। उन्होंने कहा कि टीटीपी की ताकत फिर बढ़ रही है। इससे पाकिस्तान में बड़े हमले होने की आशंका वास्तविक है।

पाक को बाड़ लगाने का काम तेज करना होगा
एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान ने अब तक अफगानिस्तान सीमा पर बाड़ लगाने पर सवा 53 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। जानकारों का कहना है कि पैदा हो रहे नए हालात के कारण इस काम में पाकिस्तान को निवेश बढ़ाना होगा। कुगेलमैन ने निक्कई एशिया से कहा कि अब तक पाकिस्तान ने जो बाड़ लगाई है, वह हमले रोकने में 100 फीसदी सक्षम नहीं है। जानकारों के मुताबिक अफगानिस्तान तालिबान और टीटीपी हालांकि आपस में जुड़े हुए हैं, लेकिन दोनों स्वतंत्र रूप से अपनी गतिविधियां चलाते हैं। पाकिस्तानी अधिकारियों की राय है कि हाल में जब टीटीपी ने पाकिस्तान को निशाना बनाया है, तब अफगानिस्तान तालिबान ने चुप्पी साधे रखी है।

अफगानिस्तान तालिबान का टीटीपी को संरक्षण
कुछ विशेषज्ञों की राय है कि टीटीपी को अफगानिस्तान तालिबान का संरक्षण हासिल नहीं है। सैनिक विश्लेषक फखर काकाखेल के मुताबिक अगर काबुल में अफगानिस्तान तालिबान की सरकार बन गई, तो उससे टीटीपी खुश नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि उस हाल में टीटीपी की पाकिस्तान पर हमले करने की क्षमता घट जाएगी। लेकिन इन विशेषज्ञों के मुताबिक भविष्य में टीटीपी को इस्लामिक स्टेट जैसे दूसरे उग्रवादी इस्लामी गुटों का समर्थन मिल सकता है। इसलिए पाकिस्तान की चिंता बनी रहेगी।

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