ब्‍लॉगर

कांग्रेस में गुलाम-संस्कृति

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

कश्मीरी नेता गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस को छोड़ देना कोई नई बात नहीं है। उनके पहले शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे कई नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं। इस बार गुलाम नबी का बाहर निकलना ऐसा लग रहा है, जैसे कांग्रेस का दम ही निकल जाएगा। कांग्रेस के कुछ छोटे-मोटे नेताओं ने आजाद के मोदीकरण की बात कही है। यह लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद भावुक होकर गुलाम नबी को राज्यसभा से विदाई देने के वाकये को जोड़कर देख रहे हैं। लेकिन कई अन्य कांग्रेस नेताओं की तरह गुलाम नबी भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं। वे अपनी पार्टी बनाएंगे, जो जम्मू-कश्मीर में ही सक्रिय रहेगी। वे कोई अखिल भारतीय पार्टी नहीं बना सकते। जब शरद पवार और ममता बनर्जी नहीं बना सके तो गुलाम नबी के लिए तो यह असंभव ही है। हां, यह हो सकता है कि वे अपने प्रांत में भाजपा के साथ हाथ मिलाकर चुनाव लड़ लें।

सच्चाई तो यह है कि पिछले लगभग 50 साल से कांग्रेस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह काम कर रही है। गुलाम नबी आजाद वास्तव में अब आजाद हुए हैं। उन्होंने नबी की गुलामी कितनी की है, यह तो वे ही जानें लेकिन इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी की गुलामी में उनका पूरा राजनीतिक जीवन कटा है। मुझे खूब याद है, कांग्रेस में गुलाम-संस्कृति की। जब मेरे अभिन्न मित्र नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे और मैं उनसे मिलने जाया करता था तो मेरे पिताजी की उम्रवाले कुछ मंत्री और गुलाम नबी जैसे मंत्री भी खड़े हो जाते थे और तब तक कुर्सी पर नहीं बैठते थे, जब तक कि मैं न बैठ जाऊं।

गुलाम नबी जो आज आजादी का नारा लगा रहे हैं, संजय गांधी के साथ उनके रिश्तों पर अन्य कांग्रेस नेताओं की टिप्पणियां पढ़ने लायक हैं। जो नेता गुलाम नबी की निंदा कर रहे हैं, उनके दिल में भी एक गुलाम नबी धड़क रहा है, लेकिन बेचारे लाचार हैं। राहुल गांधी के बारे में गुलाम नबी की टिप्पणी नई नहीं है। देश की जनता और सारे कांग्रेस नेता पहले से वह सब जानते हैं। गांधी, नेहरू, पटेल और सुभाष बाबू की कांग्रेस अब नौकर-चाकर कांग्रेस (एन.सी. कांग्रेस) बन गई है। अब यदि अशोक गहलोत या कमलनाथ या चिदंबरम या किसी अन्य को भी कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया जाए तो वह क्या कर लेगा? यह एक शेर उस पर भी लागू होगा- ‘‘इश्के-बुतां में जिंदगी गुजर गई मोमिन, अब आखिरी वक़्त क्या खाक़ मुसलमां होंगे?’’

अब कांग्रेस को यदि कोई बचा सकता है तो वह एकमात्र सोनिया गांधी हैं। वे अपने बेटे की गृहस्थी बनाएं और अपनी बेटी को अपना गृहस्थ चलाने को कहें। पार्टी में ऊपर से नीचे तक चुनाव करवाकर खुद भी संन्यास ले लें। सोनिया यदि कांग्रेस को ‘अधोमूल’ बनवा दें यानी उसकी जड़ें फिर से जमीन में लगवा दें तो यह देश के लोकतंत्र की बड़ी सेवा हो जाएगी।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

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