चुनावी मोड से बाहर आए पत्रकार
काँटों से गुजऱ जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ
आखिरकार कोई एक सवा महीने से चुनावी मोड में दिन रात एक कर रहे पत्रकारों को आज से सुकून मिल गया। हालांकि 17 जुलाई को चुनाव नतीजों के लिए फील्ड में काम कर रहे अखबारों और न्यूज चैनलों के सहाफियों को फिर जूझना होगा। बहरहाल, कल वोटिंग के बाद आज तमाम पत्रकार अपना थकेला निकालते नजर आए। लंबे टेम से भगते फिर रय खबरनवीस आज पिरेस कांप्लेक्स में चाय पान के ठियों पे सुकून में नुमाया हुए। इस दरम्यान उनका साबका कभी शदीद गर्मी से तो कभी भयंकर बारिश से भी पड़ा।ऐसा हे साब, चुनाव लोकसभा के होंए, विधान सभा के होंए या फिर नगर निगम के। भोपाल पूरे सूबे की सियासत का मरकज बन जाता है। लिहाजा पार्टियों के टिकट बांटने, टिकट काटने से होने वाले गदर की रमूज हर पत्रकार को कैच करना होती हेगी। इसके अलावा भोपाल नगर निगम चुनाव के नजरिए से 6 विधान सभा सीटों के पार्टीवार हालात मय आंकड़ों के साथ पेश करना, पुरानी जीत हारों और वोटिंग परसेंटेज के गणित वाली खबरें तकरीबन हर अखबार ने छापी। इसके लिए हर छोटे बड़े अखबार में चुनाव डेस्क और फील्ड रिपोर्टरों की टीम दिन रात काम करती रही। गोया के इन सारे दिमाग खपाऊ कामों से आज पत्रकार कुछ सुकून महसूस कर रहे हैं। बाकी भोपाल में कम वोटिंग के फायदे नुकसान का गणित लोकल नेता लगाने में मशगूल हो गए हैं। सो, शहर की नब्ज पे हाथ धरके नतीजों के कयास तक लगाए जा रहे हैं। हां…चुनावों के एलान से लेके नतीजे आने तक पत्रकारों की छुट्टियां कैंसल हो जाती हैं। बाकी आज से ये छुट्टियां बहाल हो जाएंगी। इस तवील वक्फे में प्रेस कांफ्रेंस, जुलूस जलसों के लिए लगातार भाग रहे सहाफियों को ये ब्रेक खासी राहत देने वाला है। लेकिन भाई जान आपकी किस्मत में आराम कहां। अगले बरस फिर चुनावी मोड के लिए तैयार रहो।
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