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दक्षिण अफ्रीका में भारतवंशियों को बचाओ

– आर.के. सिन्हा

अजीब बिडंबना है कि जब भारत में 18 जुलाई को दक्षिण अफ्रीका के मुक्ति योद्धा नेल्सन मंडेला की जयंती मनाई जा रही थी, तब दक्षिण अफ्रीका में भारतवंशियों पर हमले हो रहे थे। हमले अब भी जारी हैं। वहां बसे भारतीयों के घरों-दुकानों और इमारतों में तोड़फोड़ की जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत के बाहर सर्वाधिक भारतीय दक्षिण अफ्रीका में ही बसे हुए हैं। इनकी कुल संख्या 20 लाख से ऊपर बताई जाती है।

दरअसल दक्षिण अफ्रीका में पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा की गिरफ्तारी के बाद वहां के हालात बिगड़ गए। वहां दंगाइयों ने भारी पैमाने पर लूट मचाई है और अबतक दर्जनों लोगों की मौत हो गई है। भारतीय मूल के लोगों को जोहानिसबर्ग और क्वाजुलु नटाल में निशाना बनाया जा रहा है। आप पूछेंगे कि हिंसक तत्वों के निशाने पर भारतीय ही क्यों हैं ? इस सवाल का जवाब जानना जरूरी है। दरअसल जैकब जुमा को 15 महीने की कैद की सजा सुनाए जाने के बाद देश में हिंसा फैल गई। उन पर 2009 और 2018 के बीच राष्ट्रपति पद पर रहते सरकारी राजस्व में लूटखसोट का आरोप है। उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने भारत के उद्योगपति गुप्ता बंधुओं को खूब लाभ पहुंचाया। जिन अरबों रुपये के भ्रष्टाचार के मामलों में जुमा आरोपी हैं, उसी में गुप्ता बंधुओं का नाम भी शामिल है। गुप्ता परिवार जुमा का काफी करीबी था। गुप्ता बंधुओं पर आरोप है कि उन्होंने जुमा के बच्चों को भी फायदा पहुंचाया था। सीधी बात यह है कि जुमा या गुप्ता बंधुओं पर आरोप साबित होने पर एक्शन लिया गया दक्षिण अफ्रीका के कानून के मुताबिक। शेष भारतीयों के साथ ज्यादती करने का क्या मतलब है ?

अफसोस होता है कि जिस देश में महात्मा गांधी ने अश्वेतों के हक और नस्लवाद के लिए खिलाफ लड़ाई लड़ी, वहां गांधी के देशवासियों के साथ घोर अन्याय हो रहा है। दक्षिण अफ्रीकी सरकार वहां हिंसा को रोकने में कमजोर क्यों पड़ रही है? क्या वह भूल गई है कि उनके देश के सर्वकालिक महानतम नेता नेल्सन मंडेला खुद ही गांधीजी को अपना आदर्श मानते थे? मंडेला का भारत से भी आत्मीय संबंध था। वे लंबी जेल यात्रा से रिहा होने के बाद 1990 में दिल्ली आए थे। वह उनकी जेल से रिहा होने के बाद पहली विदेश यात्रा थी। भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। भारत सरकार ने राजधानी में मंडेला के नाम पर नेल्सन मंडेला मार्ग रखा। दरअसल मित्र राष्ट्र आपसी सौहार्द के लिए एक-दूसरे के देशों के महापुरुषों, जननेताओं तथा राष्ट्राध्यक्षों के नामों पर अपने यहां सड़कों, पार्कों और संस्थानों के नाम रखते हैं। उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार ने मंडेला के नाम पर एक खास सड़क का नामकरण किया।

गांधीजी के विचारों से प्रभावित मंडेला 1995 में फिर भारत आए। नेल्सन मंडेला के नाम पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में साल 2004 में नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कान्फ्लिक्ट रेज्युलुशन की स्थापना की गई। इस सेंटर की स्थापना मुख्य रूप से इसलिए की गई थी ताकि दुनियाभर में शांति और सद्भाव के लिए भारत की तरफ से की जाने वाली कोशिशों का गहराई से अध्ययन हो सके। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में भी अफ्रीकन अध्ययन केन्द्र है। वहां नेल्सन मंडेला चेयर भी है। दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में मंडेला सेंटर तो नहीं है पर वहां सन 1954 से डिपार्टमेंट आफ अफ्रीकन स्टडीज सक्रिय है। जाहिर है कि डीयू में भी मंडेला पर अध्ययन तो होता होगा।

दक्षिण अफ्रीका में फिलहाल भारतीयों के साथ जो कुछ हो रहा है, उससे साफ है कि कुछ भारत विरोधी शक्तियां ही यह सब करवा रही है। भारत तो सभी 54 अफ्रीकी देशों से बेहतर संबंध स्थापित करने को लेकर प्रतिबद्ध है। भारत अफ्रीका में बड़ा निवेशक है। अफ्रीका में टाटा, महिन्द्रा, भारती एयरटेल, बजाज आटो, ओएनजीसी जैसी प्रमुख भारतीय कंपनियां कारोबार कर रही हैं और लाखों अफ्रीकी नागरिकों को रोजगार भी दे रही हैं। भारती एयरटेल ने अफ्रीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डालर का निवेश किया है। भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी गहरी रुचि जताई है। इसी तरह भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह देख रही है। दूसरी ओर अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन व होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं।

अगर बात पूर्वी अफ्रीका की करें तो अंग्रेज सन 1896 से लेकर 1901 के बीच करीब 32 हजार मजदूरों को भारत के विभिन्न राज्यों से केन्या, तंजानिया, युंगाडा लेकर गए थे। इन्हें केन्या में रेल पटरियों को बिछाने के लिए ले जाये गये। सिखों का संबध रामगढिया समाज से था। पूर्वी अफ्रीका का सारा रेल नेटवर्क पंजाब के लोगों ने ही तैयार किया था। इन्होंने बेहद कठिन हालतों में रेल नेटवर्क तैयार किया। उस दौर में गुजराती भी केन्या में आने लगे। पर वे वहां पहुंचे बिजनेस करने के इरादे से न कि मजदूरी करने की इच्छा से। रेलवे नेटवर्क का काम पूरा होने के बाद अधिकतर पंजाबी श्रमिक वहीं बस गए। अब तो समूचे ईस्ट अफ्रीका के हर बड़े-छोटे शहर में भारतवंशी और उनके पूजास्थल हैं। केन्या के तो तमाम बड़े शहरों जैसे नैरोबी और मोम्बासा में बहुत सारे मंदिर और गुरुद्वारे हैं। इन भारतवंशियों के चलते भी अफ्रीका में भारत को लेकर एक बेहतर माहौल रहा है। कुछ समय पहले तक केन्या की राजधानी नैरोबी हो या फिर साउथ अफ्रीका के प्रमुख शहर, सभी में भारतीय कंपनियों के विशाल विज्ञापनों को प्रमुख चौराहों पर लगा हुआ देखा जा सकता था। भारत की ख्वाहिश रही है कि अफ्रीका के बाजार में भारत को और भी स्पेस मिले।

समूचे अफ्रीका को लेकर भारत की सद्भावना को लगता है कि दक्षिण अफ्रीका में समझा ही नहीं गया। इसीलिए वहां भारतवंशी हमलों के शिकार हो रहे हैं। ये हमले फौरन थमने चाहिए। दक्षिण अफ्रीका की सरकार को हिंसक तत्वों पर कसकर चाबुक चलानी चाहिए। उन्हें अपने देश के भारत मूल के नागरिकों को सुरक्षा देनी होगी। भारत के विदेश मंत्रालय को भी चाहिये कि वह दक्षिणी अफ्रीकी सरकार से राजनयिक स्तर पर इस मामले को गंभीरता से उठाये और भारतवंशियों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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