टेक्‍नोलॉजी

स्‍टडी में चौंकाने वाला खुलासा, प्रथ्‍वी पर मिले हिमालय से तीन गुना बड़े सुपरमाउंटेन्स

कैनबरा. हमारी धरती के इतिहास में दो बार ऐसा हुआ है, जब ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की रेंज बनी है. सबसे नई रेंज हिमालय है. साथ ही दुनिया के सबसे ऊंची चोटियां भी यही हैं. लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब हिमालय से तीन गुना ऊंचे पहाड़ थे. जिन्हें वैज्ञानिकों ने सुपरमाउंटेंस (Supermountaines) का नाम दिया है. हिमालय की रेंज तो मात्र 2400 किलोमीटर है. पर इन प्राचीन सुपरमाउंटेंस की रेंज इससे कई गुना ज्यादा थी. साथ इनकी ऊंचाई भी.

कैनबरा स्थित ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (ANU) के पोस्टडॉक्टरोल शोधार्थी जिई झू ने एक बयान में कहा कि प्राचीन सुपरमाउंटेंस (Ancient Supermoutaines) जैसी कोई भौगोलिक जगह अब धरती पर नहीं है. सिर्फ ऊंचाई की बात नहीं है, ये हिमालय की रेंज से कई गुना ज्यादा लंबे, भयावह और दुरूह थे. उस समय इन्हें मापने का कोई तरीका नहीं था. न ही यंत्र या तकनीक.

जिई झू ने अपने साथियों के साथ अति-प्राचीन चोटियों की स्टडी की है, जो 15 फरवरी 2022 को जर्नल Earth and Planetary Science Letters में पीयर रिव्यू के लिए प्रकाशित होगी. जिसमें इन सुपरमाउंटेंस (Supermountaines) के निर्माण और खत्म होने की पूरी रिपोर्ट है. यह हमारी धरती के सतत विकास की दो बड़ी घटनाओं से जुड़े हैं. पहले सुपरमाउंटेंस 200 करोड़ साल पहले धरती पर बने थे. दूसरी बार तब जब 54.1 करोड़ साल पहले समुद्री जीवन से संबंधित कैंब्रियन एक्सप्लोसन (Cambrian Explosion) हुआ था.



शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कैसे ये सुपरमाउंटेंस (Supermountaines) खत्म हुए और समुद्र में मिल गए. जिसकी वजह से समुद्र में पोषक तत्वों की भरमार हो गई. जिसकी वजह से जीवन की उत्पत्ति में सुपर-तेजी आई. धरती पर यानी सबसे पहले समुद्र में जीवन के सतत विकास की शुरुआत हुई. आमतौर पर पहाड़ों का निर्माण तब होता है, जब टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic Plates) जब जमीनी इलाकों को आपस में मिलाती है. ये ठीक वैसा ही है जैसे आप टेबल पर रखे किसी कागज को दो तरफ से केंद्र की तरफ धकेले तो उसमें ऊपर-नीचे लहरें बनती हैं.

जिई झू ने बताया कि पहाड़ों के निर्माण की प्रक्रिया लाखों-करोड़ों साल तक चलती रहती है. लेकिन हर पहाड़ के निर्माण के साथ ही उसके खत्म होने की तारीख भी तय होती ही है. हवा, पानी और अन्य प्राकृतिक शक्तियों की वजह से ये धीरे-धीरे नष्ट होते रहते हैं. इन सुपरमाउंटेंस (Supermountaines) का पता धरती की ऊपरी परत यानी क्रस्ट (Crust) के नीचे मिले जिरकॉन क्रिस्टल्स (Zircon Crystals) से भी किया जाता है. ये क्रिस्टल उसी समय के हैं, जब ये सुपरमाउंटेंस बने थे. ये जमीन में भयानक दबाव और तापमान के बीच रहते हैं.

जिई झू की नई स्टडी के मुताबिक जिरकॉन्स में कम मात्रा में लूटेटियम (Lutetium) भी मिला. यह धरती पर मौजूद दुर्लभ खनिजों में से एक है. यह दुर्लभ खनिज ऊंचे पहाड़ों की नींव में पाए जाते हैं. ये खनिज हिमालय के नीचे भी हो सकते हैं और प्राचीन सुपरमाउंटेंस (Supermountaines) के नीचे भी थे. प्राचीन सुपरमाउंटेंस का निर्माण 200 से 180 करोड़ साल पहले हुआ था. दूसरी घटना 65 करोड़ साल से 50 करोड़ साल के बीच हुई थी.

दूसरी घटना यानी 65 करोड़ से 50 करोड़ साल के बीच तब हुई थी, जब ट्रांसगोंडवाना सुपरमाउंटेंस (Transgondwana Supermountains) ने गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट (Gondwana) को क्रॉस किया था. तब गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट में आधुनिक अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, भारतीय और अरब प्रायद्वीप शामिल थे. तब सबसे बड़े और ऊंचे सुपरमाउंटेन का नाम था नूना सुपरमाउंटेन (Nuna Supermountain). यह गोंडवाना के बनने के बाद बना था. इस स्टडी से पहले इसकी खोज नहीं हुई थी.

धरती के क्रस्ट के नीचे फैले जिरकॉन क्रिस्टल्स (Zircon Crystals) की मात्रा बताती है कि प्राचीन सुपरमाउंटेंस (Supermountaines) की लंबाई करीब 8000 किलोमीटर थी. यानी आप श्रीनगर से कन्याकुमारी की यात्रा करीब दो बार कर लें. लेकिन गोंडवाना जब टूटकर अलग-अलग महाद्वीपों में बंटा तो ये सुपरमाउंटेंस समुद्र में मिल गए. उनकी मिट्टी के साथ पोषक तत्व भी समुद्रों में समा गए. 200 करोड़ साल से लेकर 50 करोड़ साल के बीच हुई ऐसी दो घटनाओं से लोहा और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व समुद्र में मिले. जिनसे जीवन की शुरुआत में तेजी आई.

इन पोषक तत्वों की वजह से समुद्रों में बायोलॉजिकल प्रक्रिया में तेजी आई. जीवन लगातार जटिल होता चला गया. सूक्ष्मजीवों से लेकर बहुकोशिका वाले जीवों, सरिसृपों, मछलियों और स्तनधारियों का सतत विकास होता गया. इतना ही नहीं सुपरमाउंटेंस (Supermountaines) के टूटने की वजह से भारी मात्रा में वायुमंडल में ऑक्सीजन मिला. जिसकी वजह से वायुमंडल में ऐसी परिस्थितियां बनी, जिनसे धरती पर जीवन की शुरुआत काफी मजबूत होती चली गई.

नूना सुपरमाउंटेन (Nuna Supermountain) के बनने और खत्म होने की प्रक्रिया के दौरान ही पहले यूकैरियोटिक सेल्स (Eukaryotic Cells) का निर्माण हुआ. यानी ऐसी कोशिकाएं जिनमें न्यूक्लियस होता है. जो आगे चलकर पेड़-पौधे, जीव और फंगस में विकसित होते चले गए. उसी समय ट्रांसगोंडवाना सुपरमाउंटेस नष्ट हो रहे थे. जिससे धरती के समुद्रों में जान आ रही थी. जो जीवन को बढ़ावा दे रही थी.

जिई झू ने कहा कि ट्रांसगोंडवाना सुपरमाउंटेंस (Transgondwana Supermountains) जिस समय था, उसी समय पहले बड़े जीव की शुरुआत होती है. ये बात 57.5 करोड़ साल पहले की है. 4.5 करोड़ साल पहले यानी कैंब्रियन एक्सप्लोसन के आखिरी समय तक जीवों के विकास की प्रक्रिया चलती रही. ये सारी बातें तो पुराने जीवाश्मों से भी पता चलती हैं. स्टडी में यह बात भी स्पष्ट हुई है कि धरती पर 170 करोड़ से लेकर 75 करोड़ साल के बीच पहाड़ों का निर्माण बंद होने लगा था.

भूगर्भ विज्ञानी इस ठहराव को बोरिंग बिलियन (Boring Billion) कहते हैं. क्योंकि धरती पर जीवन की शुरुआत हो चुकी थी. यह धीरे-धीरे अलग-अलग रूपों में विकसित हो रहे थे. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि नए पहाड़ों के निर्माण में ठहराव की वजह से समुद्रों में पोषक तत्वों की कमी हो रही है. जिसकी वजह से समुद्री जीव और इकोसिस्टम को पोषक तत्वों से दूर रहना पड़ रहा है. इसकी वजह से जीवों के विकास में रुकावट आई है.

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