ब्‍लॉगर

मन की बात में जल संरक्षण का समर्थन

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

मन की बात तो सभी करते हैं लेकिन उसे सलीके से कर कितने लोग पाते हैं, यह विचार का विषय है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर जब अपने मन की बात शुरू की, तब से अबतक वे 74 बार आकाशवाणी पर अपने मन की बात कर चुके हैं। इस कार्यक्रम का नाम भले मन की बात हो लेकिन सही मायने में यह आमजन के काम की बात है। कुछ कर गुजरने के जज्बे की बात है। जो लोग यह कहते हैं कि हम मोदी के मन की बात क्यों सुनें। ऐसे लोगों को समझना होगा कि अपनी बात तो सब करते हैं, जो सबकी बात करता है, श्रवण उत्कंठा तो वही पैदा कर पाता है। इसके लिए प्रधानमंत्री बड़ी मेहनत करते हैं। इसके लिए देशभर के लोगों से सुझाव आमंत्रित करते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों का जिक्र कर उनकी हौसलाअफजाई भी करते हैं। वैसे देश में फिलहाल दो तरह की चिंतन धारा बह रही है। एक धारा सबमें योग्यता देखने, उसे अवसर देने और निखारने की है और दूसरी धारा सबको भ्रष्ट और अयोग्य मानने, संविधान व लोकतंत्र को मुर्दा देखने वालों की है। ऐसे लोगों से यह देश उम्मीद करे भी तो किस तरह? सत्ताशीर्ष पर बैठे व्यक्ति अगर लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है?

‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री देशवासियों के अच्छे कार्यों की सराहना करते हैं और दूसरों से भी कुछ ऐसा करने, उससे भी अच्छा करने की उम्मीद भी करते हैं। प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत योजना चला रखी है। इसमें उन्होंने लोगों से अपने बल पर खड़ा होने का भी आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि आत्मनिर्भरता का मतलब है- भारत में बनी हर चीज के प्रति गर्व करना। प्रधानमंत्री जब भी मन की बात करते हैं, उसमें जनसुविधाओं के लिहाज से कोई न कोई अभियान जरूर छेड़ते हैं। इस बीच कोई दिवस हो तो उसपर अभियान छेड़े जाने की संभावना तो और भी अधिक प्रबल हो जाती है। इसबार उन्होंने देशवासियों से जल संरक्षण पर सौ दिन का अभियान चलाने का आग्रह किया है। उचित समय पर उचित बात कहने और उचित काम करने-कराने के वे सदैव हिमायती रहे हैं। उन्होंने जल को न केवल आस्था का प्रतीक बताया है बल्कि उसे विकास की धारा भी करार दिया है। देशवासियों से जल संरक्षण की भी अपील की है। प्रधानमंत्री को पता है कि सरकारी खर्च पर जलस्रोतों का संरक्षण संभव नहीं है लेकिन जन-जन अगर इसे अपने हाथ में ले लें, जल संरक्षण को आंदोलन और अभियान का रूप दे दिया जाए तो जल संरक्षण का यह काम चुटकियों में हो सकता है।

उनका मानना है कि दुनिया के हर समाज में नदी के साथ जुड़ी हुई कोई-न-कोई परम्परा जुड़ी है। नदी तट पर दुनिया की अनेक सभ्यताएं भी विकसित हुई हैं। यही नहीं, वेद-उपनिषद तक नदियों के किनारे लिखे गए। भारतीय संस्कृति और सभ्यता हजारों वर्ष पुरानी है इसलिए इसका विस्तार देश में और ज्यादा मिलता है। भारत में कोई ऐसा दिन नहीं होगा जब देश के किसी-न-किसी कोने में पानी से जुड़ा कोई उत्सव न होता हो। माघ के दिनों में तो लोग अपना घर-परिवार, सुख-सुविधा छोड़कर पूरे महीने नदियों के किनारे कल्पवास करते हैं। इसबार हरिद्वार में कुंभ भी हो रहा है। उनका मानना है कि पानी पारस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा, सोने में परिवर्तित हो जाता है वैसे ही पानी का स्पर्श जीवन और विकास के लिये जरूरी है। रहीम ने भी लिखा है कि पानी गए न ऊबरै मोती मानुस चून। जल संरक्षण के लिए, हमें, अभी से ही प्रयास शुरू कर देने चाहिए। 22 मार्च को विश्व जल दिवस है। बकौल प्रधानमंत्री, जल संरक्षण सरकार की नहीं ,जन-जन की जिम्मेदारी है और इसे देश के हर नागरिक को समझना होगा।

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा भी जल शक्ति अभियान- कैच द रेन शुरू किया जा रहा है। इस अभियान का मूलमंत्र है पानी जब भी और जहां भी गिरे, उसे बचाएं। उनका मानना है कि हम अभी से जुटेंगे और पहले से तैयार जल संचयन के तंत्र को दुरुस्त करवा लेंगे तथा गांवों में, तालाबों में, पोखरों की सफाई करवा लेंगे, जलस्रोतों तक जा रहे पानी के रास्ते की रुकावटें दूर कर लेंगे तो ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल का संचयन कर पायेंगे। युवाओं को वे यह नसीहत देना भी नहीं भूले कि वे कोई भी काम क्यों न करे लेकिन ,खुद को पुराने तौर तरीकों में न बांधें। अपने जीवन को खुद ही तय करें कि उन्हें क्या करना और क्या बनना है। उन्होंने उन्हें परीक्षा की तैयारी की तो सलाह दी,लेकिन स्वस्थ रहने,खेलने और खिलने तथा समय के उचित प्रबंधन की भी सलाह दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए साल में दूसरी बार अपने मन की बात कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित किया है। वह भी चिया सीड का जिक्र करके। चीन और अमेरिका में सुपर फूड मानी जानी वाली चिया सीड को रिटायर कर्नल हरिश्चंद्र ने बाराबंकी की धरती पर उगाया है। एक विदेशी फसल को बिना किसी सरकारी मदद के अपने संसाधनों के जरिये उगाए जाने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटिस किया। फिर प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में चिया सीड की खेती का जिक्र कर हरिश्चंद की मेहनत को सम्मान दिया। यह भी कहा कि यह खेती न सिर्फ हरिश्चंद की आय बढ़ाएगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत में अपना योगदान भी देगी। इससे पहले 31 जनवरी के कार्यक्रम में उन्होंने झांसी में स्ट्रॉबेरी उगाने वाली लॉ की छात्रा गुरलीन चावला का जिक्र किया था। प्रधानमंत्री अगर टोकना जानते हैं तो लोगों की सराहना करना भी नहीं भूलते। अपनी इसी खासियत की वजह से वे लोगों के दिलों पर राज करते हैं।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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