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सुप्रीम कोर्ट की नवलखा को दो टूक- सुरक्षा के एवज में चुकाने होगे 1.64 करोड़ रुपये

नई दिल्‍ली (New Delhi)। उच्चतम न्यायालय (Supreme court)ने मंगलवार को कहा कि कार्यकर्ता गौतम नवलखा (activist Gautam Navlakha)नजरबंदी के दौरान पुलिस कर्मियों की सुरक्षा(security of police personnel) के एवज में खर्च 1.64 करोड़ रुपये राशि महाराष्ट्र सरकार(Maharashtra Government) को देने की जिम्मेदारी (Responsibility)से बच नहीं सकते, क्योंकि सुरक्षा का अनुरोध उन्होंने स्वयं किया था। पीठ ने नवलखा का पक्ष रख रहे अधिवक्ता से कहा, ‘अगर आप मांग करते हैं तो आपको भुगतान भी करना होगा।’

शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, ‘यह देनदारी है, आप जानते हैं, आप इससे बच नहीं सकते क्योंकि आपने (नजरबंदी के दौरान सुरक्षा की) इसकी मांग की थी।’ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) का शीर्ष अदालत में पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू ने कहा कि 1.64 करोड़ रुपये बकाया हैं और 70 वर्षीय नवलखा को उनकी नजरबंदी के दौरान प्रदान की गई सुरक्षा के लिए भुगतान करना होगा।


नजरबंदी के आदेश को ‘असामान्य’ बताते हुए राजू ने कहा कि उनकी नजरबंदी के दौरान सुरक्षा के लिए चौबीसों घंटे बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है। नवलखा के वकील ने कहा कि भुगतान करने में कोई कठिनाई नहीं है, लेकिन मुद्दा राशि की गणना को लेकर है। एएसजी ने कहा कि नवलखा ने पहले इसके लिए 10 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया था और अब वह भुगतान करने से बच रहे हैं।

नवलखा के वकील ने कहा, ‘टालने का कोई सवाल ही नहीं है।’ उनके वकील ने कहा कि एनआईए की याचिका पर भी सुनवाई की जरूरत है, जिसमें बंबई उच्च न्यायालय के 19 दिसंबर, 2023 के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें नवलखा को जमानत दी गई थी। उच्च न्यायालय ने नवलखा को जमानत दे दी थी लेकिन एनआईए द्वारा शीर्ष अदालत में अपील दायर करने के लिए समय मांगने के बाद उसने तीन सप्ताह तक आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी।

शीर्ष अदालत ने पांच जनवरी को उच्च न्यायालय द्वारा नवलखा को जमानत देने के अपने फैसले के क्रियान्वयन पर लगाई गई रोक की मियाद बढ़ा दी थी। शीर्ष अदालत के समक्ष मंगलवार को सुनवाई के दौरान एएसजी ने कहा कि नवलखा ने खुद ही घर में नजरबंद करने का अनुरोध किया था और चाहे जमानत मिले या नहीं उन्हें 24 घंटे सुरक्षा के लिए किए गए खर्च का भुगतान करना होगा।

उन्होंने कहा, ‘जमानत का मुद्दा थोड़ा अलग है। उन्होंने पहले कहा था कि ‘मुझे घर में नजरबंद कर दो क्योंकि मैं ठीक नहीं हूं। अब वह स्वस्थ हैं और सब कुछ ठीक है।’ राजू ने कहा, ‘हमने कहा था कि अगर उन्हें ऐसी जगह नजरबंद किया जाएगा जहां वह रहना चाहते हैं, तो इसके लिए चौबीसों घंटे पुलिस कर्मियों की आवश्यकता होगी… उन्होंने कहा कि ‘मैं इस मद में होने वाले खर्च का भुगतान करूंगा।’

राजू ने कहा कि नवलखा यह कहकर भुगतान करने से नहीं बच सकते कि वह हिसाब लगाना चाहते हैं। पीठ ने नवलखा के वकील से कहा, ‘जब तक आपके पास यह सुविधा रहेगी, भुगतान की जाने वाली राशि बढ़ती जाएगी। आज हम जो सोच रहे हैं, वह यह है कि इसे उच्चतम स्तर को छूने की अनुमति देने के बजाय, हम एक सप्ताह का समय दें।’ इसमें कहा गया कि नवलखा के वकील गणना देख सकते हैं और अदालत को इसके बारे में बता सकते हैं।

पीठ ने कहा कि पांच जनवरी को लगाई गई अंतरिम रोक जारी रहेगी और मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी। नवलखा 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों के मामले में आरोपी हैं। पुलिस का दावा है कि उनके भाषण की वजह से अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़की। शीर्ष अदालत के आदेश पर नवलखा 10 नवंबर 2022 से ही नजरबंद हैं। इससे पहले वह नवी मुंबई के तलोजा कारागार में बंद थे।

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