आचंलिक

आचार्य अभ्यास वर्ग में हुआ शिक्षकों का संवाद सत्र

बडऩगर। व्यक्ति को शिक्षा के साथ-साथ नैतिक गुण, आध्यात्मिक गुण व संस्कार की भी आवश्यकता होती है। मूल्य शिक्षा हमारे अंदर नैतिक मूल्यों का विकास करती है। ये सीखने के साथ-साथ हमारे व्यक्तित्व में भी विकास करती है। यह बात सांवरिया शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बौद्धिक प्रमुख उज्जैन विभाग ने सरस्वती विद्या मंदिर उ.मा.वि. बदनावर मार्ग बडऩगर पर चल रहे तीन दिवसीय आचार्य अभ्यास वर्ग के द्वितीय दिवस के संवाद सत्र में सम्मिलित आचार्य और दीदी के बीच कही। उन्होंने कहा कि माता-पिता के बाद गुरु को ही सबसे ऊपर माना गया है। गुरु अर्थात शिक्षक उस कुम्हार के समान है जो मिट्टी रूपी विद्यार्थी को एक बर्तन का आकार देकर एक योग्य व उपयोगी पात्र बना देता है। एक शिक्षक ही विद्यार्थी को समाज के प्रति उसके उत्तरदायित्वों से रुबरु कराता है। एक शिक्षक का सबसे मुख्य काम यह है कि वह अपने विद्यार्थी को वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखकर शिक्षा दे। शिक्षा में परंपरा और नवीनता का मिश्रण होना चाहिये।


वो विद्यार्थी को केवल किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रखे बल्कि उसे जीवन के व्यवहारिक ज्ञान की भी शिक्षा दे जैसे देश भक्ति, ईमानदारी, समर्पण भाव, मानव सेवा, परोपकारी आदि। विद्यार्थी तो एक गीली मिट्टी से समान होता है शिक्षक उसे जैसा ढालेगा वैसा ढल जायेगा। यहाँ पर शिक्षक की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है। नैतिक मूल्यों की जो शिक्षा वो विद्यार्थी को देगा उसका प्रभाव विद्यार्थी पर जीवन पर्यंत बना रहेगा। यहीं से उसके चरित्र निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होगी। इस अवसर पर समिति सदस्य अरविन्द माहेश्वरी एवं संस्था प्राचार्य विष्णु श्रोत्रिय भी मंचासीन थे। वर्ग का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा मॉ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जलवन कर किया गया। अमृत वचन नेहा गोस्वामी दीदी ने एवं व्यक्तिगत गीत आचार्य राजेन्द्रसिंह पंवार ने प्रस्तुत किया। अतिथि परिचय लोकेश वैराडिय़ा ने किया। अतिथि स्वागत श्रीमती प्रतिभा खत्री एवं आरती प्रजापत दीदी ने किया। संचालन आचार्य प्रदीप राठौड़ ने किया। उक्त जानकारी संतोष कुमार खटोड़ द्वारा दी गई।

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