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9/11 हमले के आरोपियों को अब तक नहीं मिली सजा, कोर्टरूम बनाने पर ही अमेरिका ने खर्च किए थे 88 करोड़ रुपये

न्यूयॉर्क। अमेरिका (America) में 9 सितंबर 2001 को हुए हमलों को आज 20 साल पूरे हो गए। इस दिन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और एक अन्य जगह पर हुए आतंकी हमलों (terrorist attacks) ने पूरी दुनिया को दहला दिया था। अफगानिस्तान (Afghanistan) में ओसामा बिन-लादेन (Osama bin Laden) और उसके संगठन अल-कायदा (Organization Al-Qaeda) को खत्म करने की अमेरिका की कार्रवाई इसी हमले के बाद शुरू हुई।

अमेरिकी सेनाओं (US forces) ने दूसरे देश जाकर ओसामा बिन-लादेन को मारने के बाद अल-कायदा को हाशिए पर धकेल दिया, लेकिन 9/11 हमलों के बाद अमेरिका में ही पकड़े गए आरोपियों को अब तक सजा नहीं मिली है। हालात ऐसे हैं कि आतंकी हमलों के 20 साल बीतने के बाद भी उन आरोपियों के मामलों की सुनवाई तक शुरू नहीं हुई।

हमले के बाद गिरफ्तार हुए थे पांच लोग
गौरतलब है कि 9/11 हमले के बाद अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों (internal security agencies) ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें खालिद शेख मोहम्मद को हमले का मास्टरमाइंड करार दिया गया, जबकि उसके साथ चार और लोग वालिद बिन अताश, रमजी बिन अल-शिभ, अम्मार अल-बलूची और मुस्तफा अल हवसावी आरोपी बनाए गए थे। उन पर प्लेन हाईजैकिंग में शामिल रहे 19 लोगों की मदद करने के आरोप लगाए गए।

17-18 साल से जेल में बंद हैं पांचों आरोपी
इन सभी आरोपियों को 2002 से 2003 के बीच गिरफ्तार किया गया। इन पांचों आरोपियों पर 11 सितंबर की घटना के लिए आतंकवाद और युद्ध अपराध की धाराओं में मामला दर्ज किया गया। उन्हें मौत की सजा देने की मांग की गई। अमेरिकी अदालत में केस चलाने के लिए इन सभी ग्वानतनामो बे की जेल में भेज दिया गया, जहां उन पर सैन्य अदालत में केस चलाया जा रहा है।


20 साल बाद भी पहली सुनवाई का इंतजार
अमेरिका में हालात इतने खराब हैं कि ग्वानतनामो बे की जेल में कैद इन सभी लोगों के खिलाफ दर्ज मामले में अब तक सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है। इन पांचों को पहली बार 5 मई 2012 को अदालत में पेश तो किया गया, लेकिन मामले का ट्रायल ही नहीं हुआ। दिलचस्प बात यह है कि इन आरोपियों की सुनवाई के लिए जो विशेष अदालत बनवाई गई, उस पर ही करीब 88 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।

आरोपियों की सुनवाई में क्यों आ रही रुकावट?
अमेरिकी में कानून व्यवस्था की लेटलतीफी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभियोजन और बचाव पक्ष अब तक यह तय नहीं कर पाए कि आरोपियों को दोषी साबित करने के लिए सरकार को क्या-क्या सबूत मुहैया कराने होंगे? दरअसल, आतंकवाद से जुड़े मामलों में कानूनों को 2001 में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के समय से लेकर 2016 में बराक ओबामा तक कई बार संशोधित किया गया। इसके अलावा सुनवाई से पहले इस पर भी चर्चा हुई कि कौन से सबूत सुनवाई के दौरान कोर्ट में मान्य होंगे और कौन से नहीं।

बचाव पक्ष का कहना है कि आरोपियों के कई बयान उन्हें ग्वानतनामो जेल में रखे जाने के बाद लिए गए। बचाव पक्ष का दावा है कि उन लोगों ने एफबीआई के टॉर्चर के दबाव में जबरन गुनाह कबूल लिया। इसे लेकर बचाव पक्ष ने एफबीआई से जांच में मिले सारे सबूत मांगे और टॉर्चर के जरिए लिए गए बयानों को मानने से साफ इनकार कर दिया। शेख मोहम्मद के वकील गैरी सोवार्ड्स ने सुनवाई से पहले की प्रक्रिया को दोयम दर्जे का बताते हुए कहा कि वह अपने मुवक्किल को टॉर्चर किए जाने का मुद्दा उठाएंगे। साथ ही, सैन्य आयोग की वैधता को लेकर भी केस दायर करेंगे।  

सुनवाई के इंतजार में ही बदल गए तीन जज
ग्वानतनामो बे सैन्य अदालत में अब तक इस मामले की सुनवाई का इंतजार करते हुए तीन जज बदल चुके हैं। 2012 में आरोपियों के कोर्ट में पेश किए जाने के वक्त कर्नल जेम्स एल पोह्ल ट्रायल जज थे। इसके बाद एक जज रिटायर हुए। वहीं, एक और जज सुनवाई से पहले ही मरीन कोर में कमांडिंग पद पर चले गए। इस मामले की सुनवाई के लिए एक और उम्मीदवार जज बन सकते थे, लेकिन उन्होंने पीड़ितों के साथ रिश्ता होने का हवाला देते हुए खुद को केस से बाहर कर लिया। फिलहाल वायुसेना के कर्नल मैथ्यू मैकॉल को इस मामले की सुनवाई का जिम्मा सौंपा गया है। 20 अगस्त को उन्होंने 6 और 7 सितंबर को सुनवाई की तारीख तय की, लेकिन कोरोना के चलते यह टल गई।

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