खरी-खरी

सैकड़ों के सपने धूल का गुबार बन रहे थे… और पूरा देश तालियां बजा रहा था…


कितना नादान है यह देश, जो तबाही की खुशियां मनाता है…बर्बादी पर जश्न के गीत गाता है…दूसरों के आंसुओं पर मुस्कराता है… क्षणभर में धूल का गुबार बने नोएडा के ट््िवन टॉवर के मलबे को भ्रष्टाचार की तबाही बताकर गूंजते टीवी चैनल, उनके भोंपूओं से सुर मिलाते सोशल मीडिया और अपने पन्नों को भरकर खबर परोसने वाले अखबार इस देश के उस मर्म को समझ नहीं पाए, जिसमें हर दिन सभ्यता सिसक रही है…कानून का खून हो रहा है…आम लोगों के सपने रौंदे जा रहे हैं…जीवनभर की कमाई मलबे में बदल रही है…पूरी इजाजत से बनी थी वो इमारत…अब यदि इजाजत पैसे खाकर दी… नियमों को रौंदकर हासिल की…कानून को ताक पर रखकर थमाई तो आम आदमी का क्या कसूर…जिन अनुमतियों के आधार पर इमारतों और बिल्डिंगों को कानूनी करार दिया जाता है… जब वह बनाई जाए…पैसा लिया जाए…सपने बेचे जाएं…हर दिन इमारत बनती-बढ़ती नजर आए तो कोई कैसे उसे अवैध समझकर पीछे हट जाए…फिर जब एक-दो नहीं, 30-30 मंजिलें तन जाएं, तब कानून की आंखें रौद्र रूप दिखाएं और देश की सर्वोच्च अदालत उन इमारतों को अवैध बताकर इमारत धूल में मिलाने का आदेश सुनाए और पूरा देश इसे भ्रष्टाचार पर जीत बताए, लेकिन उस आम आदमी की हालत को समझ नहीं पाए, जिसमें वो हर दिन घुट रहा है…सरकार और सरकारी मुलाजिम बिक जाते हैं…पहले आंखें फेरकर गलत काम करवाते हैं… फिर पैसा खाकर मुहर लगाते हैं और बात अदालतों तक जाए तो पल्ला झाड़ते हैं…दो-चार सस्पेंड हो जाते हैं…फिर बहाल कर दिए जाते हैं, लेकिन लोग उजड़ जाते हैं…तबाह हो जाते हैं…बर्बाद हो जाते हैं…उनका विश्वास जब आंसुओं में बह जाता है, तब अदालत मुआवजे का भरोसा दिलाती है…ब्याज सहित पैसा लौटाने का आदेश सुनाती है…पहले तो ब्याज तो दूर मूल जमा पूंजी मिलने में बरसों लग जाएंगे… मिल भी जाएंगे तो अब लोग उतने पैसे से घर खरीद नहीं पाएंगे…उनकी इस बेबसी का जश्न पूरे देश के लोग मनाएंगे और इसे भ्रष्टाचार पर देश की जीत बताएंगे, लेकिन जश्न मनाने वाले यह समझ नहीं पाएंगे कि जो मातम आज उस ट्विन टॉवर के सैकड़ों खरीदार भोग रहे हैं, वो मातम किसी भी दिन उनकी दहलीज लांघ सकता है, क्योंकि यहां इंसाफ भी बेइंसाफी करता है…देर के अंधेर में पलता है…हजारों दिनों तक तर्क ही सुनता रहता है और फिर फैसले में सीधे-सच्चे लोगों की जान लेता है और देश इसे कानून की जीत समझता है, लेकिन हकीकत में देश हार जाता है…हारता रहता है…हजारों मजदूरों की मेहनत से बनी बिल्डिंग मलबे में बदल जाती है…देश के सीमेंट-सरिए की बलि चढ़ जाती है…सपनों की बोली जब लगाई जाएगी तो मुआवजे की राशि से चेहरे पर मुस्कान कैसे आएगी…

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