ब्‍लॉगर

सुखद होती भारतीय एथलेटिक्स की तस्वीर

– योगेश कुमार गोयल

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में भारतीय खिलाड़ी पिछले कुछ समय से बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। देश को गौरवान्वित करते ऐसे ही खिलाड़ियों में भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा भी शामिल हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलम्पिक में इतिहास रचने के एक साल बाद पिछले दिनों अमेरिका के ओरेगन में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया।

ओलम्पिक खेलों में 121 वर्षों के इतिहास में कोई भी भारतीय एथलीट पदक नहीं जीत सका था और नीरज ओलम्पिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय ट्रैक एंड फील्ड एथलीट बने थे। टोक्यो में स्वर्ण पदक पदक जीतकर नीरज ने भारतीय एथलेटिक्स के एक नए युग की शुरुआत की थी और अब वह विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं। इसके साथ ही उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में भारत का 19 साल का सूखा भी खत्म कर दिया।

उल्लेखनीय है कि विश्व चैंपियनशिप में भारत का अब तक का यह दूसरा पदक है, 2003 में लांग जंपर अंजू बॉबी जॉर्ज ने पेरिस में भारत को पहला पदक कांस्य दिलाया था। ओरेगन विश्व चैंपियनशिप 2022 में नीरज चोपड़ा ने क्वालिफिकेशन में 88.39 मीटर के साथ फाइनल में जगह बनाई और पदक राउंड में 88.13 मीटर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो करके रजत पदक जीता जबकि 90.54 मीटर की दूरी के साथ एंडरसन पीटर्स स्वर्ण पदक जीतकर विश्व चैंपियन बने, जिन्होंने फाइनल में तीन बार 90 मीटर के मार्क को पार किया। नीरज हालांकि थोड़े से अंतर से स्वर्ण पदक जीतने से चूक गए लेकिन भारत के लिए उनको मिली चांदी भी सोने से कम नहीं है।

18 साल की उम्र में नीरज वर्ष 2016 में आईएएएफ अंडर-20 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर किसी भी इवेंट और किसी भी उम्र के स्तर पर विश्व चैंपियन बनने वाले पहले भारतीय ट्रैक एंड फील्ड एथलीट बने थे और वह बेमिसाल उपलब्धि हासिल करने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पोलैंड में आयोजित उस जूनियर चैंपियनशिप में नीरज ने 86.48 मीटर के विजयी थ्रो के साथ विश्व रिकॉर्ड भी बनाया था। उनसे पहले 84.69 मीटर थ्रो के साथ यह रिकॉर्ड लातविया के जिगिस्मंड्स सिरमाइस के नाम दर्ज था।

वैसे 24 दिसम्बर 1997 को हरियाणा के पानीपत जिले के खांद्रा गांव में एक छोटे किसान के घर जन्मे नीरज टोक्यो ओलम्पिक में इतिहास रचने से पहले भी कई बड़ी-बड़ी चैम्पियनशिप जीत चुके हैं। भारतीय सेना के सूबेदार नीरज एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, एशियन चैंपियनशिप, साउथ एशियन गेम्स तथा विश्व जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम कर चुके हैं।

2016 में पोलैंड में जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद ही नीरज को सेना में जूनियर कमीशंड ऑफिसर के तौर पर नियुक्ति दी गई थी। मार्च 2021 में उन्होंने इंडियन ग्रैंड प्रिक्स-3 में 88.07 मीटर जैवलिन थ्रो के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया था। जून 2021 में पुर्तगाल के लिस्बन शहर में हुए मीटिंग सिडडे डी लिस्बोआ टूर्नामेंट में नीरज ने स्वर्ण पदक जीता था। 2016 में उन्होंने साउथ एशियन गेम्स में 82.23 मीटर दूर, 2017 में एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 85.23 मीटर दूर और 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में 88.06 मीटर दूर भाला फेंककर स्वर्ण पदक जीते। एशियाई खेलों के इतिहास में अब तक भालाफेंक में भारत को केवल दो ही पदक मिले हैं और नीरज पहले ऐसे भारतीय एथलीट हैं, जिन्होंने एशियन खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उनसे पहले वर्ष 1982 में गुरतेज सिंह को कांस्य पदक मिला था। नीरज का अभी तक का सर्वश्रेष्ठ प्रयास 30 जून 2022 को स्वीडन में स्टॉकहोम डायमंड लीग 2022 में रहा है, जहां उन्होंने 89.94 मीटर के अपने व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड को स्थापित करने के साथ ही एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया।

वैसे नीरज की एथलेटिक्स में आने की कहानी भी दिलचस्प है। उन्होंने या उनके परिवार के किसी सदस्य ने सपने में भी नहीं सोचा था कि नीरज एथलेटिक्स में किस्मत आजमाएंगे। बचपन में नीरज काफी मोटे और थुलथुले थे, 13 वर्ष की आयु में उनका वजन करीब 80 किलोग्राम था और तब परिवारवालों के दबाव में उन्होंने एथलेटिक्स के जरिये अपना वजन कम करने का निश्चय किया। परिजनों ने उन्हें प्रतिदिन दौड़ लगाने को प्रोत्साहित किया ताकि वजन कम हो सके लेकिन नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। एक दिन उनके चाचा उन्हें गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर पानीपत के शिवाजी स्टेडियम ले गए। वहां नीरज ने कुछ खिलाडि़यों को भाला फेंक का अभ्यास करते देखा तो उन्हें इस खेल से ऐसा लगाव हुआ कि वे अपनी कड़ी मेहनत के बलबूते देश के लिए पूरी दुनिया में इतिहास रचने में सफल हो गए। अपनी थ्रोइंग स्किल्स को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने जर्मनी के बायो-मैकेनिक्स विशेषज्ञ क्लाउस बार्ताेनित्ज से प्रशिक्षण लिया, जिससे उनके प्रदर्शन में निरंतरता आई।

देश के एक अनुभवी भालाफेंक खिलाड़ी जयवीर चौधरी ने नीरज की प्रतिभा को पहचाना, जिसके बाद बेहतर सुविधाओं की तलाश में वह 2011 में पंचकूला के देवीलाल स्टेडियम पहुंच गए, जहां उनका सामना राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों से हुआ और वहां मिलने वाली बेहतर सुविधाओं का लाभ उठाकर वह बहुत कम समय में वर्ष 2012 के अंत में अंडर-16 राष्ट्रीय चैम्पियन बन गए। उसके बाद और आगे बढ़ने के लिए उन्हें बेहतर उपकरणों और अच्छी खुराक के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत थी। ऐसे में उनके संयुक्त किसान परिवार ने उनकी हरसंभव मदद की, जिसकी बदौलत वह वर्ष 2015 में राष्ट्रीय शिविर में शामिल हो गए और अगले ही साल 2016 में जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में विश्व रिकॉर्ड के साथ ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियों में आए। उनकी लगन तथा कड़े परिश्रम का ही नतीजा टोक्यो ओलम्पिक में ऐतिहासिक जीत के बाद विश्व चैंपियनशिप में जीत के रूप में भी दुनिया के सामने है।

नीरज की बेमिसाल उपलब्धियों की ही बदौलत उन पर न केवल लगातार इनामों की बरसात हो रही है बल्कि ओलम्पिक में सोना जीतने के बाद वह खेलों के साथ-साथ विज्ञापन की दुनिया में भी स्टार बनकर उभरे हैं और उनकी ब्रांड वैल्यू में सौ फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। सीएनॉलेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में नीरज का नेटवर्थ करीब 31.93 करोड़ रुपये (4 मिलियन डॉलर) हो चुका है।

वैसे बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में भी देश को उनसे काफी उम्मीदें थी लेकिन विश्व चैंपियनशिप के दौरान जांघ की मांसपेशियों में खिंचाव आने के कारण डॉक्टरों की सलाह पर नीरज को इन खेलों से हटना पड़ा है, जिससे भारत की एथलेटिक्स में पदक की संभावनाओं को झटका लगा है। बहरहाल, अब नीरज की नजरें की 2024 के पेरिस ओलम्पिक पर केन्द्रित हैं और नीरज के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए आने वाले वर्षों में उनके द्वारा विभिन्न स्पर्धाओं में लगातार पदक जीतने की उम्मीदें बरकरार हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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