आचंलिक

नपा अधिनियम में अयोग्यता जैसा कोई नियम नहीं-इसमें होना चाहिए सुधार

  • अयोग्यता का खतरा नहीं इसलिए बगावत की संभावना बरकरार

नागदा। नगर पालिका नागदा चुनाव में 36 में से 22 वार्डों पर कब्ज़ा कर भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ चुनी गयी है। वहीं कांग्रेस को मात्र 13 वार्डों पर ही संतोष करना पड़ा। इस बार अध्यक्ष का चुनाव पार्षदों द्वारा किया जाना है। वैसे तो संख्या के मान से भाजपा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुना जाना तय है, परंतु कांग्रेस द्वारा मुकाबले की घोषणा के बाद तोडफ़ोड़ की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। वैसे तो कांग्रेस विधायक दिलीप सिंह गुर्जर ने कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार खड़ा करने की बात कहते हुए सभी पार्षदों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की बात कही है परंतु सभी जानते है कि राजनीति में अंतरात्मा नहीं तोड़ फोड़ ही चलती है।

कांग्रेस की ओर से कई वर्षों से अध्यक्ष पद का सपना संजोए रघुनाथ सिंह बब्बू भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसी के चलते गृह वार्ड नहीं होने के बावजूद वार्ड 28 में पूरी ताकत लगा कर अपनी पत्नी कौशल्या ठाकुर को बड़े अंतर से जीत दिलाने में कामयाब रहे। अध्यक्ष पद भी अनुसूचित महिला होने से कांग्रेस की ओर से उनका उम्मीदवार बनना मुश्किल नहीं होगा। आर्थिक सहित हर दृष्टि से सक्षम बब्बू का एक समय भाजपा के सदस्य होने के कारण वहाँ के नेताओं से भी सम्पर्क होना फायदा दे सकता है। इधर भाजपा नेताओं ने भाजपा में किसी प्रकार की तोड़-फ़ोड़ की सम्भावना को कयास मात्र बताते हुए दावा किया कि भाजपा एक अनुशासित पार्टी है यहाँ सभी पार्टी के प्रति समर्पित है। मण्डल अध्यक्ष ने दावा किया कि होने वाले अध्यक्ष उपाध्यक्ष चुनाव में भाजपा को स्वयं के 22 से भी ज़्यादा समर्थन मिलेगा।

क्रास वोटिंग का बना रहेगा डर
अलग-अलग खेमों पार्टी के लिए पार्षदों की नाराजग़ी के चलते क्रास वोटिंग का भय बना रहेगा। भाजपा में अध्यक्ष के लिए कम परंतु उपाध्यक्ष पद के लिए अधिक दावेदारों में सामंजस्य नहीं बनने पर परेशानी खड़ी हो सकती है। वहीं कांग्रेस में भी अध्यक्ष पद के अधिक दावेदार होने और एक मत नहीं होने की स्थिति में क्रास वोटिंग का भय बना रहेगा।


क्या कहता है नपा अधिनियम
नगर पालिका अधिनियम में किसी भी पार्टी के पार्षद द्वारा पार्टी गाइड लाइन से अलग जाकर वोट देने की स्थिति में कार्यवाही का कोई नियम नहीं है। दलबदल कानून होने वाले अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव पर लागू नहीं होते है। पार्टी लाइन का पालन नहीं करने वाले पार्षदों को भाजपा या कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा पार्टी से बाहर कर सकती है, परंतु इस निर्णय के बाद भी उनका पार्षद पद प्रभावित नहीं होगा, पार्टी से निकाले जाने के बाद भी वे पार्षद बने रहेंगे। नपा अधिनियम के विशेषज्ञ अब्दुल हामिद ने बताया कि नपा अधिनियम 1961 में कही भी इस बात का उल्लेख नहीं है की पार्टी लाइन के खिलाफ क्रास वोट देने वाला अयोग्य होगा। नपा अधिनियम में ऐसे पार्टी विरोध में वोट देने वालों के खिलाफ कार्यवाही का कोई नियम मौजूद नहीं है। अधिनियम के अनुसार कलेक्टर कभी भी किसी भी पार्षद को निम्न स्थिति में हटा सकता है।

  • धारा 1/41
    कलेक्टर किसी निर्वाचित पार्षद को किसी भी समय हटा सकेगा, (क) यदि उसका पार्षद के रूप में बना रहना, कलेक्टर की राय में लोकहित या परिषद् के हित की दृष्टि से वाँछनीय न हो, या (क-1) यदि यह पाया जाए कि वह उस आरक्षित प्रवर्ग का नहीं है, जिसके लिए कि स्थान आरक्षित रखा गया था, या (ख) यदि परिषद् ने पार्षदों की कुल संख्या के कम से कम दो तिहाई से समर्थित संकल्प द्वारा अनुशंसा की हो कि पार्षद, अपने कर्तव्यों के निर्वहन में दुराचरण के कारण अथवा अशोभनीय आचरण द्वारा पार्षद बने रहने योग्य नहीं है।
  • कलेक्टर, किसी भी समय किसी भी पार्षद को हटा सकेगा, यदि वह पार्षद विधि व्यवसायी होते हुए, किसी अन्य व्यक्ति की ओर से किसी विधिक कार्यवाही में परिषद् के विरुद्ध या किसी ऐसे विषय से संबंधित उस कार्यवाही में जिसे कि परिषद् संबंधित, या संबंधित रही है राज्य सरकार के विरुद्ध कार्य करता है या उपसंजात होता है या किसी ऐसी दाण्डिक कार्यवाही में, जो परिषद् द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति के विरुद्ध संस्थित की गई है, ऐसे व्यक्ति की ओर से कार्य करता है या उपसंजात होता है।
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